Move to Jagran APP

पोलिथिन में बंद शहर का इलाज

पोलिथिन शहर की सफाई और निकासी के लिए नासूर बन चुका है। प्रतिदिन शहर से जो कूड़ा निकलता है उसका 70 प्रतिशत पोलिथिन होता है। शहर में फल व सब्जियों की करीब 1200 रेहड़ियों और परचून दवाइयों व मिठाइयों की करीब

By JagranEdited By: Published: Mon, 15 Jul 2019 10:16 PM (IST)Updated: Tue, 16 Jul 2019 06:36 AM (IST)
पोलिथिन में बंद शहर का इलाज
पोलिथिन में बंद शहर का इलाज

जागरण संवाददाता, जींद : पोलिथिन शहर की सफाई और निकासी के लिए नासूर बन चुका है। प्रतिदिन शहर से जो कूड़ा निकलता है, उसका 70 प्रतिशत पोलिथिन होता है। शहर में फल व सब्जियों की करीब 1200 रेहड़ियों और परचून, दवाइयों व मिठाइयों की करीब 800 दुकानों में सबसे ज्यादा पोलिथिन की खपत की जा रही है। पोलिथिन से नाले व सीवरेज लाइन भी जाम हो रही हैं।

prime article banner

शहर से निकलने वाले कूड़े को नगर परिषद पुराना हांसी रोड पर डालती है। यहां पहाड़नुमा गंदगी के ढेर में पोलिथिन ही सबसे ज्यादा है। बाजार व सड़क किनारे जहां भी नजर जाती है, पोलिथिन ही नजर आता है। बाजार में रोजमर्रा के सामान से लेकर सब्जी, यहां तक कि अब तक खाने-पीने की चीजें भी पोलिथिन में पैक आने लगी हैं। इससे होने वाले खतरे को लेकर सरकारी-गैर सरकारी स्तर पर प्रचार-प्रसार भी खूब चल रहा है, लेकिन इसका असर कुछ भी नहीं पड़ रहा है। खास बात यह है कि अधिकारी भी इस पर कार्रवाई को लेकर गंभीर नहीं हैं।

--------------------

कूड़ा डालने के लिए 12 एकड़ जमीन भी कम

पुराने हांसी रोड पर नगर परिषद की साढ़े 12 एकड़ जमीन है, जहां कूड़ा डाला जाता है। पोलिथिन के कारण यहां कूड़े का काफी ढेर लग चुका है। अब नगर परिषद के सामने भविष्य में कूड़ा डालने के लिए जगह की समस्या है। नगर परिषद को इस ढेर से पोलिथिन व मिट्टी को अलग-अलग करने के लिए मशीन खरीदने पड़ेगी, जिसकी लागत करीब छह लाख रुपये है। नगर परिषद अधिकारियों का मानना है कि कूड़े के ढेर से पोलिथिन निकाल दिया जाए यह पहाड़नुमा ढेर खत्म हो जाएगा और मिट्टी को भरत के कार्य में प्रयोग किया जा सकेगा।

------------------

गोवंश के लिए भी जानलेवा

पोलिथिन मनुष्य के साथ-साथ पशुओं के लिए भी जानलेवा है। आमतौर पर लोग पोलिथिन को सड़क पर फेंक देते हैं। सड़कों पर घूम रहे बेसहारा गोवंश इस पोलिथिन में मुंह मारते हैं और इसे निगल जाते हैं। इस कारण गोवंशों की पाचन शक्ति खत्म हो जाती है और उसकी मौत हो जाती है। पिछले साल नंदीशाला में मरी सैकड़ों गायों की मौत का कारण चिकित्सकों की जांच में पोलिथिन पाया गया था।

----------------

ये भी जानें

शहर से प्रतिदिन करीब 80 टन कचरा निकलता है। इसमें सबसे ज्यादा मात्रा पोलिथिन व प्लास्टिक के सामान की होती है।

करीब 1200 रेहड़ी, 400 परचून की, 400 दवाइयों की व 100 के करीब मिठाइयों की दुकान है। जहां सबसे ज्यादा पोलिथिन का प्रयोग होता है।

इन दुकानों से ही प्रतिदिन करीब ढाई टन पोलिथिन लोग सामान के साथ घर लाते हैं। बाकी दुकानों व पैकिग के सामान जोड़ दें तो आंकड़ा चार टन तक पहुंच जाता है।

----------------- पोलिथिन के खिलाफ जागरूक कर रही सेव संस्था

फोटो: 3

जागरण संवाददाता, जींद

सामाजिक संस्था सोसायटी फॉर एडवांसमेंट आफॅ विलेज एंड अर्बन इन्वायरमेंट (सेव) के सदस्य पिछले पांच साल से पोलिथिन के प्रति लोगों को जागरूक कर रही है। संस्था के सदस्य हर शनिवार को रेहड़ी साथ लेकर शहर की किसी न किसी सड़क पर निकल जाते हैं। सड़क पर पड़े पोलिथिन उठाते हैं और आम आदमी व दुकानदारों को पोलिथिन का प्रयोग न करने और सफाई के प्रति जागरूक करते हैं। संस्था के प्रधान नरेंद्र नाडा कहते हैं कि लोगों को जागरूक होना ही होगा। अगर अभी नहीं चेते तो गारंटी है कि आने वाले दिन हमारे लिए भयावह होंगे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.