कुछ चीजें पैसे से नहीं मिलतीं और इन्हीं का मुझे शौक है: बजरंग पूनिया
भारत को एशियाई खेलों में पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाले बजरंग पूनिया अपने जुनून और कुछ कर गुजरने के जज्बे के लिए जाने जाते हैं। एशियाई खेलों में जीत से उन्होंने परचम लहरा दिया।
जेएनएन, झज्जर/सोनीपत। स्वर्ण पदक जीतने से पहले दो दिन पहले पहलवान बजरंग पूनिया ने ट्वीट किया था कि कुछ चीजें पैसे से नहीं मिलतीं और इन्हीं का मुझे शौक है। एशियाई खेलों के दूसरे दिन जकार्ता में स्वर्ण पदक जीतकर उसने इसे साबित कर दिया कि उसकी कथनी और करनी एक जैसी है।
उनके करीबी बताते हैं कि वह लीक से हटकर सोचते ही नहीं, करते भी हैं। इसके ठीक तीन दिन पहले बजरंग ने यह भी ट्वीट किया था कि जिंदगी बदलने के लिए लड़ना पड़ता है और आसान करने के लिए इसे समझना। भारत के इस तेजतर्रार पहलवान के ये शब्द बताते हैं कि वे अपने लक्ष्य को किस कदर जुनूनी हैं।
गांव में मना जश्न
इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में चल रहे 18वें एशियन गेम्स में 65 किलोग्राम भारवर्ग की कुश्ती के फाइनल मुकाबले में रेफरी के आखिरी सीटी बजाते ही यहां शहर में पहलवान बजरंग पूनिया के परिजन खुशी से नाचने लगे। बजरंग ने जापान के पहलवान ताकातिनी दायची को 11-8 से हराकर स्वर्ण जीता। स्वर्ण पदक जीतने की सूचना मिलते ही मॉडल टाउन स्थित बजरंग के आवास पर बधाई देने वालों का तांता लग गया।
यह भी पढ़ें: पाकिस्तान जाकर नवजोत सिंह सिद्धू को याद आए अटल, जानिए- क्या कहा
लोगों का कहना था कि म्हारे बजरंग ने इस बार एशियन गेम्स में पहला स्वर्ण पदक देश की झोली में डालकर प्रदेश व जिले का नाम रोशन कर दिया। उनकी इस जीत पर माता-पिता के साथ ही भाई व भाभी ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर बधाई दी। दूसरी ओर बजरंग पूनिया के पैतृक परिवार के सदस्यों को ही नहीं गांव खुड्डन के लोगों को भी पूरा विश्वास था कि लाडला गोल्ड ही जीतेगा। ग्रामीणों ने जब टीवी पर बजरंग को तिरंगा थामे हुआ देखा तो भारत माता की जय के जयकारों की गांव के हर घर में गूंज सुनाई दी। इस गूंज में खुशी का अहसास दोहरा करते हुए पटाखे भी खूब फोड़े गए। मिठाई बांटी गई।
बजरंग पूनिया के स्वर्ण पदक जीतने के बाद जश्न मनाते परिवार के सदस्य और पड़ोसी।
कभी घी खरीदने के लिए नहीं थे पैसे आज रुपयों की बारिश
26 फरवरी 1994 को झज्जर के गांव खुड्डन में जन्मे बजरंग फ्रीस्टाइल कुश्ती में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। बजरंग ने मात्र सात वर्ष की आयु में कुश्ती शुरू कर दी थी। कुश्ती के लिए उनके पिता चाहते थे कि बजरंग एक सफल रेसलर बने। इसके लिए उन्होंने बचपन से ही बजरंग का बहुत सपोर्ट किया। बजरंग पूनिया और उसके परिवार ने बड़ी करीब से गरीबी देखी है। हालत यह थे कभी घी खरीदने के लिए भी रुपये नहीं थे।
यह भी पढ़ें: पाक आर्मी चीफ को झप्पी देना सिद्धू पर पड़ा भारी, अब दे रहे सफाई, कैप्टन भी हुए गरम
दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में कुश्ती का ककहरा सीख रहे पुत्र को देसी घी देने के लिए पिता बलवान बस का किराया बचाने के लिए कई बार साइकिल पर गए तो बजरंग की मां ओमप्यारी ने चूल्हे की कालिख सहकर लाडले को दूध भिजवाया। उसके अभ्यास में कोई कमी न रह जाए, इसलिए परिवार करीब आठ वर्ष पूर्व सोनीपत शिफ्ट हो गया था। संयुक्त परिवार का हिस्सा बजरंग, के चाचा जगबीर पूनिया, दलबीर पूनिया और रणबीर पूनिया का कहना है कि सोनीपत में शिफ्ट करने का मुख्य कारण भी यहीं रहा कि वहां पर बेहतर ढंग से अभ्यास हो सके।
फाइनल मैच के दौरान भगवान से जीत की कामना करती मां ओमप्यारी।
मैच शुरू होने से पहले मां ने की पूजा
बजरंग की मां ओम प्यारी कहती हैं कि जकार्ता जाते समय बेटे को स्वर्ण पदक जीतने का आशीर्वाद दिया था और आज बेटे ने उसका मान रख लिया। ओम प्यारी ने बेटे के मैच से पहले पूजा कर जीत की कामना भी की। बजरंग के पिता बलवान सिंह ने बताया कि उनका पूरा परिवार सारा दिन टेलीविजन के सामने ही बैठा रहा। उन्होंने कहा कि बजरंग ने जिस शान से सेमीफाइनल में जीत दर्ज की थी, उससे हमें पूरी उम्मीद थी कि वह स्वर्ण जरूर जीतेगा। ऐसा ही हुआ।
हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें