ब्लॉक का तो बस बहाना है
स्कीम नंबर पांच-छह में नगर परिषद कांग्रेस कार्यालय के सामने से नेहरू पार्क की तरफ जाने वाले रास्ते को उखाड़ने का यहां के लोग विरोध कर रहे हैं।
स्कीम नंबर पांच-छह में नगर परिषद कांग्रेस कार्यालय के सामने से नेहरू पार्क की तरफ जाने वाले रास्ते को उखाड़ने का यहां के लोग विरोध कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि यहां नगर परिषद सड़क को उखाड़ कर ब्लॉक बिछाएगी, जोकि गलत है। वहीं दूसरी तरफ नगर परिषद अधिकारियों के अनुसार ये रास्ता करीब 60 फीट चौड़ा है। यहां स्कीम नंबर पांच व छह की ज्वाइंट सड़क है, जिसमें से स्कीम नंबर पांच की पूरी गली पर कब्जा है और स्कीम नंबर छह वाली ही गली आने-जाने में प्रयोग हो रही है। स्कीम नंबर पांच वाली गली की जमीन पर लोगों ने मकानों के आगे चबूतरे और पार्किंग स्थल बनाए हुए हैं। उनको उखाड़ कर गली बनाई जाएगी। पिछले दिनों इस जगह को उखाड़ने पर लोगों ने विरोध भी किया था। जिससे लगता है कि यहां इंटरलॉकिग पेवर ब्लॉक की आड़ में असल विरोध कब्जे छूटने का है।
सेफ हाउस में सुविधाओं का टोटा
महिला आयोग की सदस्य सुमन बेदी ने इसी सप्ताह सेफ हाउस का निरीक्षण किया। वहां की व्यवस्थाएं देख कर आयोग की सदस्य ने नाराजगी व्यक्त की। दरअसल जिला जेल के वार्डन हॉस्टल में सेफ हाउस बनाया गया है। जहां प्रेमी जोड़ों के हॉल में ठहरने की व्यवस्था की गई है। पर्याप्त बैड नहीं हैं, जिसके चलते जमीन पर गद्दे डाले गए हैं। महिला आयोग ने माना कि सेफ हाउस में पूरी व्यवस्था अस्त-व्यस्त है। सेफ हाउस में प्रेमी जोड़ों को सुरक्षा व अन्य सुविधाएं देना सरकार व महिला आयोग की जिम्मेदारी है। सेफ हाउस को वार्डन हॉस्टल की बजाय किसी दूसरी बिल्डिग में शिफ्ट कराने के लिए डीसी, एसएसपी व जेल अधीक्षक को महिला आयोग पत्र लिखेगा। व्यवस्था से असंतुष्ट आयोग की टीम ने जल्द ही सेफ हाउस का दोबारा दौरा करने की बात कही। ये देखना होगा कि महिला आयोग के दौरे का कितना असर पड़ता है।
काटने पड़ रहे चक्कर
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के मकान का सपना देखने वाले गरीब परिवारों का इंतजार लंबा होता जा रहा है। दो साल पहले आवेदन करने वाले सैकड़ों लोग कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं। अधिकारियों के पास आते हैं, तो एक ही जवाब मिलता है कि अभी बजट नहीं आया है। 6600 से ज्यादा परिवारों ने मकान के लिए ऑनलाइन आवेदन किए हुए हैं। पक्के मकान मिलने की आस में ये लोग अपने कच्चे मकानों में दिन काट रहे हैं। कभी सरपंच के यहां तो कभी अधिकारियों के यहां फरियाद लगा रहे हैं। अभी तो मुख्यालय से बजट जारी नहीं हुआ है। बजट जारी होने के बाद भी प्रक्रिया इतनी लंबी है कि महीनों नहीं, सालों लग जाते हैं। तीन-चार साल पहले आवेदन करने वाले कई पात्र परिवारों की किस्त की राशि पिछले साल मिली है। दो साल पहले आवेदन करने वालों का सपना कब पूरा होगा।