चूल्हा-चौका छोड़ coronavirus से जंग लड़ रहीं महिलाएं, लक्ष्मण रेखा खींच दे रहीं पहरा
ढराणा गांव की महिलाएं सड़कों पर दे रहीं पहरा। जिम्मेवारी निभाने के लिए सुबह के समय निपटा रहीं घर का काम। पांच-पांच महिलाओं के चार ग्रुप बनाकर निभा रहीं जिम्मेवारी
बेरी/झज्जर, [पूर्ण कौशिक] कोरोना से जंग जीतने को ढराणा गांव की महिलाओं ने अपना चूल्हा-चौका छोड़कर सड़क पर पहरा देने का जिम्मा उठाया है। सुबह पांच बजे उठकर पहले घर का जरूरी काम करने के बाद पांच-पांच महिलाओं के यह चार ग्रुप गांव को जोडऩे वाली अलग-अलग सड़कों पर दिन भर मौजूद रहते हैं। गांव में आने वाले किसी भी व्यक्ति को मास्क देने के अलावा हाथों को सैनिटाइज करने के बाद ही प्रवेश करने दिया जा रहा है। जबकि, गांव से बाहर के किसी भी व्यक्ति को प्रवेश करने की छूट नहीं दी जा रही है।
बता दें कि गांव ढराणा से चिमनी, बाकरा, मसूदपुर, दूबलधन, काहनौर, बेरी को जोडऩे वाले छह रास्ते निकलते हैं। क्रमवार इन मार्गों पर पहुंचकर यह पूरी निगरानी रखे हुए हैं। ताकि, प्रधानमंत्री के आह्वान पर गांव के बाहर बनाई गई लक्ष्मण रेखा को कोई भेदते हुए अंदर नहीं आने पाए।
करीब 3400 की आबादी वाले इस गांव की सावित्री, कविता, सुदेश, सकीना व मोनिका ने बताया कि वह स्वयं भी शारीरिक दूरी के फार्मूला और उसकी गंभीरता को अच्छी तरह से समझती है। सुबह जल्दी काम करने के बाद पहले तो गांव में जहां भी ताश की चौकड़ी या चौपाल आदि लगती हैं, की चेकिंग करती हैं। युवाओं एवं पुरुषों को भी समझाया जा रहा है कि किसी भी स्तर पर कोई लापरवाही नहीं बरती है।
इसी क्रम में चिमनी के रास्ते पर मौजूद सपना, स्वीटी, कृष्णा तथा काहनौर के रास्ते पर मंजू, मंजूबाला, कृष्णा व संतोष ने बताया कि सिर्फ जागरूक रहकर ही इस बीमारी से बचा ज सकता है। इसलिए प्रयास है कि गांव की दहलीज से यह बीमारी प्रवेश ही नहीं करने पाए। गांव के बाहर से सब्जी, फल सहित अन्य सामान बेचने वालों को छूट नहीं दी जा रही है। स्थानीय दुकानदारों से ही सामान की पूर्ति आदि की जा रहीं है।