आखिर गर्मियों की छुट्टियों में पहुंची सरकारी स्कूलों में किताबें
प्रस्तावित बाइनेम : बिजेंद्र मलिक जागरण संवाददाता, जींद : आखिर दो माह का शैक्षणिक सत्र बीत जान
प्रस्तावित बाइनेम : बिजेंद्र मलिक
जागरण संवाददाता, जींद : आखिर दो माह का शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद गर्मियों की छुट्टियों में सरकारी स्कूलों में किताबें पहुंच गई हैं। दो माह तक बच्चे किताबें आने के इंतजार में स्कूलों में पिछले साल का पाठ्यक्रम पढ़ते रहे और माचिस की तिल्लियों के साथ खेल-खेल में सीखते रहे। किताबें नहीं होने के कारण बच्चों को स्कूलों का होम वर्क भी नहीं मिल सका। ऐसे में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे प्राइवेट स्कूलों के बच्चों से मुकाबला कैसे कर पाएंगे। प्राइवेट स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियों से पहले बच्चे पूरा पाठ्यक्रम लगभग एक बार अध्ययन कर चुके हैं, वहीं सरकारी स्कूलों में बच्चों के पास किताबें नहीं होने के कारण उनका अध्ययन शुरू ही नहीं हुआ है।
ऐसे में सरकारी स्कूलों के बच्चों से प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले बेहतर परीक्षा परिणाम की उम्मीद लगाना बेमानी है। सरकारी स्कूलों में कक्षा पहली से आठवीं तक बच्चों को विभाग द्वारा निशुल्क किताबें उपलब्ध करवाई जाती हैं। समय पर किताबें नहीं मिलने के कारण पाठ्यक्रम ही पूरा नहीं हो पाता है। शिक्षा के अधिकार के तहत पहली से आठवीं कक्षा तक बच्चे को फेल नहीं किया जाता है। ऐसे में बच्चा आसानी से 10वीं कक्षा में पहुंच जाता है। इसके बाद बोर्ड की कक्षा में वह फेल हो जाता है। इस बार जिले में सरकारी स्कूलों का 10वीं कक्षा का परीक्षा परिणाम महज 40 प्रतिशत ही रहा है। चार स्कूल तो ऐसे हैं, जिनमें एक भी बच्चा पास नहीं हुआ। शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए हर साल शिक्षा नीति में बदलाव किए जाते हैं, लेकिन ये नीतियां केवल योजनाओं तक ही सीमित रह जाती हैं और धरातल पर काम नहीं हो पाता।
पहली से आठवीं तक स्कूलों व बच्चों की संख्या
प्राथमिक स्कूल : 434, छात्र संख्या : 45870
माध्यमिक स्कूल : 100, छात्र संख्या : 43964
नहीं हो सकी मासिक परीक्षा
सरकारी स्कूलों में जो प्रति माह पढ़ाया जाता है, उसकी मासिक परीक्षा ली जाती है। स्कूलों में किताबें नहीं पहुंचने के कारण इस बार मई में मासिक परीक्षाएं आयोजित नहीं की गई।ग्रीष्मकालीन छुट्टियों में भी शिक्षकों ने जैसे-तैसे बच्चों को थोड़ा-बहुत होम वर्क दे दिया, लेकिन बगैर किताबों के उनकी पूरी छुट्टियां बगैर पढ़ाई के मस्ती में ही बीतेगी। जब बच्चे छुट्टियों के बाद स्कूलों में पहुंचेगे, तो एक चौथाई सीजन बीत चुका होगा।
बगैर किताबों के शिक्षक कैसे पढ़ाएं
सरकारी स्कूलों को खत्म कर प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा देना चाहती है। समय पर किताबें नहीं दी जाती हैं और तुलना प्राइवेट स्कूलों से की जाती हैं। जब बच्चों के पास किताबें ही नहीं होंगी, शिक्षक उन्हें क्या पढ़ाएगा। हर साल समय पर किताबें नहीं भेजी जाती और फिर खराब परीक्षा परिणाम का दोष शिक्षकों पर मंड दिया जाता है।
राजेश खर्ब, राज्य कोषाध्यक्ष राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ।
सभी खंडों में किताबें सीधे स्कूलों में भेजी जा रही हैं। सरकार द्वारा पहली से आठवीं कक्षा तक निशुल्क किताबें उपलब्ध करवाई जाती हैं। पहली से आठवीं तक लगभग 90 हजार बच्चे हैं, जिनके लिए किताबें आई हैं। ज्यादातर स्कूलों में किताबें पहुंच चुकी हैं।
बीएस राणा, जिला उप जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी, जींद।