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दूसरे खिलाड़ी ग्राउंड पर कार में जाते थे, मैं दौड़ता हुआ आता-जाता था

कर्मपाल गिल, जींद नरवाना के गांव उझाना के एथलीट मनजीत चहल। 27 दिन पहले तक उन्हें देश तो

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 11:43 PM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 11:43 PM (IST)
दूसरे खिलाड़ी ग्राउंड पर कार में जाते थे, मैं दौड़ता हुआ आता-जाता था
दूसरे खिलाड़ी ग्राउंड पर कार में जाते थे, मैं दौड़ता हुआ आता-जाता था

कर्मपाल गिल, जींद

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नरवाना के गांव उझाना के एथलीट मनजीत चहल। 27 दिन पहले तक उन्हें देश तो क्या, जींद और नरवाना के भी बहुत कम लोग जानते थे। 28 अगस्त को इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में एशियन गेम्स में 36 साल बाद 800 मीटर दौड़ में देश को गोल्ड मेडल दिलाया। इसके बाद वह देश में एथलेटिक्स की नई सनसनी बन गए हैं। वर्ष 2000 से मनजीत का सिर्फ एक ही जुनून है दौड़। प्यार है तो सिर्फ ग्राउंड से। जकार्ता से आने के बाद नेशनल कैंप ऑफ है। लेकिन मनजीत ने अपनी प्रैक्टिस दोबारा शुरू कर दी है। हर रोज सुबह-शाम नरवाना के नवदीप स्टेडियम में जाते हैं। रविवार को वह अपने पिता रणधीर ¨सह और बचपन के कोच मेवा ¨सह नैन के साथ दैनिक जागरण कार्यालय पहुंचे। इस दौरान यहां तक के सफर के बारे में विस्तार से बातचीत की।

मनजीत यानि मन को जीत लेना। इस बात को सार्थक करने वाले मनजीत ने एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल तक के संघर्ष के बारे में कहा कि 18 साल से संघर्ष ही कर रहा हूं। व्यक्ति को कामयाब होने के लिए मेंटली रूप से मजबूत होना पड़ता है। फील्ड चाहे पढ़ाई का हो, खेल का या अन्य कोई। शांत व ठंडे दिमाग से मन को समझाना पड़ता है। दिमाग को चंचल नहीं रखना। एक फोकस और लक्ष्य बनाकर उस पर मन को टिकाए रखना। मैंने सिर्फ यही काम किया। मेरा एक ही सपना था कि इस बार जकार्ता में गोल्ड लेकर आना है। इसके लिए हर कदम पर खुद को तपाया। जकार्ता जाने से पहले हमारा नेशनल कैंप ऊटी में था। वहां देश और विदेशों से लाखों लोग घूमने जाते हैं। मैं वहां छह महीने रहा, लेकिन मैं अपने कमरे और ग्राउंड के सिवाय कहीं नहीं गया। मुझे ऊटी के बारे में कुछ भी पता नहीं है। कैंप में दूसरे खिलाड़ी भी शामिल थे, आप में और उनमें क्या अंतर था? इस सवाल पर मनजीत का जवाब बताता है कि सपने को पूरा करने के लिए किस कदर मेहनत करनी होती है। मनजीत ने बताया कि हमारे कमरे से ग्राउंड तीन किलोमीटर दूर था। खिलाड़ियों को सुविधा थी कि वे कार में आ-जा सकते थे। सभी खिलाड़ी कार में ही आते-जाते थे। मैं अपना बैग कार में रखकर दौड़ता हुआ जाता था। रोज सुबह-शाम 6-7 घंटे की प्रैक्टिस होती थी। पहाड़ी एरिया में आक्सीजन की कमी थी। वहां 3-4 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद शरीर में इतनी जान भी नहीं बचती थी कि ग्राउंड से बाहर निकलकर कार में बैठ सकूं। लेकिन मन में मेडल की जिद ठान रखी थी। इसलिए दोनों समय वापसी में भी दौड़ता हुआ आता था। हर समय सिर्फ पॉजीटिव रहा। का परिणाम रहा कि देश की झोली में मेडल डाल सका।

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--लगातार विफलताओं पर पिता ने कहा था, खेल छोड़ दे या टॉपर बनकर दिखा

मनजीत चहल ने बताया कि 2014 इंचियोन एशियन गेम्स में चयन न होने पर बड़ा झटका लगा था। तब ट्रायल में जिनसन जॉनसन और उसके समय में करीब 15 सेकेंड का ही अंतर था। ऐसे में दोनों खिलाड़ियों को इंचियोन भेजा जा सकता था, लेकिन सिर्फ जॉनसन को ही भेजा गया। इसके अगले साल 2015 में एशियन चैंपियनशिप के लिए हुए ट्रायल में भी दोनों धावकों में सेकेंडों का अंतर था। तब भी सिर्फ जॉनसन को ही भेजा गया। इसी साल अप्रैल में आस्ट्रेलिया के ग्लास्गो में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए ट्रायल में जॉनसन ने 1:46:32 मिनट में दौड़ लगाई थी और मनजीत ने 1:46:42 मिनट में। तब भी मंजीत को आस्ट्रेलिया नहीं भेजा गया। इससे खफा होकर मनजीत के पिता रणधीर ¨सह ने बेटे से कह दिया था कि या तो खेलना बंद करके घर का काम करने लग जा या ऐसा काम कर कि कोई भी तुझे रोक न सके। मनजीत ने पिता और कोच मेवा ¨सह नैन से वादा किया कि जकार्ता एशियन गेम्स में मेडल लेकर ही आउंगा। इसके बाद उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। मनजीत कहते हैं हार मैं कभी मानता नहीं। मैं सोचता हूं या तो हार होगी या सीख होगी। ग्लास्गो कॉमनवेल्थ न भेजने पर मन में और ज्यादा खुंदक बढ़ गई थी कि एशियन के लिए और अच्छा करना है। ------------------

--पिता बोले: बहू का त्याग हमसे भी ज्यादा

मनजीत के पिता रणधीर ¨सह ने बताया कि पांच महीने पहले जब पुत्रवधू गर्भवती थी और बच्चा होने वाला था, तब मनजीत घर छोड़कर बेंगलुरू ट्रे¨नग कैंप में चला गया। बेटा पैदा होने के बाद मां, पत्नी और भाई के कई बार कहने के बावजूद वह घर नहीं आया। मनजीत ने सबको कह दिया था कि घर को आप संभालो। अब मैं बेटे के लिए मेडल लेकर ही घर आउंगा। मनजीत के पिता कहते हैं कि जब बेटे ने मेडल जीता तो पूरे परिवार की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे। बेटे के साथ त्याग करने वाली एमएससी मैथ बहू किरण तो कमरे में काफी देर तक खुशी से रोती रही। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। बार-बार बेटे को चूम रही थी। सास बिमला के गले लग रही थी। वह कहते हैं कि बहू किरण ने सबसे ज्यादा त्याग किया है। उसने एक बार भी मनजीत का हौसला नहीं टूटने दिया।

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प्रैक्टिस किए बगैर नींद नहीं आती थी

मनजीत ने बताया कि उसने हमेशा अपनी सोच को पॉजीटिव रखा। यार-मित्र तो कम निकलने तक होते हैं। उसे कभी परेशानी होती थी तो पिता, कोच व रिश्तेदारों से बात करता था। एक बार लगा था कि अब रास्ता बंद हो गया है, तब मौसाजी शिक्षक रामफल ¨सह खटकड़ ने जोश भरते हुए कहा था कि पूरी जवानी इसी में गुजार दी है। इसलिए दूसरा सोचने की बजाय इसी में कुछ करके दिखा। इससे हौसला बढ़ा। ऊटी या भूटान में अक्सर बारिश के कारण ट्रे¨नग नहीं हो पाती थी, लेकिन उसे प्रैक्टिस किए बगैर नींद नहीं आती थी। वह रेस्ट वाले दिन भी योग व अन्य व्यायाम करता था।

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--आगामी योजना: व‌र्ल्ड व एशियन चैंपियनशिप की तैयारी

भविष्य की तैयारियों के बारे में मनजीत ने बताया कि अगले साल एशियन चैंपियनशिप व विश्व चैंपियनशिप होनी है। इनमें ओलंपिक क्वालीफाई के लिए टाइम निर्धारित किया जाएगा। गोल्ड लाने पर सीधे ओलंपिक में इंट्री हो जाएगी। मैंने जकार्ता में 1 मिनट 46.15 सेकेंड का अपना सर्वश्रेष्ठ समय निकाला था। अब इसमें और सुधार करूंगा।


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