नेताजी की सिफारिश पर भारी पड़ा कोर्ट स्टे
अपने पारिवारिक सदस्य को पानीपत से वापस जींद तबादले के लिए नेता जी ने खूब प्रयास किए।
लगभग 4 साल पहले नेताजी के एक परिवार के सदस्य की बदली जींद से पानीपत हो गई थी। उन दिनों नेताजी सत्ता में नहीं थे। अपने पारिवारिक सदस्य को पानीपत से वापस जींद तबादले के लिए नेता जी ने खूब प्रयास किए। पांच मंत्रियों और विधायकों की सिफारिशें करवाई लेकिन बात नहीं बनी। आखिर नेताजी सत्ता में आए और उन्होंने फिर प्रयास शुरू किए। इस बार नेताजी ने विभाग के एक कर्मचारी की शिकायत सीएम से कर डाली कि वह शराब पीकर ड्यूटी पर आता है। इस पर कर्मचारी का पानीपत तबादला कर दिया और नेताजी का पारिवारिक सदस्य जींद आ गया लेकिन एक सप्ताह बाद ही जिस कर्मचारी को जींद से पानीपत बदला गया था, उसने कोर्ट में अपील कर स्टे ले लिया। कोर्ट ने स्टे दे दिया, जिस पर वह कर्मचारी फिर से जींद आ बैठा और नेताजी के चहेते को फिर से वापस पानीपत जाना पड़ा।
जींद में बेरा नी कद आवैगा गब्बर
सरकारी कर्मचारियों में गब्बर सिंह का खौफ है, वहीं वे आम जनता का हौसला बने हुए हैं। गब्बर सिंह के तेवर देखकर लोगों को लग रहा है कि उनके पास शिकायत जाते ही तुरंत एक्शन होगा। जींद में कुछ सरकारी दफ्तरों में लोगों के काम नहीं होते तो लोग अखबार वालों के यहां अपनी शिकायतें लेकर जाते हैं और कहते हैं कि उनकी खबर प्रकाशित कर दो। फिर खबर की कटिग गब्बर के पास भेजेंगे, ताकि सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत की जा सके। सरकारी कार्यालयों में चक्कर काट-काटकर थक चुके लोगों को कहना है कि जींद में गब्बर बेरा नी कद आवैगा। कुछ लोग तो शिकायतें लिख कर तैयार बैठे हैं कि जिस दिन भी गब्बर सिंह जींद में आए, वह शिकायत उन्हें देंगे। हालांकि पहले कार्यकाल में गब्बर सिंह ने जींद के लिए कुछ नहीं किया। खेल व स्वास्थ्य सुविधाओं की पांच साल से अनदेखी हो रही है।
90 प्रतिशत बुलेट पर नहीं होती नंबर प्लेट
शहर में जितने भी बुलेट बाइक हैं, उनमें 90 प्रतिशत बुलेट बाइक पर या तो नंबर प्लेट ही नहीं है और अगर नंबर प्लेट है तो उस पर नंबर नहीं लिखा होता। ज्यादातर बुलेट में पटाखे लगवाए गए होते हैं, लेकिन इन पर कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं है। नंबर प्लेट पर या तो जाति का नाम लिखा होता है या गौत्र लेकिन बाइक नंबर नहीं मिलेगा। एकाध को छोड़ यातायात पुलिस किसी भी बुलेट बाइक का चालान नहीं करती। हुडा मार्केट, अर्बन एस्टेट, स्कीम नंबर पांच और छह, गांधी नगर में दिन हो या रात, बुलेट बाइकों के पटाखे बजते हैं, जिससे इन कॉलोनियों के लोगों के नाक में दम हो गया है लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं है। यातायात नियमों में संशोधन के बाद बुलेट के पटाखे का 10 हजार रुपये का चालान हो गया लेकिन अब भी बुलेट में पटाखे हैं लेकिन नंबर प्लेट नहीं।
एक दिन की कार्रवाई से काम नहीं चलेगा साहब
जींद की हुडा मार्केट बेशक कम्प्यूटर शिक्षा और कंपीटीशन परीक्षाओं की तैयारी के लिए शिक्षा का हब मानी जाती है लेकिन इसके साथ-साथ यह मार्केट लड़ाई-झगड़ों में जंग का मैदान भी मानी जाती है। एक भी सप्ताह ऐसा नहीं गुजरता, जब यहां झगड़ा न हुआ हो। 26 जनवरी से पहले एक दिन पुलिस ने गश्त कर ढाबों और दुकानों को खंगाला लेकिन उसके बाद एक दिन भी पुलिस यहां नहीं फटकी। यह तो वही बात हुई कि चार दिन की चांदनी और फेर अंधेरी रात, यानि कि एक दिन के सर्च अभियान के बाद फिर से वही हालात। कॉलेज नजदीक होने और कोचिग सेंटरों में लड़कियों के ज्यादा संख्या में पढ़ने आने के कारण शरारती तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है और इससे हर रोज झगड़े हो जाते हैं। ऐसे में हम तो यही कहेंगे कि एक दिन की कार्रवाई से काम नहीं चलेगा, साहब। कार्रवाई हर रोज होनी चाहिए।