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आप भी रखें ध्यान! बच्चों में बढ़ रहा तनाव, घबराहट और चिड़चिड़ापन, ये हैं कारण...

थोड़ा अटपटा जरूर लगता है पर महज दस-बारह साल के बच्चों में भी तनाव घर कर रहा है। पहले तनाव और फिर अवसाद से पीडि़त बच्चों की तादाद बढ़ रही है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 06 Aug 2019 09:27 AM (IST)Updated: Wed, 07 Aug 2019 08:49 AM (IST)
आप भी रखें ध्यान! बच्चों में बढ़ रहा तनाव, घबराहट और चिड़चिड़ापन, ये हैं कारण...
आप भी रखें ध्यान! बच्चों में बढ़ रहा तनाव, घबराहट और चिड़चिड़ापन, ये हैं कारण...

फतेहाबाद [मुकेश खुराना]। थोड़ा अटपटा जरूर लगता है, पर महज दस-बारह साल के बच्चों में भी तनाव घर कर रहा है। पहले तनाव और फिर अवसाद से पीडि़त बच्चों की तादाद बढ़ रही है। फतेहाबाद जैसे छोटे जिले में सवा साल के दौरान 500 से ज्यादा बच्चों का संबंधित चिकित्सक से इलाज करवाने आना यही हकीकत बता रहा है। 

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बच्चों में घबराहट, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, हाथों व पैरों में सुन्नपन के लक्षण आ रहे हैं। मेंटल हेल्थ प्रोग्राम में बच्चों की होने वाली काउंसलिंग में इसके पीछे मुख्य कारण खेलना-कूदना सीमित होना तथा मोबाइल और टीवी का इस्तेमाल ज्यादा होना सामने आ रहा है।

स्वास्थ्य विभाग की तरफ से चलाए जा रहे जिला मेंटल हेल्थ कार्यक्रम में रोजाना तनाव के शिकार बच्चों के दो से तीन केस सामने आ रहे हैं, जिसमें अभिभावक बच्चों के बारे में बताते हैं कि वह अकेला और गुमसुम रहता है यहां तक कि चिड़चिड़ा रहता है। इसके अलावा बच्चों में जिद्दीपन भी आ रहा है

चिकित्सकों के मुताबिक जब केसों में बच्चों और अभिभावकों की काउंसिलिंंग की जाती है तो पता चलता है कि बच्चा स्कूल समय के बाद बाहर खेलने ही नहीं जाता है। अकेले में ही दो से तीन घंटे तक मोबाइल या फिर टीवी पर ही चिपका रहता है। इस वजह से उसका व्यवहार बदल रहा है।

तनाव के ये कारण भी आए सामने 

केस एक

जिला मेंटल हेल्थ की काउंसिङ्क्षलग में सामने आया कि पांचवीं कक्षा में पढऩे वाले छात्र को टीचर अच्छी नहीं लगी। इसके चलते उसने जिद पकड़ ली कि वह टीचर के सामने नहीं जाएगा और वह तनाव में चला गया। इसके अभिभावक उसे चिकित्सकों के पास लेकर आए।

केस दो

11 साल की छठी कक्षा में पढऩे वाली छात्रा का कद न बढऩे के कारण वह तनाव में चली गई। बच्ची के हाथ-पैरों में सुन्नापन और चिड़चिड़ापन आ गया। मामले में बच्ची व उसके अभिभावकों की काउंसिङ्क्षलग की गई। लगातार हुई काउंसिलिंग के बाद बच्ची नार्मल हुई।

सबसे ज्यादा 10 से 12 साल तक के बच्चे शामिल

जिला मेंटल हेल्थ प्रोग्राम केे काउंसलर क्लीनिकल मनोचिकित्सक डॉ. गविंदर कौर का कहना है कि बच्चे भी तनाव का शिकार हो रहे और इनका आंकड़ा लगाता बढ़ता ही जा रहा है। सबसे ज्यादा 10 से 12 साल तक के बच्चे शामिल हैं। इसके पीछे मुख्य कारण मोबाइल का सबसे ज्यादा प्रयोग करना है। खेलों तक बच्चे सीमित रह गए हैं। अभिभावकों को चाहिए कि वह बच्चे के व्यवहार को नोट करें और स्पेशलिस्ट की सहायता लें। अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो आने वाले समय में परिणाम भयानक हो सकते हैं।

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