पर्यावरण में तेजी से आया बदलाव पेड़ घटते गए व क्रंकीट बढ़ता गया
शुगर मिल के एमडी जगदीप सिंह ने ढुल ने कहा कि जब उन्होंने स्कूल पास किया तो ये कोई 15 साल पहले की बात है। ज्यादा पीछे भी नहीं जाएं तो इस दौरान बहुत बदलाव आ गए हैं।
जासं, कैथल : शुगर मिल के एमडी जगदीप सिंह ने ढुल ने कहा कि जब उन्होंने स्कूल पास किया तो ये कोई 15 साल पहले की बात है। ज्यादा पीछे भी नहीं जाएं तो इस दौरान बहुत बदलाव आ गए हैं। उस समय घरों, स्कूलों और गाड़ियों में एसी बहुत कम इस्तेमाल होता था। आज हालत ये है कि एक मिनट भी एसी के बिना नहीं रह सकते हैं। पहले स्कूल पैदल या साइकिल पर जाते थे। उनका घर जींद में शहर के अंदर था और घर के पास ही गोपाल विद्या मंदिर स्कूल है जहां वे पढ़ते थे। उस समय स्कूल में कमरे कम और खाली जगह ज्यादा होती थी। चारों तरफ पेड़ ही पेड़ दिखाई देते थे, लेकिन अब जब वे उस स्कूल को देखते हैं तो कमरे ही कमरे दिखाई देते हैं। यही हाल हमारे घर के आसपास का है। घर के आसपास खाली जगह पर ही वे दोस्तों के साथ क्रिकेट खेला करते थे, लेकिन अब वहां इतने पक्के मकान व इमारते बन गई हैं कि खेलना तो दूर वहां हर समय जाम जैसे हालात रहते हैं। आज हमने घर पर एक इंच भी जगह कच्ची नहीं छोड़ी है। क्रंकीट इतना हो गया है कि पेड़ पौधे छांव के लिए कम और सुंदरता के लिए ज्यादा इस्तेमाल किए जा रहे हैं। आज हमें बरगद और पीपल के पेड़ ढूंढने से भी नहीं मिलते हैं।
प्रदूषण बढ़ा तो पेड़ों का
महत्व पता चला
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जासं, कैथल : शिक्षा विभाग में जिला परियोजना संयोजक सुदेश सिवाच ने कहा कि वे सोनीपत के गांव बुटाना में रहती थी। करीब 40 वर्ष पहले की बात है गांव में स्कूल चौपाल में लगता था और नीम का पेड़ ही एसी का काम करता था, लेकिन एसी क्या बला है ये किसी को भी मालूम नहीं था। काम की बात ये है कि उस समय भी पेड़ पौधे लगाए जाते थे, लेकिन इतनी जरूरत नहीं थी। ऐसा नहीं है कि आज पेड़ पौधे बहुत कम हो गए हैं। ऐसा लगता है पेड़ पौधे पहले की तुलना में ज्यादा लगाए जा रहे हैं, लेकिन प्रदूषण इतना अधिक हो गया है कि अब ये पेड़ पौधे कम पड़ गए हैं। हम प्राकृतिक चीजों से दूर होते जा रहे हैं। प्रकृति के हम कितना नजदीक थे इसका एक उदाहरण ये भी है कि आज क्रंकीट के स्वीमिग पुल स्कूलों और प्राइवेट स्थानों पर बन गए हैं। उस समय भी बच्चे तैरते थे और आज से बेहतर तैरते थे, लेकिन तब स्वीमिग पुल का काम गांव के कच्चे तालाब करते थे। यही हाल हमारे खानपान और रहन सहन का है। आज आए दिन इजाद की जा रही सुख सुविधा की चीजें ही हमारे लिए परेशानी बन रही हैं।
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