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गुरु तेगबहादुर ने धर्म के लिए शीश दिया, पर सिर नहीं दिया

नौवीं पातशाही गुरु तेग बहादुर साहिब के शहीदी गुरुपर्व पर गुरुद्वारा गुरुतेग बहादुर साहिब में गुरमत समागम का आयोजन किया गया जिसमें रागी जत्थों ने गुरबाणी कीर्तन किया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 03 Dec 2019 06:30 AM (IST)Updated: Tue, 03 Dec 2019 06:30 AM (IST)
गुरु तेगबहादुर ने धर्म के लिए शीश दिया, पर सिर नहीं दिया
गुरु तेगबहादुर ने धर्म के लिए शीश दिया, पर सिर नहीं दिया

जागरण संवाददाता, जींद : नौवीं पातशाही गुरु तेग बहादुर साहिब के शहीदी गुरुपर्व पर गुरुद्वारा गुरुतेग बहादुर साहिब में गुरमत समागम का आयोजन किया गया, जिसमें रागी जत्थों ने गुरबाणी कीर्तन किया। गुरुद्वारा साहिब के रागी भाई जसबीर सिंह व दरबार साहिब अमृतसर से आए हजूरी रागी भाई गुरजिद्र सिंह के रागी जत्थे ने गुरबाणी के माध्यम से गुरु की शहादत का गुणगान किया। धर्म हेत साका जिन किया, शीश दिया पर सिर न दिया। साधो मन का मान त्यागो गुरुबाणी शब्दों द्वारा अपने गुरु का यश गायन किया और कहा कि गुरुतेग बहादुर साहिब ऐसे साहसी योद्धा थे, जिन्होंने न सिर्फ सिक्खी का परचम ऊंचा किया बल्कि अपने सर्वोच्च बलिदान से हिदू धर्म की भी हिफाजत की। उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद इस्लाम धर्म धारण नहीं किया और तमाम जुल्मों का पूरी ²ढ़ता से सामना किया। गुरु तेग बहादुर के धैर्य और संयम से आग बबूला हुए औरंगजेब ने चांदनी चौक पर उनका शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया और वह 24 नवंबर 1675 का दिन था जब गुरु तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिया।

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भाई गुरमीत सिंह ने कविता के माध्यम से गुरु की शहादत का बखान किया और कहा कि जबरन मुसलमान बनाए जाने का विरोध करने और इस्लाम धर्म को मानने से इंकार करने पर औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर साहिब को तरह-तरह की यातमाएं दी, लेकिन उन्होंने कभी औरंगजेब के सामने घुटने नहीं टेके व धर्म की रक्षा करने के लिए अपना सब कुर्बान कर दिया। हेड ग्रंथी गुरविद्र सिंह रत्तक ने तेग बहादुर साहिब की जीवनी का बखान किया और कहा कि औरंगजेब ने जब उनसे इस्लाम धर्म कुबूल करने के लिए दबाव बनाया तो उन्होंने कहा था कि वो शीश कटा सकते हैं लेकिन केश नहीं। गुरुघर के प्रवक्ता बलविद्र सिंह ने बताया कि गुरु तेग बहादुर साहिब ने अपनी वाणी में कहा कि सगल जगतु है जैसे सुपना, यह संसार सपना है। इसलिए इस नश्वर, क्षणभंगुर संसार का मोह त्याग कर प्रभु की शरण लेना ही उचित है। इसके बाद साध संगत ने गुरुद्वारा में लंगर चखा। इस मौके पर गुरुद्वारा मैनेजर बंता सिंह, सरदार सिंह, जत्थेदार गुरजिदर सिंह, गुरविदर सिंह रत्तक, जोगिदर सिंह पाहवा, टहल सिंह, किरपाल सिंह, महेंद्र सिंह, निरंजन सिंह, दर्शन सिंह, हरबंस सिंह, राम सिंह, प्रेम सिंह आदि उपस्थित रहे।


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