जब राजनीति के धुरंधर ताऊ देवीलाल युवा नेता से खा गए थे पटखनी, जानें उस हलके का क्या हुआ
प्रोफेसर छत्रपाल ने 1991 के विधानसभा चुनाव में ताऊ देवीलाल को इसी हलके से हराया था। 2005 में अंतिम बार भी इस हलके से प्रोफेसर छत्रपाल चुनाव लड़कर जीते थे। हलका खत्म हो चुका है
हिसार [चेतन सिंह] घिराय हलका ताऊ देवीलाल की कर्म स्थली रहा है। यहा जनता पार्टी की टिकट से 1991 में ताऊ देवीलाल ने चुनाव लड़ा और हार का सामना करना पड़ा था। देवीलाल जैसे दिग्गज को हराने वाले प्रोफेसर छत्रपाल इसी हलके से कांग्रेस की टिकट पर दो बार विधायक चुने गए थे। 2005 में इस हलके में अंतिम बार चुनाव हुआ था। इन चुनाव में प्रोफेसर छत्रपाल ने निर्दलीय उम्मीदवार जोगीराम सिहाग को 26 हजार 444 वोटों से हराया था। घिराय हलके से जीतकर कंवल सिंह और प्रोफेसर छत्रपाल दोनों कैबिनेट मिनिस्टर बने थे। कंवल सिंह बंसीलाल सरकार में कैबिनेट मंत्री थे और प्रोफेसर छत्रपाल भजनलाल के समय में मंत्री बने थे। मगर बाद में इन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया था।
सबसे ज्यादा इस हलके से देवीलाल और बंसीलाल के साथ काम करने वाले कंवल सिंह जीते थे। कंवल सिंह घिराय हलके से तीन बार विधायक रह चुके हैं। 1977 में कंवल सिंह पहली बार घिराय हलके से विधायक चुने गए थे। इस हलके से लगातार दो बार जीतने का रिकॉर्ड भी कंवल सिंह के नाम पर है। कंवल सिंह 1977 और 1982 में लगातार दो बार विधायक चुने गए थे। घिराय हलका 2005 में बरवाला हलके में शामिल हो गया था। हालांकि जिस गांव के नाम पर पूरे हलके का नाम था। वह घिराय गांव अब हांसी में है।
कांग्रेस व लोकदल का रहा है दबदबा
घिराय हलके सबसे अधिक लोकदल के उम्मीदवार तीन बार जीतकर आया था। मगर जब खुद देवीलाल यहां से चुनाव लड़े तो मात्र 2154 वोट से हार गए थे। कांग्रेस इस हलके से दो बार और बंसीलाल की पार्टी हविपा एक बार यहां से जीती हैं।
ये विधायक यहां से चुनकर आए
- 1977 में जनता पार्टी के कंवल सिंह ने सुरेश मित्तल हो हराया था।
- 1982 में लोकदल के कंवल सिंह ने सुरेश मित्तल को हराया
- 1987 में लोकदल के आत्माराम गोदारा ने सुरेश मित्तल को हराया
- 1991 में कांग्रेस के छत्रपाल ने चौधरी देवीलाल को हराया
- 1996 में हविपा के कंवल सिंह ने छत्रपाल को हराया
- 2000 में इनेलो के पूर्ण सिंह डाबड़ा ने छत्रपाल को हराया
- 2005 में कांग्रेस के छत्रपाल ने जोगीराम सिहाग को हराया