अगर नजर में इतनी ताकत होती तो दुनिया वाले किसी को आगे न बढ़ने देते : अचल
संवाद सूत्र, उचाना : चातुर्मास के अंतिम पखवाड़ा में एसएस जैन सभा में सुदर्शन संघ के चातुर्मास में
संवाद सूत्र, उचाना : चातुर्मास के अंतिम पखवाड़ा में एसएस जैन सभा में सुदर्शन संघ के चातुर्मास में मानव महल की रचना को आगे बढ़ाते हुए गुरु अचल मुनि ने फरमाया कि महल बन रहा है। जब महल बन जाता है तो उसके बाहर एक बट्टू भी लगाया जाता है जिससे नजर बट्टू भी कहते हैं ताकि आने-जाने वाले वाले किसी की गलत नजर न लगे। वैसे जैन दर्शन कभी भी किसी नजर के द्वारा होने वाले नुकसान पर विश्वास नहीं करता है। जैन दर्शन सदा कर्म पर पुरुषार्थ पर भरोसा करता है। मानव महल में भी हमें शुभ दृष्टि का, शुभ भावना का व खुशी का बट्टू लगाना है। दृष्टि व नजर शुभ हो गलत न हो। जब कोई अच्छी बड़ी चीज बनती है तो लोगों को नजर लगाने का भय बन रहता है। इसी कारण से बच्चों के कान के पीछे व पैरों के तले पर काला तिलक लगाते हैं ताकि नजर से बच जाए। ये सब हमारी भ्रांत एवं मिथ्या कल्पनाएं हैं। अगर नजरों में इतनी ताकत होती है तो लोग ये दुनिया वाले कभी किसी को आगे न बढ़ने देते। जैन संत ने पूछा कि नजर लगाता कौन है? जिसे दूसरे के प्रति ईष्र्या का भाव होता है। जो दूसरों की तरक्की को बर्दाश्त नहीं कर पाता। ईष्र्या सदा अपनों से होती है परायों से कभी नहीं होती। दूसरों के जलने वाला इंसान हैवान होता है। हम दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझ कर जीएं। अपने दुख से दुखी होकर तो हर कोई आंसू बहा लेता है लेकिन धर्मात्मा एवं ज्ञानी तो वही है जिसकी आंखे दूसरों के दुख और पीड़ा को देखकर छलछला आती हैं। मनुष्य तो वही है जो दूसरों के दुख, दर्द को पहचानता है और उन्हें दूर करता है। जो दूसरों की पीड़ा को न पहचाने और दूसरों की पीड़ा को देखकर सुख का अनुभव करे वह नर नहीं नर के रूप में राक्षस है। आज लोग अपने दुखों से इतने दुखी नहीं हैं जितने कि औरों के सुखों को देखकर दुखी हैं। दूसरों की समृद्धि देख कर कभी जलो मत क्योंकि जलते तो वे लोग है जो कि मर जाते हैं। अगर जलना ही है तो दीपक की तरह जलो जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाशित करता है।