फसल अवशेष प्रबंधन करने से उर्वरा शक्ति में आया सुधार
किसान फसल अवशेषों को खेतों में ही जला देते हैं। इससे न केवल पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है बल्कि भूमि के पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं।
जागरण संवाददाता, कैथल:
किसान फसल अवशेषों को खेतों में ही जला देते हैं। इससे न केवल पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है बल्कि भूमि के पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। वहीं कुछ किसानों ने इन खतरों को समझा और फसल अवशेष प्रबंधन को अपनाया। किसानों का कहना है कि जब से फसल अवशेष प्रबंधन कर रहे है। तभी से जमीन की उर्वरता शक्ति में सुधार आया है। यूरिया खाद की खपत कम हो रही है। आमदनी के हिसाब से फसल मिल रही है। आग लगाने से जहां पर्यावरण दूषित होता है। वहीं बीमारियां फैलने का खतरा रहता है।
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फसल अवशेष प्रबंधन जरूरी: मनोज
किसान मनोज कुमार आनंद ने बताया कि आज के दौर में फसल अवशेष प्रबंधन जरूरी है। ऐसा करने से फसल पर आने वाला खर्च कम होगा। इस दिशा में जब सरकार हमारा सहयोग कर रही है तो हम किसान भाई क्यों पीछे रहें। फसल प्रबंधन बहुत जरूरी है। भूमि के अंदर पोषक तत्वों की कमी नहीं आती। हैप्पी सीडर के माध्यम से फसल अवशेषों के बीच में ही गेहूं की बिजाई की जा सकती है। किसान को अच्छी पैदावार मिलती है और पर्यावरण में जहर नहीं घुलता। किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन पर जरूर ध्यान देना चाहिए।
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जमीन की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है
किसान लक्ष्मी आनंद हर वर्ष दस एकड़ में धान की रोपाई करते है। उनका कहना है कि पिछले छह वर्ष से अब तक धान या गेहूं के अवशेष को नहीं जलाया। फसल अवशेषों को खेत में ही बिछा दिया जाता है। उसमें ही हैप्पी सीडर से गेहूं की बिजाई की जाती है। इसके एक नहीं बल्कि कई फायदे हैं। समय के साथ-साथ खेत तैयार करने पर आने वाला खर्च बच जाता है। जमीन की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है। इसलिए कोई भी किसान खेत में अवशेष न जलाए।
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भूमि की उपजाऊ शक्ति प्रभावित हो रही
किसान बलविद्र ने बताया कि धान के अवशेषों को खेत में जलाने से प्रदूषण की समस्या भी बढ़ रही है और भूमि की उपजाऊ शक्ति भी प्रभावित हो रही है। हम हर साल खेतों में फसल अवशेषों का प्रबंधन करते हैं। खेत में ही जुताई करते हैं। खेत तैयार करने में थोड़ा खर्च बढ़ जाता है, लेकिन कई समस्याओं का समाधान हो जाता है। जैविक खाद तैयार करते हैं।