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राष्ट्रीय चेतना में स्वामी विवेकानंद और भगिनी निवेदिता की भूमिका पर व्याख्यान आयोजित

शहर के राजकीय स्नातकोत्तर नेहरू महाविद्यालय में रक्षा अध्ययन विभाग के तत्वाधान में व्याख्यानमाला के तहत राष्ट्रीय चेतना में स्वामी विवेकानंद और भगिनी निवेदिता की भूमिका पर विस्तार व्याख्यान आयोजित किए गए।

By JagranEdited By: Published: Thu, 30 Jun 2022 06:16 PM (IST)Updated: Thu, 30 Jun 2022 06:16 PM (IST)
राष्ट्रीय चेतना में स्वामी विवेकानंद और भगिनी निवेदिता की भूमिका पर व्याख्यान आयोजित
राष्ट्रीय चेतना में स्वामी विवेकानंद और भगिनी निवेदिता की भूमिका पर व्याख्यान आयोजित

जागरण संवाददाता, झज्जर : शहर के राजकीय स्नातकोत्तर नेहरू महाविद्यालय में रक्षा अध्ययन विभाग के तत्वाधान में व्याख्यानमाला के तहत राष्ट्रीय चेतना में स्वामी विवेकानंद और भगिनी निवेदिता की भूमिका पर विस्तार व्याख्यान आयोजित किए गए। राजकीय महिला महाविद्यालय, करनाल के भूगोल प्राध्यापक डा. राम प्रताप मुख्य वक्ता रहे। महाविद्यालय के प्राचार्य डा. सत्यव्रत ने उनका अभिनंदन किया और विद्यार्थियों को विस्तार व्याख्यान का लाभ उठाने के लिए प्रेरित किया।

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रक्षा अध्ययन प्राध्यापक डा. प्रताप फलसवाल ने कार्यक्रम का संचालन किया। अपने व्याख्यान में डा. रामप्रताप ने कहा कि स्वामी विवेकानंद का जीवन अल्पकालीन था। लेकिन, क्रियाशीलता से भरा हुआ था। उन पर आक्षेप भी लगें। लेकिन, जिसने आत्म ज्ञान प्राप्त कर लिया है, वह शांत रहता है। उनके साहित्य को पढ़कर जीवन की जटिलता समझ में आने लगती है। उन्होंने धर्म को सार्थक और सरल बनाकर प्रस्तुत किया। डा. रामप्रताप ने कहा कि विवेकानंद का जीवन और साहित्य रामकृष्ण परमहंस को समझने का भी माध्यम है। स्वामी विवेकानंद युवाओं को अतीत से शिक्षा लेने और उसे आत्मसात करने के लिए कहते थे। वे भारत को पूजनीय तीर्थ स्थल के रूप में मानते थे। उन्होंने अपने जीवन में कई प्रतिभाओं का मार्गदर्शन किया। विचारों से स्वतंत्रता आंदोलन को भी गति मिली। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस उनके विचारों से बहुत प्रभावित थे। डा. रामप्रताप ने बताया कि स्वामी विवेकानंद मानते थे कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए सामाजिक सेवा आवश्यक है और जिसका अपने मन पर नियंत्रण है, उसे बाहरी परिस्थितियां विचलित नहीं कर सकतीं। भगिनी निवेदिता के विचारों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि सत्य प्रेम और धार्मिक ²ष्टिकोण उनको विरासत में मिला था। वे निर्भीक, उग्र और जिज्ञासु स्वभाव की थी। भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण में उनका बहुत अधिक योगदान था। वे स्वाधीनता संग्राम से भी जुड़ी रही। व्याख्यान के बाद विद्यार्थियों ने कई प्रश्न पूछे और अच्छे प्रश्न पूछने वाले विद्यार्थियों को पुस्तक देकर पुरस्कृत किया गया। वरिष्ठ प्राध्यापक डा. धनपत ग्रेवाल और डा. जगदीश राहड सहित अन्य प्राध्यापक और विद्यार्थी यहां उपस्थित थे।


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