अस्पताल में नहीं हेपेटाइटिस-बी का इलाज,वापस लौट रहे मरीज
जिला नागरिक अस्पताल में हेपेटाइटिस-बी के मरीजों को इलाज की सुविधा नहीं मिल रही है। जांच के बाद मरीजों को पीजीआइ रोहतक या चंडीगढ़ रेफर किया जा रहा है। अब तक कितने मरीज आए हैं और रेफर किए गए हैं, इसका भी कोई आंकड़ा विभाग के पास नहीं है। एक माह में 20 से 25 मरीज जांच के दौरान सामने आ हैं। हेपेटाइटिस- सी के मरीजों की संख्या को देखते हुए जिले भर में दो हजार के करीब मरीज बी के हैं। वहीं इस बीमारी की प्राइवेट में इलाज लेने पर काफी महंगा पड़ता है। हेपेटाइटिस बी के कारण लीवर प्रभावित हो जाता है। समय पर इलाज नहीं मिले तो यह जानलेवा साबित हो सकती है।
सुरेंद्र सैनी, कैथल : जिला नागरिक अस्पताल में हेपेटाइटिस-बी के मरीजों को इलाज की सुविधा नहीं मिल रही है। जांच के बाद मरीजों को पीजीआइ रोहतक या चंडीगढ़ रेफर किया जा रहा है। अब तक कितने मरीज आए हैं और रेफर किए गए हैं, इसका भी कोई आंकड़ा विभाग के पास नहीं है।
एक माह में 20 से 25 मरीज जांच के दौरान सामने आ हैं। हेपेटाइटिस- सी के मरीजों की संख्या को देखते हुए जिले भर में दो हजार के करीब मरीज बी के हैं। वहीं इस बीमारी की प्राइवेट में इलाज लेने पर काफी महंगा पड़ता है। हेपेटाइटिस बी के कारण लीवर प्रभावित हो जाता है। समय पर इलाज नहीं मिले तो यह जानलेवा साबित हो सकती है।
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गुहला व राजौंद में ज्यादा मरीज
हेपेटाइटिस सी व बी के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। गुहला व राजौंद में ज्यादा केस हैं। राजौंद क्षेत्र का तो ऐसा कोई गांव नहीं है जहां इस बीमारी के मरीज न हो। कई गांव तो ऐसे हैं जहां हर घर में मरीज है। कई घरों में तो सभी सदस्य इसकी चपेट में है। वहीं गुहला क्षेत्र में भी कई गांव में इस बीमारी के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। सिविल अस्पताल में दवाई शुरू करवाने को लिए मरीजों की लंबी कतार लगी रहती है। बारी नहीं आने पर रोजाना काफी मरीज वापस लौट रहे हैं। यहां तक की दवाई लेने के लिए मरीज सिफारिश तक लगवा रहे हैं।
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बाल रोग विशेषज्ञ पर काला
पीलिया का कार्यभार
सिविल अस्पताल में जब काला पीलिया की दवाई शुरू हुई तो उस समय कोई भी फिजिशियन नहीं था। इस कारण काला पीलिया का कार्य बाल रोग विशेषज्ञ को दिया गया। यहां ओपीडी के बाहर हर समय भीड़ लगी रहती है। नवजात बच्चों को लेकर महिलाएं घंटों लाइन में लगने को मजबूर हैं। फिजिशियन को यह कार्य देने के लिए बाल रोग विशेषज्ञ ने उच्चाधिकारियों को पत्र भी लिखा है, लेकिन इसके बावजूद संबंधित चिकित्सक को यह कार्य नहीं दिया जा रहा है।
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रोहेड़ियां गांव निवासी जोगेंद्र ने बताया कि दो दिन पहले काला पीलिया की जांच करवाई थी। हेपेटाइटिस- बी की पुष्टि होने पर चिकित्सकों ने पीजीआइ रोहतक रेफर कर दिया है। वहां भी कोई इलाज नहीं मिलता। चक्कर ज्यादा काटने पड़ते हैं। प्राइवेट इलाज काफी महंगा है। ऐसे में उनके लिए परेशानी हो गई है। जब यहां सी की दवाई उपलब्ध है तो बी की क्यों नहीं है।
ऐसे फैलता है हेपेटाइटिस बी
-संक्रमित सुई के प्रयोग से।
-असुरिक्षत यौन संबंध से।
-ब्लेड को बार-बार प्रयोग करने से।
ये बरते सावधानी
-संक्रमित सुई का प्रयोग करने से बचें।
-नये ब्लेड का प्रयोग।
-सुरक्षित यौन संबंध।
-रजिस्टर्ड ब्लड बैंक से ही ब्लड लें।
-खान-पान का विशेष ध्यान रखें।
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किया जाता है पीजीआइ रेफर :
काला पीलिया के नोडल अधिकारी डॉ. अनिल अग्रवाल ने बताया कि जांच के बाद सी के मरीजों को तो दवाई दी जा रही है, लेकिन बी के लिए यहां दवाई की सुविधा नहीं है। पीजीआइ रोहतक या चंडीगढ़ रेफर किया जा रहा है।
बी के इलाज की नहीं है सुविधा :
जिला नागरिक अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरडी चावला ने बताया कि बी के इलाज की कोई सुविधा नहीं है। जांच के बाद सी के मरीजों की दवाई शुरू की जा रही है। इस बीमारी से बचाव को लेकर सेमिनार आयोजित करते हुए लोगों को जागरूक किया जा रहा है।