महंगी भेंट से नहीं भावों से प्रसन्न होते हैंभगवान : समदर्शनी
संवाद सहयोगी, पूंडरी : कार्तिक मास में पूंडरी की सेठ दानामल धर्मशाला में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक मीरा समदर्शनी ने कहा कि उन्होंने कहा कि भगवान को महंगी भेंट देकर नहीं बल्कि भावों से प्रसन्न किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सत्य से जब-जब मानव चूका है, तब-तब मानव का पतन हुआ है।
संवाद सहयोगी, पूंडरी : कार्तिक मास में पूंडरी की सेठ दानामल धर्मशाला में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक मीरा समदर्शनी ने कहा कि उन्होंने कहा कि भगवान को महंगी भेंट देकर नहीं बल्कि भावों से प्रसन्न किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सत्य से जब-जब मानव चूका है, तब-तब मानव का पतन हुआ है। उन्होंने शुकदेव के जन्म की कथा सुनाते हुए कहा कि भागवत में महर्षि व्यास ने केवल सत्य की वंदना की है। चाहे त्रेता युग हो या द्वापर युग या फिर सतयुग, त्रेता में रावण ने सत्य को छोड़ दिया था तो भगवान राम को आना पड़ा। इसी प्रकार द्वापर में कंस ने सत्य को छोड़ दिया तो भगवान श्री कृष्ण को आना पड़ा। उन्होंने कहा कि आज मनुष्य सत्संग में भी जाता है और भक्ति व पूजा अर्चना भी करता है, लेकिन छोटी-छोटी बातों पर झूठ का सहारा लेता है। उन्होंने कहा कि जिस दिन मनुष्य ने सत्य बोलना सीख लिया, फिर उसके लिए सत्य ही सर्वस्व बन जाएगा। इस मौके पर कृष्णकांत शास्त्री, रामनाथ वर्मा, रामदत, अजय वर्मा, योगेश शर्मा, सतीश सैनी, शुभम मिगलानी, विजय, सूरज व अमित सैनी मौजूद थे।