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अनदेखी के कारण बदहाली की कगार पर सूर्यकुंड

अनदेखी के कारण शहर के प्राचीन सूर्यकुंड की स्थिति दिन-ब-दिन बदहाल हो रही है। शहर के अलग-अलग हिस्सों में बने नवग्रह कुंडों का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। 3100 ई. पूर्व जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर ने युद्ध में मारे गए पितरों की आत्मा की शांति के लिए कैथल में नवग्रह कुंडों की स्थापना की थी। 687 ई. में आदि शंकराचार्य ने इस कुंडों को रक्षा का निर्देश अपने शिष्यों को दिया। 1860-1900 के बीच में शिष्यों ने इन कुंडों को काशी के दशनामी जूना अखाड़े को सौंप दिया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Jun 2018 12:34 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jun 2018 12:34 AM (IST)
अनदेखी के कारण बदहाली  की कगार पर सूर्यकुंड
अनदेखी के कारण बदहाली की कगार पर सूर्यकुंड

जागरण संवाददाता, कैथल : अनदेखी के कारण शहर के प्राचीन सूर्यकुंड की स्थिति दिन-ब-दिन बदहाल हो रही है। शहर के अलग-अलग हिस्सों में बने नवग्रह कुंडों का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। 3100 ई. पूर्व जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर ने युद्ध में मारे गए पितरों की आत्मा की शांति के लिए कैथल में नवग्रह कुंडों की स्थापना की थी। 687 ई. में आदि शंकराचार्य ने इस कुंडों को रक्षा का निर्देश अपने शिष्यों को दिया। 1860-1900 के बीच में शिष्यों ने इन कुंडों को काशी के दशनामी जूना अखाड़े को सौंप दिया। डेराबाबा परमहंस पुरी ने इन कुंडों की देखभाल शुरू की। उनके बाद जूना अखाड़े की गद्दी इन कुंडों की देखभाल करती रही। अब सरकार और पुरातत्व विभाग की ओर से इस पर ध्यान न दिए जाने के कारण ज्यादातर कुंड अपना अस्तित्व खो रहे हैं। नौ में से करीब छह पर तो अब लोगों ने कब्जा कर लिया है। उनमें माता गेट पर माता के मंदिर के साथ बना सूर्यकुंड से प्रमुख है।

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हालांकि इस कुंड का कुछ वर्ष पहले विधायक रणदीप ¨सह सुरजेवाला ने जीर्णोद्धार करवाया गया था, लेकिन अब यह रख-रखाव की सही व्यवस्था न होने के कारण फिर से बदहाली की ओर जा रहा है। प्राचीन धरोहर की हो रही अनदेखी और सरकार की लापरवाही से लोगों में भारी रोष है।

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कुंड के किनारे हुए जर्जर :

सूर्यकुंड में निर्माण के समय सिमेंट व पत्थरों को जोड़कर इसके चारों ओर दीवार बनाई गई थी। वह अब जर्जर हालात में है। दीवारों में लगे पत्थर टूटने से बड़े-बड़े गड्ढे बन गए है। कुंड में केवल घुटनों तक पानी भरा गया है, जबकि इसकी गहराई 20 फुट से भी ज्यादा है। दीवारों में लगे लोहे के बीम से सरिया बाहर निकला पड़ा है। कुंड में पानी भरने पर सरिया दिखाई न देने से यहां स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को घायल होने का भी खतरा हो सकता है।

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महिला स्नानागार भी नहीं :

माता के मंदिर में चेत्र माह के नवरात्रों में विशाल मेला लगता है। इस दौरान दूर-दूर से श्रद्धालु माता के मंदिर में पूजा पाठ करने के बाद यहां स्नान करते हैं। कुंड में महिलाओं के स्नान के लिए अलग से जगह नहीं है। ऐसे में स्नान के लिए आई महिलाओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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शाम को होता नशेड़ियों का जमावड़ा

कुंड के उत्तरी व पश्चिमी हिस्से में शाम को नशेड़ियों का जमावड़ा हो जाता है। इसके एक तरफ जो दीवार बनाई गई है वह छोटी होने के कारण नशेड़ी उसे फांदकर अंदर आ जाते हैं। जब तक मंदिर के पुजारी या सेवक उन्हें पकड़ने के लिए जाते हैं, वे मौके से फरार हो जाते हैं। कई बार तो सेवकों के साथ झगड़ा भी कर लेते हैं।

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ध्यान दे सरकार व प्रशासन :

अब मंदिर और कुंड का रख-रखाव 2007 से महंत राजेश्वर पुरी कर रहे हैं। महंत ने बताया कि सरकार व प्रशासन को इस तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है। इससे मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की परेशानी तो दूर होगी ही, साथ में ऐतिहासिक धरोहर को भी नष्ट होने से बचाया जा सकता है।


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