जींद के पहले साहित्यकार रामशरण युयुत्सु, जिन पर छपा अभिनंदन ग्रंथ
हिदी साहित्य के गौरव और जींद की सौंधी माटी में पैदा हुए रामशरण युयुत्सु का नाम रविवार को साहित्य की दुनिया में सुनहरे अक्षरों में लिख दिया गया।
कर्मपाल गिल, जींद
हिदी साहित्य के गौरव और जींद की सौंधी माटी में पैदा हुए रामशरण युयुत्सु का नाम रविवार को साहित्य की दुनिया में सुनहरे अक्षरों में लिख दिया गया। साहित्य में गहरी पैठ रखने वाले युयुत्सु के काव्य संग्रहों, कहानियों, निबंध, जीवनी, यात्रा संस्मरण व लघुक पर अभिनंदन ग्रंथ लिखा गया है। दो भागों में 1156 पेजों में छपे 28 अध्यायों के इस ग्रंथ में युयुत्सु के अधिकांश लेखों को श्रृंखलाबद्ध रूप से प्रकाशित किया है। रविवार को इस अभिनंदन ग्रंथ का विमोचन किया गया। यह गौरव हासिल करने वाले युयुत्सु जींद के पहले कवि बन गए हैं।
हिदी के किसी बड़े विद्वान या साहित्यकार का नाम सुनते हैं तो एकबारगी में मन में ख्याल आता है कि किसी विश्वविद्यालय में बड़े प्रोफेसर होंगे। लेकिन जींद के वरिष्ठ साहित्यकार रामशरण युयुस्तु इनसे अलग हैं। मात्र दसवीं पास हैं, लेकिन साहित्यकारों की श्रेणी में अग्रिम पंक्ति में स्थान रखते हैं। कहानियों, कविताओं, यात्रा वृतांत की अनेक किताबें लिखी। अनेकों पुस्तकों का संपादन किया। साहित्य के प्रति उनके इस अनुराग के कारण ही हिदी के विद्वान साहित्य वाचस्पति स्वामी डॉ. ओमानंद सरस्वती ने उन पर अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित किया है। हरियाणा साहित्य अकादमी से एक लाख रुपये के विशेष साहित्य सेवी सम्मान-2010 और ताम्रपत्र से सम्मानित रामशरण युयुत्सु की पहचान हरियाणा के मौन साहित्यकार के रूप में है। उन्होंने अपना पूरा जीवन मौन साधक की तरह जीया। करीब 18 साल से कैंसर से जूझ रहे युयुत्सु के साहित्य की खास बात यह है कि उन्होंने जो महसूस किया, वही सहजता से लिख दिया। साहित्य के प्रति उनके निस्वार्थ समर्पण को देखकर ही पहली मुलाकात में स्वामी ओमानंद ने उनके इतने बड़े साहित्य पर अभिनंदन ग्रंथ लिखने का निर्णय ले लिया था। यायावरी वृति के साहित्यकार युयुत्सु ने गृहस्थ संत की तरह साहित्य की हर विधा पर अपनी लेखनी चलाई है। अपने लेखन में पीढि़यों के फासले को मिटाते हुए हरियाणा के लोक साहित्य एवं संस्कृति पर अद्वितीय काम किया है। युयुत्सु --यूं लिखा उपनाम युयुत्सु
अपने नाम के साथ युयुत्सु क्यों लिखना शुरू किया, इस सवाल पर रामशरण जी बताते हैं कि पहले वे कभी-कभार दहशरे, दीवाली या अन्य अवसरों पर कविताएं लिखते थे। 1980 में जब धर्म-अधर्म पर कविताएं लिखनी शुरू की तो युयुत्सु उपनाम लिखना शुरू किया। वे बताते हैं कि युयुत्सु महाभारत का पात्र था, जो धर्म से ओर से लड़ा था। भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध शुरू होने से पहले कहा था कि धर्म की ओर से लड़ने वाले मेरे पक्ष में आ जाएं और अधर्म की ओर से लड़ने वाले दुर्योधन के पक्ष में चले जाएं। तब युयुत्सु ने धृतराष्ट्र का पुत्र होने के बावजूद श्रीकृष्ण के पक्ष में आकर युद्धा लड़ा था।