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राज्य की सत्ता पर काबिज भाजपा में नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर शीर्ष नेतृत्व कर रहा विचार

अब तक सबसे मजबूत नाम कैप्टन अभिमन्यु का है। प्रदेश के वित्त मंत्री रह चुके कैप्टन को देश के गृह मंत्री अमित शाह का आशीष हासिल है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 24 Jun 2020 01:18 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jun 2020 01:18 PM (IST)
राज्य की सत्ता पर काबिज भाजपा में नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर शीर्ष नेतृत्व कर रहा विचार
राज्य की सत्ता पर काबिज भाजपा में नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर शीर्ष नेतृत्व कर रहा विचार

जगदीश त्रिपाठी। हरियाणा में कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के प्रयास भले ही अभी पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हों, लेकिन जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आने लगी है। कल-कारखानों में, बाजार में, घरों में, दफ्तरों में पूरी तरह से न सही, लेकिन बहुत कुछ सामान्य हो चुका है। इसके साथ ही राजनीतिक क्षेत्र में भी हलचल होने लगी है।

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राज्य की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी में भी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर शीर्ष नेतृत्व विचार कर रहा है। विचार क्या कर रहा है, नाम की घोषणा होना ही बाकी है। उधर प्रदेश कांग्रेस की कमान लोकसभा चुनाव के पहले ही कुमारी सैलजा को मिली थी। लगभग सात महीने बीत चुके हैं, लेकिन जिलों में कांग्रेस के पास संगठन के नाम पर अलग-अलग नेताओं के गुटों में विघटन के अतिरिक्त कुछ नहीं है। कुमारी सैलजा प्रदेश अध्यक्ष हैं तो उनसे जुड़े लोगों को उम्मीद है कि जिला अध्यक्ष उनका ही होगा। इसलिए अन्य गुटों के नेता खास तौर से भूपेंद्र सिंह हुड्डा समर्थक जिला अध्यक्ष को लेकर उत्साहित नहीं रहते। पहले बात करते हैं भारतीय जनता पार्टी की।

एक खेमा चाहता है कि अध्यक्ष ऐसा होना चाहिए, जो सत्ता के साथ बेहतर समन्वय करते हुए पार्टी का काम करे, लेकिन दूसरा खेमा चाहता है कि अध्यक्ष ऐसा होना चाहिए जो मुख्यमंत्री मनोहर लाल की छाया से निकलकर संगठन को मजबूत करे। इसके लिए जो नाम चल रहे हैं। उनमें अब तक सबसे मजबूत नाम कैप्टन अभिमन्यु का है। प्रदेश के वित्त मंत्री रह चुके कैप्टन को देश के गृह मंत्री अमित शाह का आशीष हासिल है। उनका नाम लगभग तय है, लेकिन जिस तरह से क्रिकेट में कहा जाता है कि जब तक आखिरी गेंद नहीं डाल दी जाती, तब तक हार-जीत का फैसला करना मुश्किल होता है, उसी तरह से राजनीति में भी जब तक किसी नियुक्ति की सार्वजनिक घोषणा नहीं हो जाती, तब तक कुछ नहीं कहा जा सकता।

यह संशय इसलिए भी, क्योंकि ऐसे उदाहरण हरियाणा में ही कई हैं। लगभग एक दशक पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में करनाल के सांसद अरविंद शर्मा का नाम तय हो गया था। रात में ही दिल्ली से करनाल फोन आया। उनके समर्थकों ने लड्डू बांटना शुरू कर दिया। दूसरे गुट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को फोन लगाया। हुड्डा ने दिल्ली दरबार में बैठे अपने संरक्षकों को। और फैसला बदल गया।

हालांकि तब से आज तक यमुना में बहुत पानी बह चुका है। अरविंद शर्मा अब भारतीय जनता पार्टी में हैं और हुड्डा के बेटे दीपेंद्र को उनके ही गढ़ में हराकर रोहतक से सांसद हैं। अरविंद शर्मा रोहतक से हुड्डा के बेटे दीपेंद्र को भले ही हरा चुके हों और रमेश कौशिक सोनीपत से हुड्डा को ही धूल चटा चुके हों, लेकिन हुड्डा कांग्रेस की और प्रदेश की राजनीति में सबसे ताकतवर नेता अब भी माने जाते हैं। कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में तीस सीटें मिलना उन्हीं के पराक्रम का परिणाम था। तत्कालीन अध्यक्ष अशोक तंवर लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से आउट कर दिए गए, यह भी हुड्डा का ही पराक्रम था कि ऐसा करने के लिए कांग्रेस हाईकमान को मजबूर होना पड़ा। उसके बाद सैलजा और हुड्डा की जोड़ी क्रीज पर आई।

अब हुड्डा शॉट्स लगाते हैं तो उनके समर्थक जोश से भर जाते हैं और सैलजा शॉट्स लगाती हैं तो उनके समर्थक, लेकिन अशोक तंवर के समर्थक क्या करें। तंवर तो टीम से आउट हो चुके हैं। अब वे सैलजा के हर प्रयास पर गुड शॉट कहकर उनके खेमे में जाने की अपनी मनोकामना जरूर व्यक्त रहे हैं। दूसरी तरफ हुड्डा पुराने खिलाड़ी हैं। वे पूरी तरह से सेफ गेम खेलते हैं। बाउंसर को सिर झुकाकर निकल जाने देते हैं। राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की बात हो या कोरोना संकट से निपटने की। कभी उन्होंने इन मुद्दों पर न तो केंद्र को घेरने का प्रयास किया न प्रदेश सरकार को। अब चीन से सीमा पर तनाव और देश के बीस जवानों के बलिदान पर भी उन्होंने राष्ट्र को सर्वोपरि बताया। ऐसा नहीं है कि वह और उनके बेटे राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र प्रदेश सरकार की आलोचना नहीं करते। करते हैं, लेकिन कटु नहीं। वह आलोचना कम होती है सुझाव अधिक।

जननायक जनता पार्टी की चर्चा : भारतीय जनता पार्टी-कांग्रेस के बीच इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी की चर्चा भी कर लें। हालांकि उनके बारे में चर्चा करने के लिए बहुत कुछ है नहीं। जजपा का गठन तो कुछ पहले ही हुआ, इसलिए जैसे भी हों, लेकिन सभी जिलों में उसके अध्यक्ष हैं। संगठनात्मक ढांचा है। जननायक जनता पार्टी के अलग होने के बाद इनेलो ने भी अपने संगठन का पुनर्गठन किया था। उनके यहां भी जिला और प्रदेश संगठन को लेकर कोई प्रश्न नहीं है। हां, दोनों खुद को विस्तार देने के प्रयास में इधर-उधर तोड़फोड़ करने का प्रयास करते रहते हैं। इनेलो ने बहुजन समाज पार्टी के कई कथित स्तंभों को तोड़कर खुद से जोड़ा है। वैसे ये स्तंभ इनेलो के चश्मे का नंबर बढ़ा पाएंगे या नहीं यह अलग बात है।

[राज्य डेस्क प्रभारी]


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