जाति ही पूछो साधु की के मंचन से शिक्षा व्यवस्था पर किया कटाक्ष
मोती लाल नेहरू पब्लिक स्कूल सभागार में ऑल इंडिया शिक्षा एवं विकास एसोसिएशन सफीदों की ओर से जाति ही पूछो साधु की नाटक के मंचन से कलाकारों ने शिक्षा व्यवस्था पर कटाक्ष किया।
जागरण संवाददाता, जींद : संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली के तत्वावधान में मोती लाल नेहरू पब्लिक स्कूल सभागार में ऑल इंडिया शिक्षा एवं विकास एसोसिएशन सफीदों की ओर से जाति ही पूछो साधु की नाटक के मंचन से कलाकारों ने शिक्षा व्यवस्था पर कटाक्ष किया। नाटक का शुभारंभ आठवां वचन विप्र फाउंडेशन के संयोजक रामनिवास शर्मा ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मार्केटिग बोर्ड रोहतक सर्कल के अधीक्षक अभियंता नवीन दहिया ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में बीएम पंवार, राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेता सुभाष ढिगाना, वरदान अस्पताल के निदेशक मीना शर्मा व स्कूल के प्राचार्य रविद्र कुमार रहे। इस प्रकार रही कहानी
नाटक की कहानी महीपत नामक एक आदमी के इर्द-गिर्द घूमती है। महीपत पिछड़ी जाति का एक बेरोजगार युवक है, जो किसी तरह थर्ड डिवीजन से हिदी भाषा एवं साहित्य में एमए पास कर लेता है। वह लेक्चरार बनना चाहता है, लेकिन दौलत के अभाव व बड़ी सिफारिश न होने के चलते किसी भी सरकारी और प्राइवेट कॉलेज में उसे नौकरी नहीं मिलती। जब भी वह किसी इंटरव्यू में जाता तो पिछड़ी जाति का होने का कारण उसे रिजेक्ट कर दिया जाता। इंटरव्यू में विषय से संबंधित प्रश्न पूछने के बजाए उस से उसकी जाति से संबंधित सवाल जवाब किए जाते। इसी बीच थोड़ी मशक्कत करने के बाद उसका सपना साकार हो जाता है और वह एक ग्रामीण प्राइवेट कॉलेज में लेक्चरार बन जाता है। क्योंकि उस पद के लिए वही अकेला उम्मीदवार था। वहां उसका सामना भवना नाम के एक शरारती बच्चे से होता है, लेकिन महीपथ का स्वभाव उस बच्चे को बदल देता है। धीरे-धीरे दोनों में गहरी दोस्ती हो जाती है। एक दिन कॉलेज कमेटी का चेयरमैन अपनी भतीजी नलिनी को लेक्चरार बनाकर कॉलेज ले आता है। नलिनी और महीपथ एक दूसरे से प्यार करने लगते है। इसकी भनक कॉलेज प्राचार्य को लग जाती है और वह चेयरमैन को इस बारे में सब कुछ बता देता है। चेयरमैन महीपथ को उसकी जाति पर काफी बुरा भला कहता है और नलिनी की मौसी पूतना को कॉलेज ले आता है। महीपथ नलिनी को हर हाल में पाना चाहता है और उसे भगा कर ले जाने की योजना बनाता है। इसमें उसका साथ शरारती बच्चा भवना देता है। लेकिन गलती से भवना नलिनी के बजाए पूतना मौसी को उठाकर ले आता। जब चेयरमैन को इसकी जानकारी मिलती है तो महीपथ की काफी पिटाई होती है और नलिनी भी उसका साथ छोड़ देती है। महीपत एक बार फिर पढ़े-लिखे बेरोजगार की पोजीशन में पहुंच जाता है। नाटक के अंत में वह नलिनी को तो खो ही देता है साथ ही में नौकरी से भी हाथ धो बैठता है।