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कुरुक्षेत्र भूमि का एक प्रवेश द्वार जींद में, कृष्ण के कहने पर पांडवों ने किए थे पिडदान

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्र समवेता युयुत्सव। मामका पांडवाश्चैव किमकुर्वत संचय।। गीता की शुरुआत इस श्लोक से होती है। धर्मभूमि कुरुक्षेत्र का अहम हिस्सा है जींद।

By JagranEdited By: Published: Sun, 08 Dec 2019 07:50 AM (IST)Updated: Sun, 08 Dec 2019 07:50 AM (IST)
कुरुक्षेत्र भूमि का एक प्रवेश द्वार जींद में, कृष्ण के कहने पर पांडवों ने किए थे पिडदान
कुरुक्षेत्र भूमि का एक प्रवेश द्वार जींद में, कृष्ण के कहने पर पांडवों ने किए थे पिडदान

कर्मपाल गिल, जींद

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धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्र समवेता युयुत्सव:। मामका: पांडवाश्चैव किमकुर्वत संचय।। गीता की शुरुआत इस श्लोक से होती है। धर्मभूमि कुरुक्षेत्र का अहम हिस्सा है जींद। कुरुक्षेत्र की 48 कोस की भूमि में प्रवेश करने का एक द्वार जींद में ही है। भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर पांडवों ने गया की बजाय जींद में ही अपने पित्रों का जलदान यानि पिडदान किया था। युवा पीढ़ी को गीता के इस ज्ञान से परिचित करा रहा है गीता महोत्सव में सजा पांडु पिडारा तीर्थ का मंडप।

महाभारत के बाद हमारी सनातन रीति में पिड कर्म शुरू हुआ था। इंसान की मृत्यु के बाद तेरह दिन तक गायत्री का भजन करते हैं और पातक निकाला जाता है। कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद युद्धिष्ठिर ने कृष्ण भगवान से कहा कि प्रभु हम अपने पित्रों का कर्म करना चाहते हैं और गयाजी (बिहार) जाना पड़ेगा। तब कृष्ण ने युद्धिष्ठिर से कहा था कि वहां जाने की आवश्यकता है। यह सोमतीर्थ है। यहां पर आप अपने पित्रों को जलदान दे सकते हैं यानि पिडदान दे सकते हैं। उसके बाद इस स्थान का नाम पांडु पिडारा हो गया। विद्वान रामचंद्र शास्त्री बताते हैं कि पाणिनी व्याकरण में रा धातु दान देने के अर्थ में आती है। पांडवों ने भगवान कृष्ण के कहने से अपने पित्रों के निमित पिड रा धातु में दिए। इससे पांडु पिडारा बना। अब यहां हर अमावस्या को बड़ा मेला लगता है। खासकर सोमवती अमावस्या को जींद व हरियाणा ही नहीं, दूसरे प्रदेशों से भी लोग पिडदान करने आते हैं। --पोंकरी खेड़ी में हैं दक्षिण प्रवेश द्वार

महाभारत के पौराणिक साहित्य में कुरुक्षेत्र की सीमा के रक्षक के रूप में चार यक्षों रंतुक यक्ष, बहर अरंतुक यक्ष, कपिल यक्ष व तरंतुक यक्ष का वर्णन मिलता है। पौराणिक साहित्य के अनुसार कोई भी व्यक्ति इन यक्षों का अभिवादन किए बिना कुरुक्षेत्र के तीर्थों की यात्रा का अधिकारी नहीं बन सकता। इनमें एक यक्ष जींद जिले के गांव पोंकरी खेड़ी में है, जिसे कुरुक्षेत्र भूमि का दक्षिण प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। यहां पुष्कर तीर्थ है। पांडवों की सेना ने इसी रास्ते से युद्ध के मैदान में प्रवेश किया था। तीन अन्य यक्षों में रंतुक यक्ष कुरुक्षेत्र के बीड़ पिपली में, कैथल-पटियाला बार्डर पर बहर पिसौल में अरंतुक यक्ष व पानीपत के गांव सींक में तरंतुक यक्ष है, जिसे मक्षक्रुक यक्ष भी कहा जाता है। कुरुक्षेत्र की 48 कोस की भूमि में प्रवेश करने के लिए जींद जिले में एक यक्ष द्वार हैं। गांव पोंकरी खेड़ी में कपिल यक्ष दक्षिण द्वार है। इसके अलावा कैथल में अरंतुक यक्ष गांव बहर पिसौल, कुरुक्षेत्र के रतगल गांव में तरंतुक यक्ष, जींद के रामराय गांव में रामहृदय यक्ष एवं पानीपत के सींख गांव में मचक्रुक यक्ष तीर्थ हैं।

धर्मभूमि है, इसलिए फूल नहीं उठते

विद्वान रामचंद्र शास्त्री कहते हैं कि इस धरती पर पहले महाराजा कुरु ने यज्ञ किया था, इसलिए इसका नाम धर्मक्षेत्र हो गया। गीता में भी सबसे पहले आता है, धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्र समवेता युयुत्सव:। मामका: पांडवाश्चैव किमकुर्वत संचय।। कुरुक्षेत्र इसलिए हो गया कि कुरु ने यहां राज किया था। यह धर्मभूमि है, इसलिए मौत के बाद फूल नहीं उठते। कुरुक्षेत्र की भूमि यानि 48 कोस की परिधि में फैला क्षेत्र।

जींद के बिना कुरुक्षेत्र का मतलब नहीं

पिडारा के आचार्य राजेश स्वरूप शास्त्री कहते हैं कि कुरुक्षेत्र का मतलब 48 कोस की परिधि में फैला क्षेत्र है। इसमें जींद भी है। कुरुक्षेत्र में जाने पर थानेसर, पिपली या ज्योतिसर मिलेगा। कुरुक्षेत्र सिर्फ रेलवे स्टेशन का नाम है। कुरुक्षेत्र भूमि का नाम है, जो पदमासन के आकार में है। हर व्यक्ति के लिए गीता को ज्ञान को समझना जरूरी है। सरकार गीता जयंती मनाकर अच्छा काम कर रही है।


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