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नौकरी छोड़ तीन साल में बदल दी कूड़े के ढेर में हाथ डालने वाले बच्चों की दुनिया

युवा दंपती शारदा-मोहित टपरीवास कालोनी के घुमंतू समाज के बच्चों को बेसिक शिक्षा दे रहे हैं। शारदा ने नौकरी छोड़ इस नेक कार्य को अंजाम दिया, जिसमें उनके पति मोहित ने भी सहयोग दिया।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 17 Jun 2018 01:15 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jun 2018 12:14 PM (IST)
नौकरी छोड़ तीन साल में बदल दी कूड़े के ढेर में हाथ डालने वाले बच्चों की दुनिया
नौकरी छोड़ तीन साल में बदल दी कूड़े के ढेर में हाथ डालने वाले बच्चों की दुनिया

जींद [कर्मपाल गिल]। तीन साल पहले इन बच्चों की दुनिया ही अलग थी। ये कूड़े के ढेरों में हाथ मारते थे। कई दिनों तक नहाते नहीं थे। मगर अब इनकी जिंदगी में अच्छे दिन आ गए। अब ये 107 बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ रहे हैं। यह सब हुआ है शारदा और उनके पति मोहित आशरी के प्रयासों से। एमए-बीएड शारदा ने निजी स्कूल की नौकरी छोड़ इस नेक कार्य को अंजाम दिया, जिसमें उनके पति मोहित आशरी ने भी सहयोग दिया। मोहित जीडी गोयंका स्कूल में अकाउंटेंट हैं।

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मोहित और शारदा बताते हैं कि करीब तीन साल पहले वह जयंती देवी मंदिर के सामने टपरीवास कालोनी स्थित पीर बाबा की मजार पर गए थे। इस दौरान प्रसाद लेते समय बच्चों में छीना-झपटी हो रही थी। यह देख पास बैठे बुजुर्ग हवा सिंह ने कहा कि कोई इन बच्चों को भी पढ़ा दे तो इनकी जिंदगी सुधर जाएगी। यह बात उनके दिल को लग गई। शारदा बताती हैं कि उन्होंने अगले ही दिन प्राइवेट स्कूल से टीचर की नौकरी छोड़ दी और इन बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठा लिया।

शुरुआत में आई कईं मुसीबतें

शारदा बताती हैं कि शुरुआत में इन बच्चों के माता-पिता ने कोई सहयोग नहीं किया। वह जब भी कालोनी में जाते तो इनके मां-बाप कहते कि हमारे बच्चे नहीं पढ़ेंगे। हमारा काम मांगना-खाना है। यहां से भाग जाओ। आगे से इधर नहीं आना। बावजूद इसके उन्होंने सुबह-शाम जाना जारी रखा। काफी प्रयास के बाद तीन-चार बच्चे पढ़ने के लिए आए, लेकिन पढ़ाने के कोई जगह नहीं थी तो पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाना शुरू कर दिया।

इसके बाद कालोनी की धर्मशाला में डेढ़ साल तक बिना पंखे के पढ़ाया। बाद में, नगर परिषद और लोगों के सहयोग से धर्मशाला में खिड़की-दरवाजे लगवाए। फर्श लगवाया और बिजली कनेक्शन कराया। शारदा बताती हैं कि वह रोज सुबह-शाम 3-3 घंटे यहां आती हैं। शाम को पति भी आते हैं। शुरू में पेन, पेंसिल, कापियां व किताबें भी खुद दी। बेसिक ज्ञान के बाद बच्चों का सरकारी स्कूल में दाखिला कराया। तीन साल में अब तक वह 107 बच्चों का दाखिला करा चुकी हैं। अब समिति के संरक्षक डीसी विकास व अन्य लोग भी सहयोग करने लगे हैं।

आधार कार्ड व जन्म प्रमाणपत्र नहीं बन रहे

टपरीवास कालोनी के बुजुर्ग हवा सिंह कहते हैं कि शारदा व मोहित आशरी उनके बच्चों के लिए भगवान बनकर आए हैं। उन्होंने इनकी जिंदगी बदल दी। अब कोई धर्मशाला में आता है कि ये बच्चे खड़े होकर उनके पैर छूते हैं। कूड़ा उठाना बंद कर दिया है। हां, आधार कार्ड व जन्म प्रमाणपत्र नहीं होने के कारण सरकारी स्कूल में दाखिले में दिक्कत आ रही है।

अब जीतकर ला रहे मेडल

मोहित आशरी बताते हैं कि अब ये बच्चे कई प्रतियोगिताओं में मेडल जीतकर लाने लगे हैं। जेसीआइ जींद सेंट्रल व वी प्लस यू की ओर से आयोजित एक शाम शहीदों के नाम डांस कार्यक्रम में रनरअप रहे। सीआरएस यूनिवर्सिटी में योग दिवस पर मेडल जीता। जीडी गोयंका स्कूल व रंगशाला में सांस्कृतिक कार्यक्रम में शानदार डांस प्रस्तुति दी।


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