चाचा-भतीजे में एक जैसी बीमारी
कुछ दिन पहले पूंडरी हलके के एक गांव में बिजली टीम से मारपीट के दो आरोपित चाचा-भतीजा गिरफ्तार हुए थे। कोर्ट में पेश कर पुलिस ने दोनों को जेल भेज दिया। अब जेल की चाहर-दीवारी में बंद दोनों का जब मन नहीं लगा तो एक नई बीमारी का बहाना बना लिया जिसका इलाज पीजीआइ रोहतक के डाक्टर भी नहीं ढूंढ पाए।
कुछ दिन पहले पूंडरी हलके के एक गांव में बिजली टीम से मारपीट के दो आरोपित चाचा-भतीजा गिरफ्तार हुए थे। कोर्ट में पेश कर पुलिस ने दोनों को जेल भेज दिया। अब जेल की चाहर-दीवारी में बंद दोनों का जब मन नहीं लगा तो एक नई बीमारी का बहाना बना लिया, जिसका इलाज पीजीआइ रोहतक के डाक्टर भी नहीं ढूंढ पाए। डाक्टर और पुलिस वाले ये मंथन करने को मजबूर हैं कि दोनों को एक जैसी बीमारी कैसे हो सकती है। दोनों ने एक तरह की आवाज निकालनी शुरू कर दी, इस तरह से जेल में बंद दूसरे कैदी भी परेशानी हो गए और जेल अधीक्षक से बोले इन दोनों से हमें बचाओ। पुलिस ने दोनों को सिविल अस्पताल दाखिल करवाया तो यहां भी तेज आवाज निकालने लगे तो मरीज परेशान हो गए। विशेषज्ञ चिकित्सक ने विभाग को लिखा दोनों को कोई बीमारी नहीं है, पूरी तरह से स्वस्थ, केवल जेल से बचने के लिए नाटक कर रहे हैं। अब पुलिस वाले इन हरकतों से अपने आप को कैसे बचाएं, ये सोचने को मजबूर हैं।
नए साहब के तेवर देख बदल गई कार्यशैली
स्वास्थ्य विभाग में बड़े साहब के तबादले के बाद नये साहब आ गए हैं, उन्होंने पहले दिन ही कुर्सी पर बैठते हुए अफसरों की क्लास ली। पहली ही बैठक में साहब के तेवर को देखकर कर्मचारी एक दूसरे से चर्चा करते हुए नजर आए कि साहब तो कड़क हैं, इसलिए कोई भी काम में लापरवाही बरती तो कार्रवाई हो सकती है। साहब जब ऑफिस आए तो अपने घर से किसी गाड़ी में नहीं बल्कि रोडवेज बस में आए हैं और कर्मचारियों के वर्क को नोटिस करने के लिए डायरी भी घर से लेकर आए हैं। पहली ही बैठक में कर्मचारियों को साफ कह दिया कि वे ईमानदारी और लगन से काम करने वाले व्यक्ति के साथ हैं। अगर भ्रष्टाचार में लिप्त मिलने की कोई शिकायत सामने आई तो सहन नहीं होगा, इसलिए आज से ही अपने काम को बेहतर ढंग से करें, सरकार की योजनाओं को अमलीजामा पहनाते हुए जन-जन तक पहुंचाए।
रजिस्ट्रेशन के लिए खींचतान, मरीज परेशान
जिला नागरिक अस्पताल में बीमारियों की जांच और इलाज लेने के लिए आ रहे मरीजों में इन दिनों रजिस्ट्रेशन को लेकर खींचतान रहती है। एक तो पहले ही चिकित्सक काफी कम हैं, दूसरा मौसम की मार से मरीजों की ओपीडी बढ़ रही है। सोमवार से लेकर बृहस्पतिवार तक तो अस्पताल में लाइन बिल्डिग से बाहर आ जाती है। अब इस भीड़ को देख काफी लोग ऐसे भी हैं जो सिफारिश करने वालों को ढूंढते हैं, जैसे ही कोई जान-पहचान का दिखा तो पर्ची कटवाने के लिए पीछे लग जाते हैं। यहां ड्यूटी करने वाले सुरक्षा गार्ड इस काम से बहुत परेशान हैं। कहते अब पर्ची न कटवाए तो नाराज हो जाते हैं अगर कटवा दें तो मरीजों का दबाव बढ़ जाता है, इसे देख उन्हें ड्यूटी करना मुश्किल हो गया है। अफसरों पर ऐसी शिकायत भी जाते हैं, लेकिन वे भी क्या करें वे स्वयं ही मजबूर हैं, क्योंकि दबाव तो इन अफसरों पर भी कम नहीं है।
अफसर एक, कुर्सी मिली हुई तीन
शहर के एक सरकारी शिक्षण संस्थान के बड़े अफसर को एक नहीं बल्कि तीन-तीन संस्थानों की कुर्सी मिली हुई है। अब साहब का पांव कभी इस संस्थान तो कभी उस संस्थान में रहता है। इस तरह से काम भी पारदर्शिता से नहीं हो पाता, लेकिन रिक्त पड़े पदों पर बैठाना भी जरूर है। काम के बढ़ते बोझ के कारण साहब के सिर में हर समय दर्द रहता है, जैसे ही कोई मिलने के लिए कार्यालय में आता है तो हाल पूछते ही साहब अपनी पीड़ा सुनाने लगते हैं। अब सामने बैठा व्यक्ति यही सोचता है कि अगर साहब की इस पीड़ा को सही नहीं कहा तो उनका काम भी बनेगा या नहीं ये भी कहना मुश्किल है, जो भी हैं ये साहब काम के बोझ तले दबे हुए हैं।
प्रस्तुति-सुरेंद्र सैनी