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यादें 2020 : वर्क फ्रॉम होम : काम के हिसाब से तय हुआ समय, सीटिग का समय हुआ ज्यादा

- शिक्षक वर्ग के समक्ष आई खासी चुनौतियां

By JagranEdited By: Published: Thu, 31 Dec 2020 06:30 AM (IST)Updated: Thu, 31 Dec 2020 06:30 AM (IST)
यादें 2020 : वर्क फ्रॉम होम : काम के हिसाब से तय हुआ समय, सीटिग का समय हुआ ज्यादा
यादें 2020 : वर्क फ्रॉम होम : काम के हिसाब से तय हुआ समय, सीटिग का समय हुआ ज्यादा

- शिक्षक वर्ग के समक्ष आई खासी चुनौतियां जागरण संवाददाता, झज्जर : मार्च से लेकर दिसंबर तक के समय पर नजर दौड़ाए तो महानगरों में सेवाएं देने वाले युवाओं की वापिसी अपने घर में इस सोच के साथ हुई कि घर से काम करेंगे। दरअसल, शुरुआती दौर में ऐसे युवाओं की लंबी सूची शहर से गांव और कस्बों तक पहुंची तो संसाधनों को लेकर भी सवाल उठने लगा। लेकिन, इसी दौरान खास तौर पर बीएसएनएल ने वर्क फ्रॉम होम करने वाले सभी वर्गों के लिए विशेष छूट का एलान किया। जिसका जमीनी स्तर पर फायदा भी हुआ। ऐसे माहौल में हमारे जीने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया है। वर्क फ्रॉम होम यानि घर से काम करना अब आम हो चला है। धीरे धीरे ही सही हमने खुद को इसमें ढाल लिया है। इसके अपने फायदे और नुकसान भी हैं। काम करने की क्षमता तो बढ़ी ही है। उसके साथ स्ट्रेस भी बढ़ा है। फोन पर लगातार चैट करने के बावजूद हम अकेला महसूस करते हैं। अच्छा और स्वस्थ वर्क फ्रॉम होम माहौल बनाने के लिए विशेषज्ञ तरह तरह की सलाह देते हैं लेकिन हम अभी भी अपनी लय ढूंढ रहे हैं। आइटी प्रोफेशनल यमन सिघल के मुताबिक पहले काम का समय था, अब समय ही काम के हिसाब से तय होता है। कंपनी के विदेशी क्लाइंट होने की वजह से किसी भी समय मीटिग अरेंज हो रही है। ऐसे में सबसे बड़ा सुकून परिवार के लोगों को मिला है कि उनके साथ रहने का मौका मिला है। हालांकि, पूरी प्रक्रिया में दिक्कत उन लोगों को हुई है जो कि किसी तरह से कटौती का शिकार हुए है। जिन लोगों की किसी तरह की कटौती नहीं हुई, उन्हें तो फायदा ही हुआ है। साथ ही नया अनुभव भी। भविष्य को लेकर नए प्रोजेक्ट्स तैयार करने की सोच भी साकार होती दिख रही है। शिक्षक वर्ग के समक्ष आई चुनौतियां

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स्कूलों के समक्ष इन दिनों में सबसे ज्यादा चुनौतियां आईं। जिसमें विद्यार्थी, अभिभावक, शिक्षक सहित अन्य सभी वर्ग जो भी स्कूल से सीधे रूप से जुड़े थे, उन्हें प्रभावित होना पड़ा। बहुत से वरिष्ठ अध्यापक जो मोबाइल, लेपटॉप आदि के साथ काम करने में इजी नहीं थे, उन्हें अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा। जबकि, प्राइमरी कक्षाओं से जुड़े स्टॉफ की तनख्वाह में कटौती भी हुई। शिक्षिका अनिता बताती हैं कि शुरुआत में ऑनलाइन क्लासेस और बेटी की पढ़ाई में मदद के साथ घर के काम करना मुश्किल होता था। जैसे स्कूल में करती था। कॉपी चेक करने का टाइम, स्किल डेवलेपमेंट के लिए वेबिनार अटेंड करना, स्टूडेंट और अभिवावकों के साथ मीटिग करना। हर चीज का समय तय किया, उसके बाद ही व्यवस्था बन पाईं। ज्यादा सीटिग से शारीरिक स्तर पर बढ़ी समस्याएं :

दुनियाभर में लोगों का जीवन पटरी से उतर गया है। जिसका खासा असर आमजन पर भी पड़ा है। मौजूदा समय में वर्क फ्रॉम होम (घर से काम करना) का चलन बढ़ गया है। जिसकी वजह से लोगों को मानसिक एवं शारीरिक दोनों तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। हालांकि, कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने की सुविधा प्रदान की है। लॉकडाउन के दौरान ज्यादातर लोगों ने घरों से ही काम किया। हालांकि, हालात के सामान्य होने के बाद से अब धीरे-धीरे ऑफिस खुलने लगे हैं। वरिष्ठ चिकिस्तक डा. राकेश गर्ग के मुताबिक खास तौर पर इन दिनों में सीटिग का समय पहले से काफी बढ़ा है। लॉकडाउन और अनलॉक होने के बाद भी घर से बाहर निकलने पर अभी तक नियम कड़े हैं। साथ ही अब सर्दी के मौसम में भी शारीरिक गतिविधियां ठीक ढंग से नहीं हो पा रही। पिछले माह में मरीजों से मिले फीडबैक से पता चलता है कि शारीरिक और मानसिक दोनों की तरह की समस्याएं बढ़ी है। ऐसे में हम सभी को इस विषय को कतई नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। चूंकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि आने वाले कितने समय तक ऐसा ही चलने वाला है।


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