छठ का व्रत रखने से होती संतान की प्राप्ति : पंडित विशाल
प्रदेश में रहने वाले प्रवासियों का महापर्व छठ 11 नवंबर से शुरू हो रहा है। नहाय-खाए, खरना, सुबह और शाम के अर्घ्य के साथ 14 नवंबर तक यह पर्व चलने वाला है। छठ पूजा में सूर्य को पहला अर्घ्य 13 नवंबर को दिया जाएगा। यह जानकारी हनुमान वाटिका के मुख्य पुजारी पंडित विशाल शर्मा ने दी।
जागरण संवाददाता, कैथल : प्रदेश में रहने वाले प्रवासियों का महापर्व छठ 11 नवंबर से शुरू हो रहा है। नहाय-खाए, खरना, सुबह और शाम के अर्घ्य के साथ 14 नवंबर तक यह पर्व चलने वाला है। छठ पूजा में सूर्य को पहला अर्घ्य 13 नवंबर को दिया जाएगा। यह जानकारी हनुमान वाटिका के मुख्य पुजारी पंडित विशाल शर्मा ने दी।
उन्होंने बताया कि छठी मइया के इस पर्व को बिहार में बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं। इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल में भी छठी मइया को पूजा जाता है। पर्व को मनाने वाले छठ पूजा के दिन घर के लगभग सभी सदस्य (बच्चों और बुजुर्गो को छोड़कर) व्रत रखते हैं। मान्यता है कि छठ का व्रत रखने से संतान की प्राप्ति होती है और बच्चों से जुड़े कष्टों का निवारण होता है। व्रत रखने से सूर्य भगवान की कृपा बरसती है। दीपावली के छठे दिन यानी कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को छठ पर्व मनाया जाता है।
ऐसे शुरू हुई छठ पर्व मनाने की परंपरा
पंडित विशाल शर्मा ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम का एक राजा था। उनकी पत्नी का नाम था मालिनी। दोनों की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। यह यज्ञ सफल हुआ और रानी गर्भवती हुईं, लेकिन रानी को मरा हुआ बेटा पैदा हुआ। इस बात से दोनों बहुत दुखी हुए और उन्होंने संतान प्राप्ति की आशा छोड़ दी। राजा ने आत्महत्या का मन बना लिया, जैसे ही वो खुद को मारने का प्रयास करने लगे षष्ठी देवी प्रकट हुई। देवी ने कहा कि सच्चे मन से पूजा करने से पुत्र की प्राप्ति होती है। राजा ने देवी की बात मानी और कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्ठी की पूजा की। इस पूजा से देवी खुश हुई और राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से हर साल इस तिथि को छठ पर्व मनाया जाने लगा।