पड़ोसी से आटा मांगने गई तो कर दिया इन्कार, फिर खुद का काम शुरू कर महिलाओं को भी दिया रोजगार
एक महिला घर पर आटा खत्म होने के कारण पड़ोसी से मांगने के लिए गई तो पड़ोसियों ने मना कर दिया कहा कि उनके पास आटा नहीं हैं। एक बार तो दिल पर बोझ बढ़ा लेकिन जैसे-तैसे खुद को समझाया। फिर एक नई बयार शुरू की।
झज्जर, जेएनएन। गरीबी इंसान से क्या कुछ नहीं करवाती। किसी के भी आगे हाथ फैलाने पड़ जाते हैं। मगर कई बार ऐसी ही घटना हमारी जिंदगी की दिशा भी बदल देती है। एक महिला के साथ भी ऐसा ही हुआ। जब वह एक बार घर पर आटा खत्म होने के कारण पड़ोसी से मांगने के लिए गई तो पड़ोसियों ने यह कहते हुए मना कर दिया कि उनके पास आटा नहीं हैं।
एक बार तो दिल पर बोझ बढ़ा, लेकिन जैसे-तैसे खुद को समझाया। मगर झज्जर के गांव ढाणा निवासी रानी ने इसके बाद परिवार को संभालने की ठानी। वे करीब तीन वर्ष पहले स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) से जुड़ी। गांव की महिलाएं इकट्ठी होकर 30-30 रुपये जमा करती थी। लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वे खुद ये 30 रुपये भी नहीं जमा कर पाई और स्वयं सहायता समूह भी छोड़ना पड़ा। गरीबी ने बार-बार उनका इम्तिहान लिया।
रानी बताती है कि उनके पति बलराम ट्रक चालक हैं और उनकी नौकरी से घर खर्च भी बड़ी मुश्किल से चलता था। लेकिन वे करीब डेढ़-2 साल पहले हुमाना पीपल टू पीपल इंडिया संस्था के प्रतिनिधियों से मिली। उन्होंने उसे खुद का काम शुरू करने के लिए प्रेरित किया। साथ ही रानी को पहले ट्रेनिंग दी और उसके बाद कपड़े की दुकान शुरू करवा दी। हालांकि दुकान शुरू करने के लिए उन्होंने 30 हजार का लोन लिया और परिवार के सहयोग से दुकान शुरू कर ली।
जिसके बाद उन्होंने पूरी मेहनत के साथ काम किया। साथ ही सिलाई व स्वेटर बनाने का काम भी करने लगी। जिसकी बदौलत आज उनकी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया। हालांकि लॉकडाउन के दौरान बलराम का काम बंद हो गया था और घर पर बैठे थे। इस दौरान मेहनत मजदूरी करने मंडी में गए तो एक हादसे में उनके पति को गंभीर चोटें आई। पांव पर लगी चोट के कारण आपरेशन भी हुआ। फिलहाल वे काम नहीं कर पा रहे। ऐसे में रानी ही घर खर्च चला रही हैं।
रानी ने बताया कि खुद की दुकान शुरू करने के बाद उन्होंने आसपास के गांव की महिलाओं को भी स्वयंरोजगार के लिए जागरूक करना आरंभ कर दिया। उनका मानना था कि जिस तरह उन्होंने गरीबी को झेला है उस तरह दूसरी महिलाओं को गरीबी दिक्कत ना दे। इसलिए उन्होंने दूसरी महिलाओं को भी रोजगार देने की ठानी। इसके लिए वे करीब 20 महिलाओं का काम शुरू करवा चुकी हैं। इनमें से अधिकतर महिलाएं गांव ढाणा की ही रहने वाली हैं। वहीं कुछ महिलाएं गांव धनीरवास, साल्हावास व साल्हावास की ढाणी की रहने वाली है। इसके लिए वे पहले महिलाओं से संपर्क करती हैं और बाद में खुद का काम शुरू करने के लिए प्रेरि करती है। जिससे कि दूसरी महिलाएं खुद का काम करें और घर खर्च में हाथ बटाएं।
खुद का काम शुरू होने के बाद रानी ने फिर से स्वयं सहायता समूह शुरू किया। फिलहाल वे ग्राम संगठन की सचिव व साल्हावास ब्लॉक संगठन की प्रधान हैं। इस दौरान वे गांव में करीब 11-12 स्वयं सहायता समूह भी शुरू करवा चुकी हैं। हालांकि उसे हुमाना पीपल टू पीपल इंडिया ने सिलाई मशीन भी दी, जिससे उसका कार्य भी आसान हो गया। उन्होंने बताया कि इससे पहले ना तो खुद का घर था और ना ही दुधारु पशु। लेकिन खुद का काम करने व पति की नौकरी के चलते पहले खुद का घर बनाया और बाद में दुधारू पशु भी रखे। हालांकि फिलहाल पति को चोट लगने व खुद बीमार होने के चलते पशुओं को बेचना पड़ा। वहीं बेटा व बेटी को भी अच्छे से पढ़ा-लिखाकर कामयाब करने में जुटी हुई हैं।