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रेडिएशन पहुंचा रहा पर्यावरण को नुकसान, एक्स-रे की जगह लेगी टेराहर्ट-रे

गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन पर शुरु हुआ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन। नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांस के ऑर्थर रिडेकर सहित पहुंचे देश-विदेश के वैज्ञानिक

By manoj kumarEdited By: Published: Tue, 19 Feb 2019 05:59 PM (IST)Updated: Wed, 20 Feb 2019 03:13 PM (IST)
रेडिएशन पहुंचा रहा पर्यावरण को नुकसान, एक्स-रे की जगह लेगी टेराहर्ट-रे
रेडिएशन पहुंचा रहा पर्यावरण को नुकसान, एक्स-रे की जगह लेगी टेराहर्ट-रे

हिसार, जेएनएन। बदलते वातावरण के कारण दुनियाभर में मानव स्वास्थ्य पर खतरनाक दुष्प्रभाव पड़ रहा है। प्रदुषण ही नहीं रेडिएशन के कारण लोगों को नुकसान पहुंच रहा है। अस्पतालों में होने वाला एक्स-रे हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाता है। इससे हमारे कई अच्छे सेल भी नष्ट हो जाते हैं, यहां तक की हमारे डीएनए को भी रेडिएशन नुकसान पहुंचा रहा हैं। भविष्य में एक्स रे का स्थान टेराहर्टज रेडिएशन लेने वाली हैं। आइआइटी दिल्ली के वैज्ञानिक प्रो. एचके मलिक और उनकी टीम ने 15 साल में इस शोध पर सफलता पाई है।

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प्रो. मलिक के अनुसार आने वाले समय में टेराहर्टज-रे का इस्तेमाल इलाज के लिए होगा। इससे कैंसर का इलाज करने में भी आसानी होगी। उन्होंने बताया कि टेराहर्टज-रे पानी में जाते ही समाप्त हो जाती है। हमारे शरीर में भी पानी की मात्रा है। इसलिए ये अपना काम करके वहीं पर खत्म हो जाएंगी। प्रो. मलिक गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन पर शुरू हुए तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे थे।

इस कांफ्रेंस में नाबेल पुरस्कार विजेता प्रो. ऑर्थर रिडेकर सहित दुनिया के विभिन्न देशों के वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन पर मंथन करेंगे। गुजवि के चौधरी रणबीर सिंह सभागार में हुए इस सम्मेलन में आइएनआरए, फ्रांस के निदेशक एवं नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. ऑर्थर रिडेकर बतौर मुख्यातिथि मौजूद रहे। जबकि एनएचएमआरसी, आस्ट्रेलिया के प्रो. रिचर्ड शेफरी ने बतौर मुख्य वक्ता शिरकत की। अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने की।

जैविक खेती रोक सकती है खतरनाक गैसों का उत्सर्जन

प्रो. ऑर्थर रिडेकर ने कहा कि ग्रीन हाऊस गैसों से अत्याधिक उत्सर्जन के कारण वातावरण पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है और ग्लेशियर पिघल रहे है। समुद्र के पानी का स्तर बढ़ रहा है। फसल चक्र बदल रहे हैं। उन्होंने कहा कि जैविक खेती खतरनाक गैसों के उत्सर्जन को रोकने में सहायक हो सकती है। अगर वातावरण इसी तरह से प्रदूषित होता रहा, तो पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो जाएगा। यह हमारे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुनौती है कि विकास के सही अर्थ को समझें और विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट न करें।

बदलते वातावरण के कारण समय से पूर्व हो रहा प्रसव

प्रो. रिचार्ड शेफरी ने कहा कि बदलते वातावरण के कारण मानव के स्वास्थ्य पर खतरनाक रूप से दुष्प्रभाव पड़ रहा है। इसका असर धीरे-धीरे हो रहा है, जिसका हमें पता भी नहीं चलता। बदलते वातावरण के कारण ही गर्भस्थ शिशु प्रभावित हो रहे हैं। यहां तक कि गर्भ के शिशु का डीएनए तक बदलते वातावरण के कारण प्रभावित हो रहा है। यही कारण है कि समय से पूर्व प्रसव हो रहा है। उन्होंने कहा कि दुनिया में अधिकांश मौतों का कारण नॉन-कम्युनिकेबल बीमारियां हैं।


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