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कायाशोधन तीर्थ के नाम पड़ा था कहसून गांव का नाम, उसी तीर्थ की हालत दयनीय

जिस कायाशोधन तीर्थ के नाम पर कहसून गांव का नाम पड़ा उस तीर्थ की हालत इतनी दयनीय हो चुकी है कि यह अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहा है। तीर्थ में पानी नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 Nov 2019 07:20 AM (IST)Updated: Mon, 25 Nov 2019 07:20 AM (IST)
कायाशोधन तीर्थ के नाम पड़ा था कहसून गांव का नाम, उसी तीर्थ की हालत दयनीय
कायाशोधन तीर्थ के नाम पड़ा था कहसून गांव का नाम, उसी तीर्थ की हालत दयनीय

जागरण संवाददाता, जींद : जिस कायाशोधन तीर्थ के नाम पर कहसून गांव का नाम पड़ा, उस तीर्थ की हालत इतनी दयनीय हो चुकी है कि यह अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहा है। तीर्थ में पानी नहीं है। छात्राओं के लिए बस सुविधा नहीं है और गंदे पानी की निकासी के भी कोई इंतजाम नहीं है। खेल सुविधाओं के नाम पर गांव में कुछ भी नहीं है।

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हम बात कर रहे हैं जींद जिले के उचाना ब्लाक के कहसून गांव की। कहसून गांव महाभारतकालीन गांव माना जाता है। कहसून गांव की आबादी लगभग 8 हजार है। यहां प्रसिद्ध हर्बल पार्क भी है, जिसमें दर्जनों किस्म के पौधे हैं। गांव के सरकारी स्कूल को सौंदर्यकरण में जिले में पहला स्थान हासिल हो चुका है लेकिन अभी भी गांव में कुछ समस्याएं हैं, जो पिछले काफी सालों से लोगों को झेलनी पड़ रही हैं।

गांव का इतिहास

महाभारत काल में जब राजा कुरु (कौरव) को कोढ़ (कुष्ठ रोग) लग गया था। किसी महर्षि द्वारा राजा कुरु को कायाशोधन तीर्थ में स्नान करने के लिए कहा था। राजा कुरु जब कायाशोधन तीर्थ पहुंचे तो तीर्थ में पानी नहीं मिला। तीर्थ में पानी नहीं होने के कारण राजा कुरु ने तीर्थ की मिट्टी का लेप अपने हाथों पर और जहां पर कुष्ठ रोग का प्रभाव था, वहां पर लगा लिया। इससे राजा कुरु का कोढ़ दूर हो गया। इसके बाद यह जगह कायाशोधन से बदलते-बदलते कहसून के रूप में बदल गई। गांव का नाम कहसून पड़ गया।

अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहा कायाशोधन तीर्थ

इस समय गांव का प्रसिद्ध कायाशोधन तीर्थ अपने अस्तित्व बचाने की जंग लड़ रहा है। कायाशोधन तीर्थ में पिछले काफी अर्से से पानी नहीं भरा है। इससे इसकी प्रसिद्धी पर विपरित असर पड़ रहा है। ग्रामीणों द्वारा प्रशासन से मांग की जा चुकी है कि तीर्थ में पानी भरवाया जाए लेकिन अभी तक इसमें पानी नहीं भरवाया गया है।

छात्राओं के लिए नहीं परिवहन सुविधा

कहसून गांव से 50 से ज्यादा छात्र-छात्राएं जींद और उचाना शिक्षण संस्थानों में पढ़ने के लिए जाते हैं। सरकार बेशक बेटी पढ़ाने और बेटी बचाने का नारा दे रही है लेकिन कहसून गांव में आकर इस नारे की हवा निकल रही है। छात्राओं के लिए परिवहन की कोई सुविधा नहीं है। मात्र एक बस गांव से होकर गुजरती है। छात्राओं को कभी बसों की खिड़कियों में लटककर तो कभी दूसरे निजी वाहनों का सहारा लेना पड़ता है।

पानी की निकासी की नहीं कोई व्यवस्था

गांव में गंदे पानी की निकासी को लेकर कोई व्यवस्था नहीं है। घरो से निकलने वाला गंदा पानी यूं ही खुले में फैल रहा है। हर समय गांव की गली गंदगी से अटी रहती है। जो बीमारियों को खुला न्यौता है।

--मुकेश कुमार, ग्रामीण।

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खेल सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रही प्रतिभाएं

गांव में खेलने के लिए स्टेडियम तो दूर की बात, कोई खाली ग्राऊंड भी नहीं है, जहां पर खेला जा सके। कभी बच्चे गांव के ग्राम सचिवालय में खेलते हैं तो कभी श्मशान घाट के पास खाली पड़ी जमीन पर खेलते हैं। सड़क पर ही युवाओं को रेस लगानी पड़ रही है। ग्राम पंचायत द्वारा स्टेडियम के लिए 5 एकड़ तक जमीन उपलब्ध करवाने की बात प्रशासन को कही जा चुकी है लेकिन बात नहीं बनी।

-सोनू कौशिक, ग्रामीण।

वर्जन

रजबाहा आने पर तीर्थ में पानी भरवाया जाएगा। गंदे पानी की निकासी को लेकर भी उचित कदम उठाए जाएंगे। खेल स्टेडियम की मांग कई बार पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व विधायक से की जा चुकी है अभी तक तो उनकी मांग पूरी हुई नहीं है।

--नरेश सरपंच, कहसून।


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