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कृषि यंत्रों का प्रयोग कर खेतों में ही अवशेषों को दबा रहे किसान

किसान फसल अवशेषों को खेतों में ही जला देते थे। इससे न केवल पर्यावरण प्रदूषित हो रहा था बल्कि भूमि के पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते थे। जिलेभर के किसानों ने इन खतरों को समझा और फसल अवशेष प्रबंधन को अपनाया है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 06:27 AM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 06:27 AM (IST)
कृषि यंत्रों का प्रयोग कर खेतों में  ही अवशेषों को दबा रहे किसान
कृषि यंत्रों का प्रयोग कर खेतों में ही अवशेषों को दबा रहे किसान

जागरण संवाददाता, कैथल: किसान फसल अवशेषों को खेतों में ही जला देते थे। इससे न केवल पर्यावरण प्रदूषित हो रहा था, बल्कि भूमि के पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते थे। जिलेभर के किसानों ने इन खतरों को समझा और फसल अवशेष प्रबंधन को अपनाया है।

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उसके बाद जागरूक होना शुरू हो गए। अब किसानों द्वारा कृषि यंत्रों का प्रयोग कर खेतों में ही अवशेषों को दबा रहे है। ऐसा कर किसान पर्यावरण संरक्षण का प्रहरी बन रहे हैं और भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ा रहे हैं। कंबाइन से धान की फसल को काटकर अवशेषों को जलाते नहीं बल्कि उसकी जुताई कर मिट्टी में मिला रहे है। कई-कई वर्ष से किसानों ने खेत में पराली नहीं जलाई। दैनिक जागरण ने कुछ प्रगतिशील किसानों से बातचीत की।

भूमि की उपजाऊ शक्ति प्रभावित हो रही

किसान मेजर सिंह ने बताया कि धान के अवशेषों को खेत में जलाने से प्रदूषण की समस्या भी बढ़ रही है और भूमि की उपजाऊ शक्ति भी प्रभावित हो रही है। हम हर साल खेतों में फसल अवशेषों का प्रबंधन करते हैं। खेत में ही जुताई करते हैं। खेत तैयार करने में थोड़ा खर्च बढ़ जाता है, लेकिन कई समस्याओं का समाधान हो जाता है। जैविक खाद तैयार करते हैं।

अवशेष का करते हैं प्रबंधन

किसान सुरेश मेहता का कहना है कि हम कभी भी धान की अवशेष नहीं जलाते, बल्कि उनका प्रबंधन करते हैं। किसान इससे जैविक खाद तैयार कर सकते हैं। हम धान के अवशेषों को गड्ढे में इकट्ठा कर ढक देते हैं। हर बार ऐसा ही करते हैं। इससे खाद तैयार होती है। धान के अवशेष जलाने से पर्यावरण भी प्रदूषित होता है और भूमि की उर्वरा शक्ति भी घटती है। किसानों को फसल अवशेष नहीं जलाने चाहिए।

नहीं जलाते हैं धान के अवशेष

किसान गुरनाम का कहना है कि इन दिनों धान की कटाई जोरों पर है। किसान फसल अवशेषों को जलाते हैं, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए। वे खुद पांच सालों से धान के अवशेषों को नहीं जला रहे है। इससे खाद का कम प्रयोग होता है। अवशेष जलाने से मृदा की उर्वरा शक्ति लगातार घट रही है। मित्र कीट नष्ट हो रहे हैं। पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। सभी किसानों को भी चाहिए कि फसल अवशेष का प्रबंधन करें ताकि कम से कम बीमारियां फैले।


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