Tokyo Paralympics: हरियाणा के तीन ऐसे पैरा एथलीट, जो दुर्घटना में सब कुछ खो चुके थे, मगर न थके न हारे
हिसार के तीन पैरा एथलीट ऐसे हैं जिनके साथ ऐसे हादसे हुए कि उनका कभी बचना मुश्किल था मगर उन्होंने जिंदगी से लड़कर अपने लिए जगह तो बनाई साथ ही देश में ही नहीं बल्कि विश्व पटल पर अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया। अब टोक्यो पैरालिंपिक में खेलेंगे।
वैभव शर्मा, हिसार। हरियाणा के हिसार में तीन पैरा एथलीट ऐसे हैं जिनके साथ ऐसे हादसे हुए कि उनका कभी बचना मुश्किल था मगर उन्होंने जिंदगी से लड़कर अपने लिए जगह तो बनाई साथ ही देश में ही नहीं बल्कि विश्व पटल पर अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया। अब यह खिलाड़ी देश का नाम टोक्यो पैरालिंपिक में विश्व के पटल पर रखने जा रहे हैं। इनमें से दो खिलाड़ी तो ऐसे हैं जिन्हें खेल के क्षेत्र में अधिक जानकारी नहीं थी मगर उन्होंने हादसे के बाद खुद को बदल दिया। जोश, मेहनत और सही मार्गदर्शन के बल पर जीत हासिल की। यह जीत किसी भी सामान्य जीत से काफी बड़ी और संघर्ष से भरी है।
1- एकता भ्याण (इंडियन पैरा एथलीट)
जन्म- हिसार
पिता का नाम- बलजीत भ्याण
खेल- क्लब थ्रो व डिस्कस थ्रो
हिसार में जन्मी एकता का 18 वर्ष की उम्र में ही ट्रक से हुई एक सड़क दुर्घटना में रीढ़ की हड्डी टूट गई। जिससे उनका पूरा शरीर पैरालाइज हो गया। जिंदगी मौत से लड़ने के बाद एकता व्हीलचेयर पर आ गईं। मगर दिव्यांगता उनकी कमजोर न बनकर शक्ति बन गई। उन्होंने इस अवस्था के साथ अपनी पढ़ाई पूरी की। यहां तक कि हरियाणा सिविल सर्विस के माध्मय से हिसार में सहायक रोजगार अधिकारी के रूप में नौकरी हासिल की। फिर अर्जुन अवार्डी पैरा एथलीट अमित सरोहा ने पैरा एथलेटिक्स के लिए एकता को दिशा दिखाने का काम किया। इसके बाद वह कभी नहीं रुकी। डिस्कस थ्रो और क्लब थ्रो में एकता देश के लिए कई मैडल झटक चुकी हैं। वह हरियाणा से टोक्यो पैरालिंपिक में जाने वाली हरियाणा से एकमात्र महिला पैरा एथलीट हैं। उन्हें रोल माडल श्रेणी में दिव्यांगता के साथ सशक्त व्यक्ति का राष्ट्रीय अवार्ड भी मिल चुका है। महिला दिवस पर हरियाणा के राज्यपाल ने भी अवार्ड दिया। 2019 में पैराएथलीट आफ द ईयर अवार्ड, स्पोर्ट्स वीमेन आफ द ईयर अवार्ड सहित एकता की उपलब्धियों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्रशस्ति पत्र से नवाज चुके हैं।
अकादमिक-----
- बेचलर आफ आर्ट्स (इंग्लिश आनर्स)
- मास्टर आफ आर्ट्स (इंग्लिश)
- बेचलर आफ एजुकेशन
जाब अनुभव ---------
- 2011 में हरियाणा सरकार में आडीटर के रूप में चयनित हुईं
- 2013 में हरियाणा सिविल सर्विस परीक्षा उत्तीर्ण कर सहायक रोजगार अधिकारी के रूप में चयनित हुईं
खेल में उपलब्धि
2019
- टोक्यो पैरालिंपिक के लिए चयनित हुईं और दुबई में विश्व पैराएथलेटिक्स चैंपियनशिप में एकमात्र महिला पैरा एथलीट के रूप में कोटा लिया।
- एशिया में क्लब थ्रो खेल में पहली रैंक
2018
- एशियन पैरा गेम्स जकार्ता में क्लब थ्रो में गोल्ड मैडल
- ट्यूनीशिया में विश्व पैरा एथलेटिक्स ग्रांड प्रिक्स में क्लब थ्रो में एक गोल्ड मैडल व डिस्कस थ्रो में एक ब्रांज मैडल पाया।
- राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में एक गोल्ड मैडल क्लब थ्रो व एक गोल्ड मैडल डिस्कस थ्रो में पाया।
- ग्रांड प्रिक्स बंग्लौर में दो गोल्ड मैडल क्लब थ्रो व डिस्कस थ्रो में पाए।
- क्लब थ्रो और डिस्कस थ्रो खेलों में एशिया में पहली रैंक पाई।
2017
- जयपुर में आयोजित राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में क्लब थ्रो में गोल्ड मैडल पाया।
- जयपुर में आयोजित राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में डिस्कस थ्रो में गोल्ड मैडल पाया।
- दुबई में आयोजित ग्रांड प्रिक्स में चौथा स्थान और क्लब थ्रो- डिस्कस थ्रो में नया एशियन रिकार्ड बनाया।
- विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में लंदन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। एशियन रैंप प्रथम व विश्व रैंक में छठवीं जगह बनाई।
2016
- जर्मनी में आयोजित ग्रांड प्रिक्स में क्लब थ्रो में सिल्वर मैडल पाया।
- पंचकूला में आयोजित राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में क्लब थ्रो में गोल्ड मैडल पाया।
- पंचकूला में आयोजित राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में डिस्कस थ्रो में ब्रांज मैडल पाया।
2- अरबिंद मलिक
जन्म- हिसार के गांव ढंढेरी
स्थाई निवास- राम गोपाल कालोनी, रोहतक
पिता का नाम- जोगिंद्र मलिक
खेल- शार्टपुट
सात वर्ष की उम्र में अरबिंद क्रिकेट खेल रहे थे तभी गलती से एक साथ का बैट उनके सिर पर जा लगा। इसके बाद उपचार चला, 72 घंटे कोमा में रहे। ठीक हुए तो पता चला कि एक पैर में कम स्ट्रेंथ है। एक दिन अपने पिता के साथ छोटे भाई का खेल देखने पहुंचे। वह बैडमिंटन खेलता था। तो वहां मौजूद कोच ने उन्हें पैरा एथलीट बनने की सलाह दी। कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने अपने आप को डिस्कस थ्रो के लिए तैयार किया। फिर कुछ वर्ष बाद उनकी कटेगरी बदल दी गई अौर वह शार्टपुट खेलने लगे।
उपलब्धियां----
- 2014 में एशियन चैंपियनशिप।
- 2017 में वर्ल्ड चैंपियनशिप खेली।
- 2018 में एशियन खेलों में भी प्रतिभाग किया।
3- तरुण ढिल्लो
जन्म- हिसार के सातरोड कलां
पिता का नाम- स्व. सतीश कुमार
खेल- बैंडमिंटन
उम्र- 27
10 वर्ष की उम्र में फुटबाल खेलते समय घुटने में चोट लगी। दिल्ली में एक सर्जरी हुई मगर कामयाब नहीं हुए। इसके बाद एम्स में दूसरी सर्जरी ने राहत दी। इसके बाद रिहेबिल्टेशन का कार्य चलता रहा। शुरुआत से ही खेल से जुड़े रहे तो पैरा एथलेटिक्स के लिए प्रयास किया। और बैडमिंटन में देश में ही नहीं बल्कि विश्व में भारत का सिर ऊंचा किया।
उपलब्धियां-
- पैरा एशियन चैंपियनशिप 2018 में गोल्ड मैडल प्राप्त किया।
- वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल और दो बार वर्ल्ड चैंपियन चुने गए।
- एशियन गेम्स 2014 में भी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया।