महिलाओं की आरक्षित सीटों पर यात्रा कर रहे पुरुष यात्री
हरियाणा रोडवेज के जींद बस अड्डे पर महिलाओं को उनके अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं। इसके चलते महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर पुरुष यात्री सफर करते आम देखे जा सकते हैं।
जागरण संवाददाता, जींद : हरियाणा रोडवेज के जींद बस अड्डे पर महिलाओं को उनके अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं। इसके चलते महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर पुरुष यात्री सफर करते आम देखे जा सकते हैं। अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं होने के कारण महिलाएं बस में खड़ी होकर यात्रा करने को मजबूर हैं।
बता दें कि रोडवेज की बस में महिलाओं के लिए 15 सीटें आरक्षित होती हैं। नियमों के अनुसार हर महिला को सफर के दौरान अपनी आरक्षित सीटों पर बैठे पुरुष यात्रियों से अपनी सीट मांगने का अधिकार है, लेकिन हकीकत इसके ठीक विपरीत है। महिलाओं की सीट पर पुरुष यात्री बैठे रहते हैं। डिपो में बसों की कमी के कारण बस अड्डे पर हर रोज सीटों को लेकर मारामारी का माहौल देखा जा सकता है। कई बार रोडवेज की बसें बूथ पर लगती हैं तो परिचालकों द्वारा सीट नंबर देकर अग्रिम बुकिग की जाती है तो महिलाओं को सीट देने का नियम यहीं पर टूट जाता है। परिचालक महिलाओं की आरक्षित सीटों को भी पुरुष यात्रियों को दे देते हैं। हरियाणा राज्य परिवहन निदेशालय की ओर से जारी निर्देशों के अनुसार बस अड्डे पर हर 30 मिनट में यह अनाउंस करना होता है कि सभी चालक-परिचालक महिलाओं और दिव्यांगों तथा वरिष्ठ नागरिकों को उनकी आरक्षित सीट पर बैठाएं। सभी यात्रियों विशेष तौर पर महिलाओं के साथ सभ्य व्यवहार करें।
बस की यह सीटें होती हैं महिलाओं के आरक्षित
हरियाणा रोडवेज की बसों में सीट नंबर 7, 8, 9, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 20, 21 तथा 25 और 26 महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इन पर यदि कोई अन्य महिला नहीं बैठी है तो कोई भी महिला इन सीटों पर बैठे पुरुष यात्री से दूसरी सीट पर बैठने के लिए कह सकती हैं। इसके अलावा वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगों, स्वतंत्रता सेनानी के लिए 4, 5, 6 नंबर सीट रोडवेज की बसों में आरक्षित होती है।
दिल्ली, चंडीगढ़ में होती हैं नियमों की पालना तो यहां क्यों नहीं
रोडवेज बसों में आरक्षित सीटों पर महिलाओं के अधिकार की बात करें तो दिल्ली जैसे बड़े शहर से सीख लेने की जरूरत है। दिल्ली में दौड़ने वाली डीटीसी बसों, मेट्रो में आरक्षित सीटों पर बैठने के लिए महिलाएं कहती हैं तो यात्री खुद भी बिना किसी आपत्ति के उन्हें सीट दे देते हैं। हैरानी की बात यह है कि इस क्षेत्र के लोग भी दिल्ली जाकर वहां की बसों में बिना किसी सख्ती के पूरे नियमों की पालना करते हैं लेकिन यहां पर नहीं।
युवा पीढ़ी में संस्कार हो रहे खत्म: डॉ. पांचाल
मैंने 1993 में यमुनानगर के डीएवी डेंटल कॉलेज से बीडीएस व एमडीएस की थी। तब बसों में यमुनानगर आते-जाते थे तो कोई भी बुजुर्ग महिला व पुरुष या विकलांग सवारी को अपनी सीट पर बैठा देते थे। यह संस्कार उस समय की पूरी पीढ़ी में थे। लेकिन अब शिक्षा का विस्तार होने के बावजूद युवाओं में ये संस्कार खत्म हो रहे हैं। बस में बुजुर्ग, महिला व विकलांग को सीट देने के साथ उन्हें उतरने-चढ़ने में भी मदद करनी चाहिए। यह हमारे संस्कारों व संस्कृति का हिस्सा है।
डॉ. रमेश पांचाल, वरिष्ठ दंत चिकित्सक
यह कहते हैं डिपो के वर्कशाप मैनेजर
जींद डिपो के वर्कशाप मैनेजर गुलाब सिंह दूहन का कहना है कि महिलाओं और बुजुर्गों तथा दिव्यांगों को सीटें दिलाई जाएं, इसके निर्देश जारी करते रहते हैं। बसों में सीटों पर लिखा भी गया है। अकेले चालक-परिचालक के सहयोग से बात नहीं बन पा रही, इसके लिए पुरूष यात्रियों को भी सहयोग करना होगा। अगर पुरुष यात्री सहयोग करेंगे तो महिलाओं को बसों में सीट की दिक्कत नहीं आएगी।