सफेद मक्खी के अनुकूल है मौसम, इसीलिए गांवों में फसल हुई बर्बाद
कृषि विज्ञानियों ने वेबिनार के माध्यम से किसानों को दवाएं भी बताई जिनका प्रयोग कर वह कपास की फसल बचा सकते हैं। विज्ञानियों ने बताया कि इस साल मौसम सफेद मक्खी के अनुकूल है। आवश्यकतानुसार बारिश नहीं होगी तो इसका प्रकोप और भी बढ़ सकता है। इसलिए किसान अपनी फसलों का विशेष ध्यान रखें और लक्षण दिखाई देते ही कृषि विज्ञानियों से परामर्श करें। वेबिनार अनुसंधान निदेशक डा. एसके सहरावत की देखरेख में आयोजित किया गया। कपास विज्ञानी डॉ. ओमेंद्र सांगवान ने मंच का ऑनलाइन संचालन किया।
जागरण संवाददाता, हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में शुक्रवार को कपास की फसल में रोगों के प्रबंधन को लेकर वेबिनार आयोजित हुआ। इसमें पौध प्रजनन एवं आनुवांशिकी विभाग द्वारा किसानों को कपास के रोग के साथ कीटों से बचाव के बारे में भी बताया गया। कुलपति प्रो. समर सिंह ने कहा कि मौजूदा समय में यह वेबिनार इसलिए भी जरूरी हो गया है, क्योंकि क्षेत्र में उखड़ा रोग के कारण कपास की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई है।
कृषि विज्ञानियों ने वेबिनार के माध्यम से किसानों को दवाएं भी बताई, जिनका प्रयोग कर वह कपास की फसल बचा सकते हैं। विज्ञानियों ने बताया कि इस साल मौसम सफेद मक्खी के अनुकूल है। आवश्यकतानुसार बारिश नहीं होगी तो इसका प्रकोप और भी बढ़ सकता है। इसलिए किसान अपनी फसलों का विशेष ध्यान रखें और लक्षण दिखाई देते ही कृषि विज्ञानियों से परामर्श करें। वेबिनार अनुसंधान निदेशक डा. एसके सहरावत की देखरेख में आयोजित किया गया। कपास विज्ञानी डॉ. ओमेंद्र सांगवान ने मंच का ऑनलाइन संचालन किया।
किसानों को यह दिए सुझाव विज्ञानियों की सलाह का पालन करें
अतिरिक्त अनुसंधान निदेशक डॉ. नीरज कुमार ने कहा कि कपास प्रदेश की एक महत्वपूर्ण नगदी फसल है। इसलिए किसानों को इस फसल के लिए कृषि विज्ञानियों द्वारा समय-समय पर दी जाने वाली सलाह व कीटनाशकों को लेकर की गई सिफारिशों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। रस चूसने वाले कीड़ों से रहें सावधान
कीट विज्ञानी डा. अनिल जाखड़ ने कहा कि कपास की फसल में रस चूसने वाले कीड़ों में सफेद मक्खी, थ्रिप्स व हरा तेला मुख्य हैं, जो फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इनमें सफेद मक्खी सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। इन कीटों की जानकारी मिलते ही तत्काल कृषि विज्ञानियों से सलाह लें। खाद व उर्वरकों की दी जानकारी
सस्य वैज्ञानिक डॉ. करमल मलिक ने एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन पर व्याख्यान दिया। साथ ही विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश की गई खादों एवं उर्वरकों को उचित मात्रा के अनुसार फसल में डालने के बारे में चर्चा की। वहीं पौध रोग विशेषज्ञ डा. मनमोहन ने कपास फसल की बीमारियों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि कपास में मुख्य रोग जड़ गलन, पैराविल्ट, पत्ता मरोड़ एवं टिडा गलन रोग हैं। रेतीली भूमि में पैराविल्ट का प्रकोप ज्यादा होता है। कपास में विभिन्न समस्याओं पर इन दवाओं का करें छिड़काव
- पत्तों पर छिड़काव के रूप में 2.5 किलोग्राम यूरिया प्रति 100 लीटर पानी या पोटैशियम नाइट्रेट(13-0-45) की 2.0 किलोग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी की दर से प्रति एकड़ में आवश्यकतानुसार बारी-बारी से प्रयोग करें।
- सफेद मक्खी के लिए स्पाइरोमेसिफेन (ऑबरोन) 22.9 एससी की 240 मिलीलीटर मात्रा या नीम आधारित कीटनाशक (निम्बिसीडीन/ अचूक) की 1.0 लीटर मात्रा या पाइरीप्रोक्सीफेन (डायटा) 10 ईसी की 400 मिलीलीटर मात्रा को 200-250 लीटर पानी की दर से एक एकड़ में आवश्यकतानुसार बारी-बारी से पौधों पर निचली पत्तियों तक छिड़काव करें।
- कपास के पत्ते ज्यादा काले दिखाई दें तो कॉपर ऑक्सिक्लोराइड की 600 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
- पेराविल्ट बीमारी के संभावित इलाकों में कोबाल्ट क्लोराइड की 2.0 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी की दर से एक एकड़ में लक्षण दिखाई देने के 24 से 48 घंटों के अंदर छिड़काव करें। जहां सिचाई या बारिश के बाद ज्यादातर पौधे मुरझा जाते हैं तो उन क्षेत्रों में इस बीमारी की संभावना होती है।
--------------
कपास की फसल में बेहतर उत्पादन के लिए कीट व रोगों का एकीकृत प्रबंधन जरूरी है। किसान फसल के मुख्य कीट व रोगों की पहचान करने के बाद विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश की गई दवाइयों का ही प्रयोग करें। फसल में कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के बिना कीटनाशकों का छिड़काव नुकसानदायक हो सकता है।
प्रो. समर सिंह, कुलपति, एचएयू