स्वतंत्रता संग्राम के समय से राष्ट्रीय एकता का माध्यम रही हिदी : वीसी
सीआरएसयू में हिदी दिवस के उपलक्ष्य पर संगोष्ठी हुई। शिक्षकों और विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए वीसी प्रो. आरबी सोलंकी ने कहा कि हिदी भाषा भारतीय संस्कृति का अटूट अंग है।
जागरण संवाददाता, जींद : सीआरएसयू में हिदी दिवस के उपलक्ष्य पर संगोष्ठी हुई। शिक्षकों और विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए वीसी प्रो. आरबी सोलंकी ने कहा कि हिदी भाषा भारतीय संस्कृति का अटूट अंग है। स्वतंत्रता संग्राम के समय से यह राष्ट्रीय एकता का प्रभावी व शक्तिशाली माध्यम रही है। केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति से हिदी व अन्य भारतीय भाषाओं का समानांतर विकास होगा। विश्वविद्यालय में कार्यक्रम के दौरान मातृभाषा हिदी को सशक्त करने में योगदान देने वाले रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन, तुलसीदास जैसे महान कवियों और लेखकों को भी नमन किया। वीसी ने इस ऑनलाइन कार्यक्रम में जुड़े सभी शिक्षकों के विद्यार्थियों को आह्वान किया कि हिदी भाषा के संवर्धन में अपना अपना योगदान दें। खुद को हिदी भाषा बोलने पर गौरवांवित महसूस करें। रजिस्ट्रार प्रो. राजेश पूनिया ने कहा कि हमें अपने बोलचाल के अंदर हिदी भाषा का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही अच्छे ढंग से हिदी भाषा को सीखना भी चाहिए। हिदी की चेतना मूल्य तक करुणा प्रेम की चेतना है। इसलिए इस भाषा का सांस्कृतिक महत्व तो है ही, लेकिन आजकल इसका रोजगार परक महत्व बहुत महत्वपूर्ण है। विश्वविद्यालय अधिष्ठाता शैक्षणिक प्रो. एसके सिन्हा ने कहा कि 14 सितंबर 1953 को पहली बार देश में हिदी दिवस मनाया गया था। हिदी केवल हमारी राष्ट्र भाषा या मातृभाषा नहीं, बल्कि यह राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव का प्रतीक है। भाषा के बिना कोई भी अपनी बात को अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त नहीं कर पाता।