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आठ प्रतिशत प्रदूषण के लिए फसल अवशेष जलाना कारण, ऊर्वरा शक्ति भी हो रही कमजोर

दैनिक जागरण के पराली अभियान के तहत घिमाना गांव में पैनल डिस्कशन हुआ। जिसमें कृषि विभाग के अधिकारियों ने फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान व इसकी रोकथाम को लेकर चर्चा की।

By JagranEdited By: Published: Tue, 01 Oct 2019 07:20 AM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2019 07:20 AM (IST)
आठ प्रतिशत प्रदूषण के लिए फसल अवशेष जलाना कारण, ऊर्वरा शक्ति भी हो रही कमजोर
आठ प्रतिशत प्रदूषण के लिए फसल अवशेष जलाना कारण, ऊर्वरा शक्ति भी हो रही कमजोर

जागरण संवाददाता, जींद : दैनिक जागरण के पराली अभियान के तहत घिमाना गांव में पैनल डिस्कशन हुआ। जिसमें कृषि विभाग के अधिकारियों ने फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान व इसकी रोकथाम को लेकर चर्चा की। सहायक तकनीकी प्रबंधक मनवीर ने बताया कि जो प्रदूषण फैलता है, उसमें आठ प्रतिशत प्रदूषण फसल अवशेष जलाने से फैलता है। हर साल अप्रैल-मई में गेहूं कटाई के दौरान व अक्टूबर-नवंबर में धान कटाई के बाद फसल अवशेष जलाते हैं। इस दौरान प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। अक्टूबर व नवंबर में ठंड होने लगती है और हवा की गति भी कम रहती है, जिससे असर ज्यादा दिखाई देता है। इस दौरान किसान सुरेश, महासिंह, नवीन, शेरसिंह, कृष्ण, रामपाल, कृष्ण कर्मगढ़ ने भी अपने विचार रखे।

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आग की भेंट चढ़ते सैकड़ों पेड़

सहायक तकनीकी प्रबंधक सुमन ने कहा कि फसल अवशेष जलाने से जमीन की उर्वरा शक्ति तो कमजोर होती ही है। साथ ही इस आग की भेंट सैकड़ों पेड़ भी चढ़ जाते हैं। लगातार प्रदूषित हो रही हवा को नियंत्रित करने तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति को नष्ट होने से बचाने के लिये इसे बतौर खाद और चारे के रूप में प्रयोग करें। इससे न केवल मनुष्य को बेहतर स्वास्थ्य मिलेगा अपितु भूमि का उपजाऊपन भी बढ़ेगा।

इंसान की सेहत पर बुरा प्रभाव

ब्लॉक तकनीकी प्रबंधक अमित ने कहा कि पराली को आग लगाने के कारण आज जहां एक ओर सबसे ज्यादा प्रभाव इंसानों की सेहत पर पड़ रहा है। दमा तथा अन्य घातक बीमारियों का शिकार होने वाले लोगों की संख्या में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पराली जलाने से सबसे अधिक प्रभावित बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं तथा बच्चे हो रहे हैं तथा कई तरह के रोगों की चपेट में आ रहे हैं। सभी एकजुट होकर पराली न जलाने के लिये प्रण लें।

जागरण का अभियान प्रशंसनीय

कर्ण सिंह नंबरदार ने दैनिक जागरण की ओर से शुरू किए गए इस अभियान की प्रशंसा करते हुए कहा कि इससे भविष्य में लोगों को बेहतर स्वास्थ्य मिलेगा तथा उनकी आर्य के स्त्रोत भी बढ़ेंगे। विभाग की ओर से पराली प्रबंधन में इस्तेमाल होने वाली मशीनों की भी विस्तार पूर्वक जानकारी तथा उस पर दी जाने वाली सब्सिडी के बारे में भी बताया गया।

मिट्टी में फैल रहा जहर

रामफल नंबरदार ने कहा कि पराली की आग धीरे-धीरे देश में सबसे बड़े प्रदूषण का रूप धारण कर चुकी है। पहले दूषित पानी के कारण ही मिट्टी में जहर फैलता था। लेकिन आज उससे कई गुणा ज्यादा घातक पराली को जलाने के बाद उत्पन्न होने वाली गैस बन चुकी हैं। किसानों को इसे जलाने की बजाये आर्थिक रूप से मजबूत होने के लिये इसके प्रबन्धन की ओर ध्यान देना चाहिये।

हमें अपने कर्तव्यों का एहसास हो

प्रगतिशील किसान मामराज ने कहा कि यदि हम स्वच्छ वातावरण देंगे तभी हमारी आगामी पीढ़ी लंबी आयु को भोग सकेंगी। हम सभी को खुद की ड्यूटी का एहसास भी होना चाहिए। अपने आसपास के कृषकों को पराली जलाने के बाद उत्पन्न होने वाली खतरनाक गैसों से शरीर तथा पर्यावरण को होने वाले नुकसान संबंधी बताना पड़ेगा, तभी हमारा कल सुधर पाएगा।

पराली प्रबंधन से होगा फायदा

मास्टर कृष्ण ने कहा कि अगर हम सभी अपनी जिम्मेदारी का पूरी तरह से निर्वाह करने लगेंगे, तो ये समस्या खुद ब खुद हल हो जाएगी। पराली प्रबन्धन से किसानों को फायदा मिलता है। इसका सीधा असर खेत में अगली फसल के झाड़ पर पड़ता है। खेत में खाद नहीं डालनी पड़ती और न ही स्प्रे की जरूरत रहती है। इसलिये पराली प्रबंधन अपनाएं।

पराली को गोशाला में पहुंचाएं

युवा संगठन घिमाना से सुमित ने कहा कि पराली को जलाकर प्रदूषण को न बढ़ाए बल्कि इसे इकट्ठा करके गोशाला में पहुंचाए। यह पराली संकट के समय पशुओं के लिए चारे की समस्या खत्म करेगी। इससे पशुओं के भूखे मरने की समस्या भी नहीं रहेगी। वहीं कटाई के बाद बचे अवशेष को खेत में मिला दें, जो खाद के रूप में काम करेगा और उत्पादन भी बढ़ेगा।


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