चौथी पीढ़ी में बेटी बनी सेना में अफसर
देश सेवा का जुनून परदादा 1940 में लांस नायक बने दादा मेजर से रिटायर हुए पिता चाचा व ताऊ कर्नल अब बेटी आकृति बनी लेफ्टिनेंट
कर्मपाल गिल, जींद सेना में भर्ती होकर देश सेवा की ऐसी मिसाल बहुत कम मिलती हैं। जींद जिले के गांव सिधवी खेड़ा के हुक्मचंद पूनिया के परिवार को सेना की वर्दी से बेइंतहा प्यार है। खुद हुक्मचंद आजादी से पहले भारतीय सेना में भर्ती हुए और द्वितीय विश्व युद्ध में शहीद हो गए। उनके पुत्र मेजर ओमप्रकाश और तीनों पोत्रों ने भी देश सेवा का प्रण लेते हुए आर्मी ज्वाइन की। चौथी पीढ़ी में कर्नल राजीव की इकलौती बेटी आकृति पूनिया ने परिवार की देश सेवा की परंपरा को निभाते हुए सेना में कमीशन हासिल किया है। लेफ्टिनेंट आकृति पूनिया को दो साल पहले सेना में कमीशन मिला है। जम्मू-कश्मीर में बॉर्डर पर तैनात आकृति उग्रवादियों से लोहा ले रही हैं। दैनिक जागरण से बातचीत में आकृति ने कहा कि उसे सेना की वर्दी से बहुत प्यार है। उसके ताऊ प्रदीप, पिता राजीव व चाचा संजीव सेना में कर्नल हैं। दादा व परदादा भी सेना में रहे हैं। घर में सेना के साहस की बातें चलती थी, इसलिए उसने भी छोटी उम्र में ही फौजी अफसर बनने की ठान ली थी। आकृति के दादा मेजर ओमप्रकाश बताते हैं कि बड़े बेटे प्रदीप व राजीव को सेना में नौकरी मिलने के बाद तीसरे छोटे बेटे संजीव को सिविल सर्विस ज्वाइन करना चाहते थे। लेकिन संजीव ने जिद्द कर ली कि उसके बड़े भाई सेना में भर्ती हुए हैं तो वह भी फौजी वर्दी पहनेगा। इसके बाद संजीव ने भी सेना में कमीशन हासिल किया। प्रदीप व राजीव अभी कर्नल हैं, जबकि संजीव कर्नल के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति चुके हैं। ओमप्रकाश कहते हैं कि सेना में रहकर देश सेवा से बढ़कर कुछ नहीं है। पोती के लेफ्टिनेंट बनने पर वह बेहद खुश हैं। पिता शहीद हुए तब गर्भ में थे मेजर ओमप्रकाश
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लांस नायक हुक्मचंद 1940 में थर्ड 9 जाट रेजिमेंट में लांस नायक भर्ती हुए थे। 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध में 24 साल की उम्र में हुक्मचंद जब फ्रांस में शहीद हुए, तब उनकी पत्नी रुकमणी गर्भवती थी। बाद में रुकमणी ने बेटे ओमप्रकाश को जन्म दिया। ओमप्रकाश जब बड़े हुए तो उनकी मौसी व मां उन्हें पिता की बहादुरी के किस्से बताती थी। पिता की कहानियां सुनकर छोटी उम्र में ओमप्रकाश ने कहा कि वह भी बड़ा होकर फौज में भर्ती होगा। बरेली जाट सेंटर से 1958 में दसवीं करने के बाद वह सीधे ग्रेनेडियर रेजिमेंट में सिपाही भर्ती हो गए। 1967 में कमीशन हासिल करके 1988 में मेजर से रिटायर हुए। आर्मी जैसी कोई सेवा नहीं
दैनिक जागरण से बातचीत में आकृति ने कहा कि पिता, चाचा, ताऊ को जन्म से ही फौजी वर्दी में देख रही हूं। फौजी अफसर रहे दादा, नाना व परदादा के भी किस्से सुने। इसलिए मुझे भी फौजी वर्दी से प्यार हो गया। चंडीगढ़ में पंजाब यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री करने वाली आकृति पूनिया कहती है कि मैंने फौज में जाने के सिवाय कभी कुछ नहीं सोचा। आर्मी जैसी कोई सेवा नहीं है। जब फौजी वर्दी पहनती हूं तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। दादा मेजर ओमप्रकाश भी कहते हैं कि आकृति तो फौज के लिए ही बनी है। वह बहुत बहादुर लड़की है। डर या चिता का तो उसे पता ही नहीं है।