ढह गया बीरेंद्र सिंह का किला
बांगर में चौधर लाने के नाम पर 50 साल से राजनीति करने वाले चौ. बीरेंद्र सिंह का किला ढह गया। जेजेपी के दुष्यंत चौटाला ने भाजपा प्रत्याशी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को 47452 वोटों के बड़े अंतर से हराया।
कर्मपाल गिल, जींद
बांगर में चौधर लाने के नाम पर 50 साल से राजनीति करने वाले चौ. बीरेंद्र सिंह का किला ढह गया। जेजेपी के दुष्यंत चौटाला ने भाजपा प्रत्याशी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को 47,452 वोटों के बड़े अंतर से हराया। भाजपा में बड़ा कद बना चुके बीरेंद्र सिंह के लिए यह हार बड़ा झटका है।
विधानसभा चुनाव के शुरुआती चरण से ही बीरेंद्र सिंह पर दुष्यंत चौटाला हावी लग रहे थे। उचाना हलके में वोटरों के बीच दुष्यंत का जेजेपी से सीएम पद का प्रत्याशी होना भी बड़ा काम कर गया। लोग कह रहे थे कि विधायक के बजाय मुख्यमंत्री को वोट देंगे। इसी कारण हलके के सभी गांवों में दुष्यंत का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा था। बीरेंद्र सिंह भी इससे वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने चुनाव प्रचार में परिवार के साथ पूरी ताकत लगा रखी थी। खुद बीरेंद्र सिंह के अलावा उनकी पत्नी प्रेमलता और सांसद पुत्र बृजेंद्र सिंह लगातार हलके में जुटे रहे। लेकिन वोटर साथ नहीं आया। बीरेंद्र के पूरे परिवार के राजनीति में आने के कारण लोग उनसे चिढ़े हुए थे। जबकि दुष्यंत चौटाला की लोकसभा चुनाव में हार के बाद वोटरों में उनके प्रति सहानुभूति थी। इसके अलावा दुष्यंत की जीत में उनकी कड़ी मेहनत, साफ छवि, संघर्ष काम आया। दुष्यंत ने टिकट बंटवारे के बाद रणनीति के तहत दिनभर में पूरे हरियाणा को नापा और रात के समय उचाना हलके के गांवों के दौरे किए। हर रोज रात को पांच-छह गांव कवर करने के बाद किसी बड़े गांव में समर्थक के घर रुकते थे। यह रणनीति बहुत ज्यादा कारगर रही। इससे दुष्यंत का वोटरों से सीधा आत्मीय जुड़ाव बढ़ा। जबकि प्रेमलता पांच साल तक अपने परिवार के कुछ लोगों से घिरी रही। हलके में सिर्फ यही चर्चा थी कि परिवार के कुछ लोगों ने बीरेंद्र, प्रेमलता व बृजेंद्र के चारों तरफ घेरा बना रखा है। इससे आम आदमी उनके नजदीक नहीं पहुंच पाता। इसी कारण खुद डूमरखां के लोग भी बीरेंद्र सिंह से कट गए। हालांकि पिछले पांच साल में प्रेमलता ने इंफ्रास्ट्रक्चर के काफी काम कराए, लेकिन आम आदमी के बीच उपलब्धता कम होना भारी पड़ गया।
दुष्यंत ने पिछली दो हार का बदला लिया
दुष्यंत चौटाला ने 2014 का विधानसभा चुनाव भी उचाना कलां से प्रेमलता के खिलाफ लड़ा था। तब वह 7480 वोटों से हार गए थे। लोकसभा चुनाव में भी उचाना हलके से बृजेंद्र सिंह से करीब 9177 वोटों से पीछे रहे थे। इसके बावजूद दुष्यंत ने उचाना हलके को नहीं छोड़ा और लगातार सक्रिय रहे। पूरे हलके के सभी गांवों में संगठन को मजबूती से खड़ा किया। उचाना कलां में कांग्रेस, भाजपा व जेजेपी के प्रत्याशी जाट थे, इसलिए जाट-नॉन जाट का मुद्दा काम नहीं आया। नॉन जाट ने भाजपा के बजाय जेजेपी को खूब वोट डाले।