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विश्व वेटलैंड दिवस: मानव सभ्यता के लिए स्वच्छ जल चाहिए तो बचानी होगी आद्रभूमि

यूएन जलवायु परिवर्तन पर फ्रेमवर्क कन्वेंशन के अनुसार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वेटलैंड विश्व के स्वच्छ पानी के उपयोग का सबसे बड़े स्रोत हैं। ऐसे में वेटलैंड (आद्रभूमि) का संरक्षण आज के समय में काफी जरूरी हो गया है। भारत में 7 लाख से अधिक वेटलैंड हैं।

By Manoj KumarEdited By: Published: Tue, 02 Feb 2021 11:14 AM (IST)Updated: Tue, 02 Feb 2021 11:14 AM (IST)
विश्व वेटलैंड दिवस: मानव सभ्यता के लिए स्वच्छ जल चाहिए तो बचानी होगी आद्रभूमि
वेटलैंड प्राकृतिक या कृत्रिम क्षेत्र है जो कि गतिहीन या प्रवाहित, ताजा या खारा पानी विशेषतया दलदली पाया जाता है

हिसार, जेएनएन। शुद्ध जल आगे चलकर हर देश के लिए एक चुनौती बन सकता है। भारत के प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1951 में 5177 क्यूबिक मीटर थी जो वर्तमान में घटकर करीब 1700 क्यूबिक मीटर रह गई है। अनुमान है कि 2025 तक यह घटकर 1340 क्यूबिक मीटर रह जाएगी जो कि हमारे देश के जल सरंक्षण के सामने का एक बड़ी चुनौती रहेगा। यूएन जलवायु परिवर्तन पर फ्रेमवर्क कन्वेंशन के अनुसार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वेटलैंड विश्व के स्वच्छ पानी के उपयोग का सबसे बड़े स्रोत हैं। ऐसे में वेटलैंड (आद्रभूमि) का संरक्षण आज के समय में काफी जरूरी हो गया है। भारत में 7 लाख से अधिक वेटलैंड है जो कि देश के 4.5 फीसद क्षेत्र में स्थित है। हरियाणा में सुल्तानपुर (गुरुग्राम), भिंडावास (झज्जर) और बड़खल (फरीदाबाद) में ही वेटलैंड है। हर वर्ष दो फरवरी को विश्व वेटलैंड दिवस मनाया जाता है ताकि वेटलैंड हमारी पृथ्वी और मनुष्य के लिए कितनी महत्वपूर्ण है इस बाबत वैश्विक जागरूकता बनी रहे।

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क्या होता है वेटलैंड

वेटलैंड ऐसा प्राकृतिक या कृत्रिम क्षेत्र है जो कि गतिहीन या प्रवाहित, ताजा या खारा पानी विशेषतया दलदली या अन्य क्षेत्रों में पाया जाता है। इसमें ऐसा समुद्री क्षेत्र भी शामिल है, जहां निम्न ज्वार की स्थिति में जल की गहराई छह मीटर से अधिक नहीं होती है। वेटलैंड को स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के मध्य की भूमि माना जाता है। जहां भूमि का जलस्तर प्राय सतह के पास होता है, यह भूमि उछले जल से आच्छादित होती है। ईरान के रामसर स्थान में 1971 मैं वेटलैंड सरंक्षण को लेकर एक महत्वपूर्ण संधि हुई, यह संधि वेटलैंड और उसके संसाधनों के संरक्षण आदि के लिए काम करती है। मानव सभ्यता के विकास के समय से ही नदियों के बेसिन और तटीय क्षेत्र मानव संस्कृति के विकास के एपीसेंटर रहे हैं, और इन एपीसेंटर का बना रहना मानव सभ्यता के विकास के लिए कठिन है।

वेटलैंड का यह है महत्व

वेटलैंड हमारे प्राकृतिक पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण भाग है इसके द्वारा बाढ़ का नियंत्रण, तटीय इलाकों की रक्षा करना और आपदाओं से समुदाय को सुरक्षा प्रदान करना, बाढ़ के प्रभाव को कम करना, प्रदूषकों को अवशोषित करना तथा जल की गुणवत्ता में सुधार करने जैसे मुख्य कार्य किए जाते हैं। एक बिलियन से अधिक लोग अपनी आजीविका के लिए वेटलैंड पर निर्भर है तथा विश्व की 40 प्रतिशत प्रजातियां अपना अधिवास और प्रजनन वेटलैंड में करती हैं। यह वेटलैंड परिवहन, पर्यटन और लोगों के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कल्याण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

शुद्ध जल आगे जाकर बन सकता है चुनौती

विश्व वेटलैंड दिवस 2021 की थीम है वेटलैंड एंड वॉटर, इसके द्वारा शुद्ध जल को संरक्षित रखने में वेटलैंड की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है। जैसा कि आप सभी को पता होगा कि भविष्य में स्वच्छ जल की कमी मानव समुदाय के सामने बड़ी समस्या है। जैसे जैसे मानव संस्कृति विकास की ओर बढ़ती जा रही है और शहरीकरण की दर दिन प्रतिदिन तेजी से बढ़ती ही जा रही है। इसके फलस्वरूप अविरत मानव गतिविधियों के कारण वेटलैंड का शहरीकरण के कारण अतिक्रमण, वेटलैंड का कृषि भूमि में परिवर्तन, कृषि अपवाह के कारण वेटलैंड का प्रदूषित होना, वेटलैंड से जल का बाहर निकलना और स्थानीय लोगों के मध्य शैक्षिक और पर्यावरण जागरूकता के अभाव के कारण वेटलैंड के समाप्त होने का संकट दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

संरक्षण के लिए लेने होंगे निर्णय

हमें इस तरह के नीतिगत निर्णय लेने पड़ेंगे जिसमें हमारे शहर के विकास के जो मास्टर प्लान है उनको इन्टीग्रेटेड वेटलैंड मैनेजमेंट के साथ जोड़ा जा सके।अतः समय आ गया है कि हमारे शहर के नगर परिषद, नगर निगम, स्कूल, कॉलेज, जन प्रतिनिधि और स्वयंसेवी संस्थाएं जल और वेटलैंड के सह अस्तित्व संबंधी जागरूकता अभियान नियमित चलाएं। सीवेज डिस्पोज़ल जिसके कारण वेटलैंड प्रदूषित होते हैं और स्वच्छ जल पर संकट बढ़ता है वैसे सीवरेज को प्राकृतिक उपचार के माध्यम से उपचारित करना पड़ेगा। इसके अलावा भारत के विभिन्न झीलों जिनका इनलेट और आउटलेट चैनल बंद हो गया है उनको तुरंत प्रभाव से खोलना पड़ेगा।

प्रस्तुति: डा. सुनील कुमार (भारतीय वन सेवा, हरियाणा काडर), यदु भारद्वाज (भारतीय वन सेवा, गुजरात काडर)


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