Move to Jagran APP

धान वैज्ञानिकों ने दो किस्मों पर शुरू किया ट्रायल, किसानों को होगा दोहरा फायदा

वैज्ञानिक धान की वैरायटी तैयार करने में जुटे हैं जिससे पैदावार में कोई कमी नहीं आएगी और मौजूदा किस्मों के मुकाबले 20 फीसद पानी की बचत होगी।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 02 Jun 2020 08:51 AM (IST)Updated: Tue, 02 Jun 2020 08:51 AM (IST)
धान वैज्ञानिकों ने दो किस्मों पर शुरू किया ट्रायल, किसानों को होगा दोहरा फायदा
धान वैज्ञानिकों ने दो किस्मों पर शुरू किया ट्रायल, किसानों को होगा दोहरा फायदा

कैथल [पंकज आत्रेय]। गिरते भूजल स्तर को नियंत्रित करने के उद्देश्य से हरियाणा के नौ खंडों में सरकार ने इस बार धान रोपने पर रोक लगा दी थी। सरकार ने इस प्रतिबंध को फौरी तौर पर वापस ले लिया और अब खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने मोर्चा संभाला है। वे किसानों के बीच जाकर उन्हें स्वैच्छिक रूप से धान का मोह छोड़ने की अपील कर रहे हैं। इसी के चलते बीते रोज कैथल में वे किसानों से रूबरू हुए। उन्हें मेरा पानी-मेरी विरासत योजना के बारे में बारीकी से समझाया।

loksabha election banner

दूसरी तरफ, कैथल के ही कौल स्थित धान अनुसंधान केंद्र भविष्य की दुश्वारियों को देखते हुए धान की ऐसी किस्म इजाद करने में जुटा है, जो मौजूदा किस्मों के मुकाबले कम पानी में तैयार हो जाएगी। इसके लिए दो किस्मों को प्राथमिक स्तर पर ट्रायल के लिए चुना गया है। यह दोनों किस्में पीआर परिवार की हैं। इस साल एक और किस्म को इस ट्रायल में शामिल करने की तैयारी है।

बचाएगी 20 फीसद पानी

धान अनुसंधान केंद्र कौल के डायरेक्टर डॉ. मंगत राम ने बताया कि हम ऐसी वैरायटी तैयार करने में जुटे हैं, जिसकी पैदावार में कोई कमी नहीं आएगी और मौजूदा किस्मों के मुकाबले 20 फीसद पानी की बचत होगी। इसके अलावा सीधी बिजाई (डीएसआर) के माध्यम से भी पानी बचाया जा सकता है। हालांकि किसान बहुत कम इस दिशा में सहयोग कर रहे हैं, लेकिन इससे किसानों को दोहरा फायदा है। एक तो लेबर कम लगती है और दूसरे पानी की बचत होती है। यह बासमती में ज्यादा कारगर साबित हो रही है।

तीन से पांच हजार लीटर पानी में एक किलो चावल

पीआर किस्म बासमती के मुकाबले ज्यादा पानी लेती है। रोपाई से पहले 30 दिन और रोपाई के बाद औसतन 110 दिन फसल को तैयार होने में लगते हैं। यह 140 दिन तक पानी सोखती है। बासमती धान 120 दिन का समय लेती है, इसलिए यह कम पानी लेती है। इसकी पैदावार भी प्रति एकड़ पीआर के मुकाबले कम रहती है। डॉ. मंगत राम बताते हैं कि एक किलो चावल की पैदावार में तीन हजार से पांच हजार लीटर तक पानी की खपत होती है। यह जमीन, धान की किस्म और मौसम के अनुसार घटती या बढ़ती रहती है। अभी तक एचकेआर 48 किस्म ही ऐसी है जो कम पानी लेती है, लेकिन इसका झाड़ कम हो जाता है।

सीधी बिजाई करते हैं कपूर सिंह

धान की सीधी बिजाई करने वाले सीवन के किसान कपूर ङ्क्षसह का कहना है कि इस विधि से फायदे ही फायदे हैं। एक तो लागत कम होती है और 20 से 30 प्रतिशत तक पानी बचता है। गर्मी के मौसम में ट्रांसफार्मर सड़ जाने की स्थिति में दस दिन तक भी ट्यूबवेल नहीं चलते हैं तो भी फसल सूखने की समस्या नहीं रहती है।

मशीन से ही बिजाई हो जाएगी

किसान गुरमेल सिंह कहते हैं कि चूंकि लॉकडाउन के चलते प्रवासी मजदूर अपने राज्यों को लौट चुकेे हैं तो सीधी बिजाई ही कारगर है। मजदूरों की कमी के चलते मशीन से ही बिजाई हो जाएगी। दूसरे इस विधि से अधिक पेस्टीसाइड डालने की भी जरूरत नहीं पड़ती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.