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तीन बार कैंसर को दी मात, दूसरों के लिए बने प्रेरणा

डॉ. अनिल दलाल तीन बार कैंसर को मात दे चुके हैं। इनका हौसला और मजबूत इच्छाशक्ति देखकर डॉक्टर भी हैरान रह गए थे।

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Feb 2020 07:05 AM (IST)Updated: Tue, 04 Feb 2020 07:05 AM (IST)
तीन बार कैंसर को दी मात, दूसरों के लिए बने प्रेरणा
तीन बार कैंसर को दी मात, दूसरों के लिए बने प्रेरणा

कर्मपाल गिल, जींद

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कैंसर का नाम सुनते ही लोग घबराकर ही मर जाते हैं। लेकिन डॉ. अनिल दलाल तीन बार कैंसर को मात दे चुके हैं। इनका हौसला और मजबूत इच्छाशक्ति देखकर डॉक्टर भी हैरान रह गए थे। अब डॉ. अनिल दूसरे लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।

डॉ. अनिल दलाल जब दसवीं में पढ़ते थे तो उन्हें मोतीझरा (टाइफाइड) हो गया। इसके बाद एक पैर में तेज दर्द रहने लगा। रोहतक पीजीआइ में चेक कराया तो डॉक्टरों को बीमारी का पता नहीं चला। 1995 में जब 15 साल के थे, तब दिल्ली में एमआइआर कराई तो डॉक्टरों ने बताया कि रीढ़ की हड्डी में कैंसर का ट्यूमर है। डॉक्टरों ने ऑपरेशन से पहले उनके बड़े भाई को कहा कि इनका बचना मुश्किल है। बच गए तो चलना-फिरना बंद हो सकता है। भाई ने डॉक्टर से कहा कि आप ऑपरेशन कर दीजिए। आगे इसकी किस्मत है।

छोटी उम्र में अनिल हंसते हुए ऑपरेशन थिएटर में गए और मुस्कुराते हुए लौटे। लेकिन चार साल बाद 1999 में फिर चलने में परेशानी होने लगी तो दोबारा डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने बताया कि रीढ़ में उसी जगह ट्यूमर ग्रोथ कर गया है। तब 55 दिन बेड पर रहने के बाद ऑपरेशन हुआ था। पैरों में खून जाना बंद हो गया था और पैर हिलने भी बंद हो गए थे। लेकिन अनिल ने हौसला बनाए रखा। उनकी हिम्मत देखकर डॉक्टर ने फिर ऑपरेशन कर दिया। तीन महीने बेड पर रहने के बाद बैसाखियों के सहारे अनिल चलने लगे।

तीसरी बार 2011 में फिर उसी जगह कैंसर हो गया। तीसरी बार आपरेशन कराना पड़ा। अनिल ने मजबूत इच्छाशक्ति से फिर कैंसर को मात दी और पढ़ाई जारी रखी। अब उन्होंने कैंसर को दिमाग से ही निकाल दिया है। कई साल से डॉक्टर से चेक भी नहीं करा रहे हैं और पूरी तरह स्वस्थ हैं। एमफिल, पीएचडी करके बने असिस्टेंट प्रोफेसर

डॉ. अनिल दलाल ने कैंसर होने के बावजूद पढ़ाई जारी रखी। महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक से लोक प्रशासन में एमए, एमफिल की। चौधरी छोटू राम के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में योगदान पर लघु शोध प्रस्तुत किया, जिस पर यूनिवर्सिटी ने उन्हें गोल्ड मेडल व कैश ग्रांट स्कॉलरशिप दी। नेट क्लीयर किया और चौधरी छोटूराम का प्रशासनिक योगदान-हरियाणा में एक अध्ययन विषय पर पीएचडी की। डॉ. अनिल अब तक सात किताबें भी लिख चुके हैं, जो प्रकाशित हो चुकी हैं। कैंसर मरीजों को संदेश

40 वर्षीय डॉ. अनिल दलाल कहते हैं कि कैंसर होने पर हौसला नहीं खोना चाहिए। मरीज को हौसला रखकर सकारात्मक सोच से इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। इस बीमारी से डरने की जरूरत नहीं है। मजबूत इच्छा शक्ति, सकारात्मक सोच और ²ढ़ निश्चय से इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है।


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