बंदिशों को दिखाया तमाचा, खुद अफसर न बन सकी तो दूध बेचकर मां ने बेटी को बनाया अधिकारी
हिसार की राजबाला खुद सामाजिक बंदिशों के कारण अफसर बनने के सपने को साकार नहीं कर पाईं। लेकिन पारिवारिक व अन्य तमाम झंझावातों को झेलती हुईं अपने सपनों को बेटी कल्पना की आंखों में भर उसे सांख्यिकीय सेवा में अधिकारी बना गईं।
वैभव शर्मा, हिसार। महिलाएं जाग गई हैं-पांवों से जमीन नाप रहीं। हाथों से आकाश। आंखों से भूगोल। बंध्या सोचों को संभव संदर्भों की कहानी दे रहीं। इस सच की एक और मिसाल है, सोच की धनी राजबाला। वह खुद सामाजिक बंदिशों के कारण अफसर बनने के सपने को साकार नहीं कर पाईं। लेकिन पारिवारिक व अन्य तमाम झंझावातों को झेलती हुईं अपने सपनों को बेटी कल्पना की आंखों में भर उसे सांख्यिकीय सेवा में अधिकारी बना गईं। संघर्षशील मां राजबाला ने समाज को यह संदेश दिया है कि वह आने वाले समय को नई व सार्थक भंगिमा देने वाली भविष्य की नारी हैं।
बेशक, इस भविष्य का अतीत संघर्ष से भरा है। कारण कि राजबाला जब ब्याह होने के बाद हिसार के गावड़ गांव आईं तो उन्हें घूंघट प्रथा के बीच कई बंदिशें झेलनी पड़ीं। बंदिशों की इंतहा यह कि 12वीं पास और राजकीय बहुतकनीकी संस्थान (आइटीआइ) से स्टेनोग्राफर की पढ़ाई कर चुकीं राजबाला का अफसर बनने का हौसला घूंघट प्रथा की भेंट चढ़ गई। अब उन्होंने अपनी संतान को अच्छी शिक्षा देकर अफसर बनाने का निर्णय लिया। लेकिन परिवार की माली स्थिति ठीक नहीं थी।
सो, आय बढ़ाने के लिए उन्होंने पहले तो सिलाई-कढ़ाई का काम किया फिर भैंसों का दूध बेचना शुरू किया। दूघ अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए आटो चलाना सीखा और घर-घर जाकर दूध बेचा। इससे मिली आय से उन्होंने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी। इसका प्रतिफल यह हुआ कि उनकी बेटी कल्पना ने भी भारतीय सांख्यिकीय सेवा में 11वां स्थान पाकर मां की सोच को उपलब्धि का संपूर्ण आसमान दे दिया।
संघर्ष से उपलब्धि तक सफर
जब पति ज्ञान सिंह की नौकरी पटवारी पद पर लगी तो राजबाला ने सिलाई का काम शुरू किया। काम चल पड़ा। लेकिन कुछ समय बाद ही उनके ससुर को कैंसर हो गया। उन्हें सिलाई छोडऩी पड़ी। पति की सलाह पर दो-तीन भैंसें खरीद लीं। मगर अब चारे का संकट था। चारा गांव से लाना पड़ता था। राजबाला ने ड्राइविंग सीखी और आटो खरीदा। वह गांव से चारा लाने लगीं। भैंसों की संख्या बढ़ाई। अब वह दो क्विंटल दूध आटो से हिसार लाती और घर तक पहुंचाती हैं। बढ़ती आय के साथ बच्चे भी कामयाब हो गए। उनकी बड़ी बेटी सपना एचसीएस की तैयारी कर रही हैं तो बेटा मोहित रोहतक पीजीआई से एमबीबीएस करने के बाद एमडी की तैयारी कर रहा है।
बचत से बढ़ीं उम्मीदें, अपेक्षित परिणाम
राजबाला बताती हैं कि उनके पास सभी खर्चे काटकर 70 हजार रुपये बचते थे। इससे वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाईं। उनकी बेटी कल्पना ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीएससी स्टैटिक्स की पढ़ाई की। एमएससी की पढ़ाई के दौरान कल्पना ने भारतीय स्टेटिक्स सेवा की लिखित परीक्षा पास की मगर साक्षात्कार में रह गईं। फिर प्रयास किया और आखिरकार वह सामान्य श्रेणी में भारतीय स्टैटिक्स सेवा में चयनित हुईं हैं और नोएडा स्थित नेशनल स्टैटिकल ट्रेनिंग एकेडमी में प्रशिक्षण लेर रही हैं।