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सुषमा स्वराज को पसंद थे कैथल के छोले भटूरे व बेसन के पुड़े

देश की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जब भी कैथल के दौरे पर आती थी तो लंच या डिनर भाजपा के वरिष्ठ नेता धर्मेद्र गुप्ता के परिवार के साथ ही करती थी। यहां आने से पहले ही वे गुप्ता को फोन कर कह देती थी कि भाभी जी को बोलना मेरे लिए पुदीने व आम की चटनी जरूर बनाकर रखे जिसे वह बहुत ही चाव के साथ खाती थीं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 08 Aug 2019 08:31 AM (IST)Updated: Thu, 08 Aug 2019 08:31 AM (IST)
सुषमा स्वराज को पसंद थे कैथल 
के छोले भटूरे व बेसन के पुड़े
सुषमा स्वराज को पसंद थे कैथल के छोले भटूरे व बेसन के पुड़े

कमल बहल, कैथल :

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देश की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जब भी कैथल के दौरे पर आती थी तो लंच या डिनर भाजपा के वरिष्ठ नेता धर्मेद्र गुप्ता के परिवार के साथ ही करती थी। यहां आने से पहले ही वे गुप्ता को फोन कर कह देती थी कि भाभी जी को बोलना मेरे लिए पुदीने व आम की चटनी जरूर बनाकर रखे, जिसे वह बहुत ही चाव के साथ खाती थीं। इसके अलावा उन्हें कैथल के छोले-भटूरे व बेसन की पुड़े भी काफी पसंद थे।

धमेंद्र गुप्ता ने बताया कि सुषमा जी का उनके परिवार से विशेष लगाव था, कई बार उनके घर पर आई। वे उन्हें अपने परिवार के सदस्य की तरह मानती थी।

प्याज को हाथ से तोड़कर

खाना था पसंद

भाजपा के वरिष्ठ नेता रविभूषण गर्ग ने बताया कि वर्ष 1996 में जब सुषमा स्वराज मंत्री रहते हुए कार्यकर्ता डॉ. शशीपाल के घर आई तो उन्होंने बेसन के पुड़े खाने की इच्छा जताई। इसके बाद जब भी सुषमा स्वराज कैथल आई तो कार्यकर्ताओं ने उनके खाने में बिना पूछे ही बेसन के पुड़े जरूर बनवा लेते थे। इसके अलावा वह कटे हुए सलाद की बजाय प्याज को पंच मारकर तोड़ते हुए खाती थी। यह उनकी एक विशेष आदत रही, जो दूसरे लोगों को काफी पसंद थी।

सुषमा स्वराज ने श्री ग्यारह रुद्री प्राचीन शिव मंदिर में 1991 से पहले कई बार दौरा करते हुए कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की। इस दौरान मुश्किल से 10 से 15 वर्कर ही इन बैठकों में आते थे। अपने भाषण के दौरान सुषमा कार्यकर्ताओं में जोश भर देती थी।

मंदिर कमेटी के पूर्व प्रधान माईलाल सैनी ने बताया कि वर्ष 1991 में उन्होंने भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में सुषमा स्वराज को चुनाव प्रचार के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन किन्हीं कारणों के चलते वह नहीं आ पाई थी। जब भी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करती थी तो एक ही बात कहती थी, संख्या कम होने पर नाराज होने की जरूरत नहीं। एक दिन ऐसा आएगा कि दूसरे दलों में गिने-चुने कार्यकर्ता होंगे। भाजपा की बैठकों में पैर रखने के लिए जगह नहीं मिलेगी, आज वे दिन सच साबित हो रहा है।

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