पुरानी संस्कृति को भूल फूहड़ता की ओर जाने लगी हैं नई पीढि़यां
- पश्चिम सभ्यता के प्रभाव में भूल गए नवसंवत्सर का महत्व भी
- पश्चिम सभ्यता के प्रभाव में भूल गए नवसंवत्सर का महत्व भी
- नवसंवत्सर के मौके पर झज्जर के आर्यसमाज में वैदिक विद्वानों के उपदेश
- वैदिक यज्ञ के बाद आर्य समाज में हुआ सत्संग कार्यक्रम जागरण संवाददाता, झज्जर : नवसंवत्सर के अवसर पर रविवार को आर्य समाज झज्जर में वैदिक यज्ञ व सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। पुरोहित प्रदीप शास्त्री के ब्रह्मत्व में वैदिक यज्ञ किया गया। वैदिक मंत्रोच्चारण के दौरान प्रदीप शास्त्री ने भारत की नष्ट होती समूल संस्कृति पर चिता जताते हुए कहा कि पाश्चात्य सभ्यता की और दौड़ते भारतवासी अपनी संस्कृति और संस्कारों का भूलते जा रहे हैं। शास्त्री ने कहा कि बीते कुछ वर्षों में भारत में ऐसी प्रथाओं का प्रचलन हुआ है जिसका आदिकाल में कोई वर्चस्व तक नहीं था। अप्रैल फूल, नव वर्ष के बहाने होने वाली फूहड़ता का जिक्र करते हुए प्रदीप शास्त्री ने कहा कि आए दिन नए शुरु होते इन तौर-तरीकों से भावी पीढि़यों में संस्कार नदारद होने लगे हैं। उपस्थित आर्यजनों को नवसंवत्सर की बधाई देते हुए प्रदीप शास्त्री ने आर्य समाज के नियमों का पालन करते हुए भावी पीढि़यों को संस्कारवान बनाने का आह्वान किया।
नवसंवत्सर पर ही चर्चा करते हुए गुरुकुल खतौली से पधारे आर्य विद्वान पवनवीर ने कहा कि जब से सृष्टि की रचना हुई है तभी से नवसंवत्सर से ही नए वर्ष का आगमन माना गया है। उन्होनें कहा कि आदिकाल से ऋषि मुनि भी नवसंवत्सर को ही नए साल के रुप में मनाते थे। लेकिन, भारत में बदलती संस्कृति के कारण ही पाश्चात्य देशों की भांति एक जनवरी के दिन ने नए साल का रुप ले लिया। पवनवीर ने कहा कि भारतीय संस्कृति आदिकाल से ही वैदिक सनातन संस्कृति रही है और हमें आर्य समाज के बताए मार्ग पर चलते हुए इसी संस्कृति को आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
कार्यक्रम के दौरान वैदिक आचार्य अरविद गार्गी ने अपनी सुपुत्री नंदिनी के साथ मधुर भजनों की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में पहुंचने पर आर्य समाज समिति के प्रधान प्रवेश छिकारा ने उपस्थित आर्यजनों का आभार प्रकट किया। इस मौके पर गुरुकुल झज्जर के प्रधान पूर्णसिंह देशवाल, रिटायर्ड बीईओ वीके नरुला, महामंत्री लाला प्रकाशवीर, लाला सूर्यप्रकाश, लाला रामअवतार, सचिव डाक्टर गौतम आर्य, आर्य दलीप सिंह, आर्य जयभगवान, आर्य पन सिंह, आर्य भगवान देव, कर्मबीर, जय प्रकाश राठी, जीतेंद्र बराणी, कृष्णदत्त जांगड़ा सहित बड़ी संख्या में आर्यजन उपस्थित रहे।