हिसार, चेतन सिंह। निकाय मंत्री हिसार के विधायक डा. कमल गुप्ता ने नए साल वाले दिन हिसार आकर कहा था कि मैं मंत्री नहीं बना बल्कि शहर की जनता मंत्री बनी है। मेरे महकमे के नीचे 40 आइएएस काम करते हैं इसलिए आप लोग मंत्री वाली फिलिंग लें। गलती से यह फीलिंग पार्षद महेंद्र जुनेजा ने ले ली। अपनी फीलिंग का खामियाजा उनको मंगलवार को खुद सीवरेज की गंदगी उठाकर भुगतना पड़ा। निकाय मंत्री ने साफ संदेश दिया था कि जनप्रतिनिधियों के काम एक फोन पर होने चाहिए, मगर हुआ उल्टा। वार्ड 15 के भाजपा पार्षद महेंद्र 15 दिन से अपने वार्ड में मलबा उठाने के लिए अफसरों को फोन कर रहे थे मगर कोई सुनवाई नहीं हुई। लोगों ने भी काम न होता देख पार्षद को टोकना शुरू कर दिया। पार्षद इतना परेशान हो गए कि स्वयं कस्सी लेकर सीवरेज की गदंगी उठाने लग गए। पटेल नगर में 15 दिन पहले निकाली गंदगी सड़क पर ही पड़ी थी।
अब संडे हो या मंडे क्या फर्क पड़ता है
हिसार से दो मंत्री और एक डिप्टी स्पीकर हैं। डिप्टी सीएम की कर्मभूमि भी हिसार है। ऐसे में वीकेंड पर माननीय घर आ जाते हैं मगर उनके आने से पुलिस व प्रशासन दोनों का काम बढ़ जाता है। अफसरों की हालत ऐसी हो गई है कि किसी को छुट्टी जाना हो तो छुट्टी वाले दिन की भी छुट्टी मांगनी पड़ती है। नेताओं के प्रोटोकाल का ध्यान रखता पड़ता है। सरकारी नौकरी करने वाले अफसर भी बोलने लगे हैं कि इससे सही तो प्राइवेट नौकरी ही है। कम से कम छुट्टी वाले दिन तो कोई तंग नहीं करता। पहले ही दो वीआइपी हिसार से थे जिनको किसी तरह मैनेज करते थे मगर तीसरा मंत्री तो खुद शहर का है। और तो और समय पर वो हमसे भी पहले पहुंच जाता है। अब और नहीं सहा जाता। संडे की छुट्टी मंत्री नहीं लेने देते तो मंडे की छुट्टी डीसी मैडम नहीं देती।
लड़ो पढ़ाई करने को...
छात्र राष्ट्र के भाग्य विधाता... यह वाक्य तभी सार्थक माना जाएगा जब कालेजों में शिक्षा व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहे। अध्यापक युग निर्माता के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन करते रहें। लेकिन कोरोना के प्रभाव करीब दो वर्ष बाद स्थिति नियंत्रित हुई तो एक बार फिर से राष्ट्र के इन भाग्य विधाताओं ने शिक्षा के मंदिर में प्रवेश किया। शुरू हुआ पढ़ाई लिखाई का दौर, लेकिन कुछ दिनों बाद कोरोना की तीसरी लहर के कारण शिक्षा के मंदिरों के कपाट बंद होने लगे। आदेश जारी कर दिए गए कि देश के भाग्य विधाताओं की सुरक्षा के लिए उन्हें कुछ दिन फिर घरों पर रहकर आनलाइन माध्यमों से युगनिर्माण की शिक्षा लेनी होगी। सरकार का यह फरमान इन कर्णधारों को मंजूर नहीं है। अब पढ़ाई की लड़ाई सड़कों पर आ गई है। तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि लड़ो पढ़ाई करने को... पढ़ो समाज बदलने को।
कोरोना ने ढाया कहर तो बिना प्रैक्टिकल ही हो रही एमबीबीएस
फरवरी की शुरुआत में चीन में कोरोना केस बढऩे पर वहां लाकडाउन लगा था, जिसके बाद वहां से सभी विदेशी विद्यार्थियों को वापस अपने देशों में भेज दिया गया था। इनमें से चीन के विश्वविद्यालयों से एमबीबीएस करने वाले कई भारतीय विद्यार्थी भी चीन से लौटे थे। तब से चीन के विश्वविद्यालय भारतीय विद्यार्थियों को भी अन्य देशों के विद्यार्थियों की तरह आनलाइन ही पढ़ा रहे हैं। अब पूरे दो साल होने को है लेकिन एमबीबीएस भी आनलाइन ही करवाई जा रही है। हिसार में चीन से लौटे एमबीबीएस अखिल जैसे एमबीबीएस छात्र चिंतित हैं कि एमबीबीएस में जिन विषयों की प्रैक्टिकल जानकारी जरूरी है, उनका क्या किया जाए? अगर इन विषयों की प्रेक्टिकल जानकारी नहीं दी तो वे एमबीबीएस की डिग्री तो ले लेंगे। लेकिन बिना प्रैक्टिकल ज्ञान के कैसे वे मरीजों का सही उपचार कर पाएंगे। ऐसे में उन्हें प्रैक्टिकल जानकारी के लिए अलग से प्रैक्टिस करनी होगी।
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