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एक ऐसा भी गांव, जहां सालों से मतदान करने को परपंरा मानते हैं ग्रामीण

खास बात यह कि मतदान के दिन जितने वोटर गांव में मौजूद होते हैं सभी मतदान करते हैं। इस गांव में मतदान कैसे होता है यह जानने के लिए आपको गांव की चौपाल में लिए चलते हैं।

By manoj kumarEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 05:00 PM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2019 11:34 AM (IST)
एक ऐसा भी गांव, जहां सालों से मतदान करने को परपंरा मानते हैं ग्रामीण
एक ऐसा भी गांव, जहां सालों से मतदान करने को परपंरा मानते हैं ग्रामीण

डबवाली (सिरसा) [डीडी गोयल] बहुत से ऐसे लोग हैं जो मतदान करने में रुचि नहीं रखते या करते नहीं हैं। मगर हरियाणा में एक गांव ऐसा है जहां मतदान करना महज फर्ज नहीं बल्कि परंपरा समझा जाता है। ऐलनाबाद रोड पर बसा गांव चकजालू डबवाली से करीब 23 किलोमीटर दूर है। इस गांव में कोई अंगूठा टेक नहीं है। खास बात यह कि मतदान के दिन जितने वोटर गांव में मौजूद होते हैं, सभी मतदान करते हैं। इस गांव में मतदान कैसे होता है, यह जानने के लिए आपको लिए चलते हैं गांव की चौपाल में। बिजली निगम से लाइनमैन रिटायर्ड पूर्व सरपंच देवीलाल ग्रामीणों के साथ राजनीतिक चर्चा करने में मशगूल दिखे। इस बार के चुनाव में कोई वोट डालने से छूट न जाए इसके लिए विशेष चर्चा हो रही थी। एक के बाद एक करके अनुभव साझा करने वाले मिल रहे थे।

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ट्रैक्टर में मतदाताओं को ले जाते हैं, मतदान के बाद पैदल आते थे

78 वर्षीय बुधराम का कहना है कि मैंने कभी जिंदगी में मतदान मिस नहीं किया। पंचायती चुनाव हो या फिर एमएलए का। आम चुनाव तो कभी छोड़ता ही नहीं हूं। पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहा कि वो वक्त भी था, जब हमें ट्रैक्टर-ट्रॉली पर गांव मुन्नांवाली लेजांता। वहां मतदान करने के बाद चार किलोमीटर पैदल वापिस आना पड़ता। मतदान केंद्र गोरीवाला शिफ्ट हो गया। मुझे अच्छी तरह से याद है मतदान के लिए हम छह किलोमीटर पैदल जाते थे।

वर्ष 1984 में बना था मतदान केंद्र

पास बैठे 85 वर्षीय हरचंद को कुछ ऊंचा सुनाई देता है। बुधराम की बात सुनकर हरचंद ने कहा कि क्या बोल रहे हो, सुनाई नहीं देता। पूर्व सरपंच देवीलाल ने ऊंची आवाज में कहा कि मतदान के बारे में जिक्र चल रहा है। देवीलाल की बात सुनकर हरचंद बोले कि जन्म मेरा चकजालू का है। काफी साल राजस्थान बिताए। वहां मतदान करते थे। अब 12-13 साल से वापस गांव आ गए हैं, जब भी मतदान हुआ है, जरूर किया है। पूर्व सरपंच बोले कि जब गांव में मतदान केंद्र नहीं था, तो मैं भी मतदान करने साइकिल पर जाता था। तीन लोगों की बातचीत सुनते-सुनते सीता राम (58) से रहा नहीं गया। वे काफी देर से बोलने की कोशिश कर रहे थे, अब मौका लगा तो तपाक से जवाब दिया 1984 में गांव में मतदान केंद्र बना था।

बुजुर्ग जिसे कहते, उसे वोट दे देते

पास बैठे बृजलाल, ओमप्रकाश ने कहा कि गांव से कुछ परिवार बाहर चले गए हैं। लुधियाना, सूरतगढ़, सिरसा में करीब 15 परिवार रह रहे हैं। जिनके मत गांव में बने हुए हैं। वे मतदान करने नहीं आते। हां, मतदान के दिन गांव में जितना लोग होते, सब मतदान करते हैं। पहले बुजुर्ग कह देते इसके पक्ष में वोट देना है तो सब वहीं वोट पोल करते थे। अब वह बात नहीं रही, जमाने के साथ लोग बदल गए है।

कभी टेंट नहीं लगा

चौपाल पर बुजुर्गों के बीच बैठे अमरजीत ने कहा कि गांव के राजकीय माध्यमिक विद्यालय में मतदान केंद्र है। जिसका नंबर 176 है। चुनाव के समय कभी टेंट नहीं लगा। सभी राजनीतिक दलों के समर्थक एक ही मेज पर बैठते। मतदाता की इंट्री करके उसे भीतर भेज देते है। गांव में मतदान के प्रति जागरूकता है। इसलिए तो सभी वोट पोल होते हैं।

गोरीवाला से फोटोग्राफर बुला बनाया वोट

फिलहाल विद्यालय का जो कमरा मतदान केंद्र बनाया जाना है, उसमें क्लास चल रही है। बीएलओ रघुवीर ङ्क्षसह बच्चों को पढ़ाते हुए मिले। बीएलओ ने बताया कि गांव में लड़कियां वोट नहीं बनवाना चाहती थीं। परिजन कहते थे कि विवाह के बाद ससुराल पक्ष में वोट बन जाएगी। ऐसी बेटियों को जागरूक किया, फिर समस्या आड़े आ गई कि गांव में फोटोग्राफर नहीं। ऐसे में 10 लड़कियों का ग्रुप तैयार किया, गोरीवाला से फोटोग्राफर बुलाकर वोट बनवाई। कुल 592 वोट हैं। जिसमें से 322 पुरुष तथा 270 महिलाओं के वोट हैं।


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