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भक्ति में बुद्धि विचार का काम नहीं : संत कंवर

राधास्वामी दिनोद के परमसंत सतगुरु कंवर ने कहा कि वसंत पंचमी का दिन राधास्वामी मत के लिए सबसे बड़ा दिन है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 11 Feb 2019 10:58 AM (IST)Updated: Mon, 11 Feb 2019 10:58 AM (IST)
भक्ति में बुद्धि विचार का काम नहीं : संत कंवर
भक्ति में बुद्धि विचार का काम नहीं : संत कंवर

संवाद सूत्र, सफीदों : राधास्वामी दिनोद के परमसंत सतगुरु कंवर ने कहा कि वसंत पंचमी का दिन राधास्वामी मत के लिए सबसे बड़ा दिन है। कोई अपने कल्याण के लिए तीर्थ पर जाता है, कोई गंगा में स्नान करने के लिए जाता है, तो कोई लौकिक भक्ति का तरीका अपनाता है, लेकिन राधास्वामी मत के लोगों के लिए सबसे बड़ा तीर्थ, सबसे बड़ा स्नान और सबसे बड़ी भक्ति वसंत पंचमी है। इसी दिन राधास्वामी मत के अधिष्ठाता स्वामी ने अपने गुरुमुख शिष्य राय शालिग्राम के आग्रह पर सत्संग को आम जीवों के लिए 1861 में जारी किया था।

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सफीदों के पास अंटा गांव में राधास्वामी आश्रम में हजारों की संगत को सत्संग फरमाते हुए हुजूर कंवर साहेब ने कहा कि जिस दिन से कोटीन जीवों की मुक्ति का रास्ता खुला, उससे बड़ा दिन सत्संगियों के लिए हो ही नहीं सकता। राधास्वामी सत्संग दिनोद के लिए तो यह और भी बड़ा दिन है, क्योंकि वसंती पंचमी के दिन ही अंटा गांव की इस पावन भूमि पर परमसंत ताराचंद अपना मौन व्रत खोला करते थे। वसंत पंचमी हरियाली का भी संदेश देता है। चौरासी योनियों में भटकने के बाद जीव के जीवन में हरियाली लाने का काम भी संतों का सत्संग करता है।

उन्होंने फरमाया कि जैसे योद्धा बिना हथियार के नहीं लड़ सकता। जीव भी काल देश में नाम रूपी हथियार से काल माया रूपी शत्रु से लड़ सकता है। इंसान और दूसरे जीवों में मुख्य अंतर ही यह है कि इंसान अपनी करनी से परम सत्य को पा सकता है। गुरु का महत्व गाने का औचित्य भी यही है कि गुरु करनी करने का मार्ग बताता है। गुरु सतपुरुष का सन्देश लेकर ही देह धरते हैं। गुरु का संदेश तभी सार्थक होगा, जब हम उसको मन से आत्मसात करेंगे। भक्ति में बुद्धि विचार का काम नहीं है। ये तो प्रेम प्रीत प्रतीत से संभव है। भक्ति कमानी है, तो अपना नजरिया बदलना पड़ेगा। जैसे दूध के पात्र में यदि थोड़ा सा भी खट्टा पड़ जाता है, तो वह फट जाता है। उसी प्रकार हमारे अच्छे विचारों को एक छोटा सा बुरा विचार भी दूषित कर सकता है। गुरु महाराज ने चेताया कि नाम की महत्ता को ही हम नहीं समझ पा रहे। ज्यादातर लोग तो नाम को अपनी शारीरिक बीमारी को ठीक करने के लिए, सांसारिक चाह की पूर्ति के लिए लेते हैं। हम ये भूल जाते हैं कि शरीर के रोग तो कर्म के भोग हैं। ये तो मामूली व्याधियां हैं, जो नाम इस भवसागर से तारता है, उनके आगे ये सांसारिक चाह और व्याधियां कहां टिकेंगी। मां-बाप की सेवा करो, पर्यावरण बचाओ

गुरु कंवर ने कहा कि मनुष्य के पीछे अनगिनत चोर लगे हैं। अनेक ठग लगे हैं। कभी मद अपना रूप दिखाता है तो कभी लोभ। कभी मोह भटकाता है तो कभी माया ठगती है। इससे भी बड़ा दुश्मन है अहंकार। किसी को पद का अहम है, तो किसी को बल का। किसी को धन का तो किसी को रूप का। गुरु की शरण आपके अहंकार को खत्म करती है। गुरु आपको दया दीनता और सेवा के गुण देता है। उसमें दया दीनता और सेवा आ गई, उसके मन में प्रेम प्रीत और प्रतीत उत्पन्न हो जाती है। राधास्वामी मत भी प्रेम प्रीत और प्रतीत पर बल देता है। गुरु महाराज ने कहा कि वसंत पंचमी सरस्वती की पूजा का भी दिन है। आज के दिन की महत्ता यही है कि आप संकल्प लेकर जाओ कि जो बीत गया वो बीत गया। अब तो चेतना है। जो नाम सुमिरन नहीं करता, वह आज से करेगा और जो करता है, वह और ज्यादा समय इसमें लगाएगा। अपने मां-बाप की सेवा किया करें। प्रकृति और पर्यावरण का ख्याल रखे। इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।


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