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20600 फीट ऊंचाई, माइनस 15 तापमान और 10 फीसद ऑक्सीजन से लड़ फतेह किया माउंट यूनम

15 घंटे की दुर्गम चढ़ाई हाइपोथर्मियों का खतरा और पथरीले रास्तों पर होकर आखिर कार एचएयू के 20 सदस्यीय पर्वतारोही दल ने लाहोल घाटी में स्थित माउंट यूनम (20600 फीट) को फतह की।

By Manoj KumarEdited By: Published: Wed, 18 Sep 2019 11:13 AM (IST)Updated: Thu, 19 Sep 2019 08:32 AM (IST)
20600 फीट ऊंचाई, माइनस 15 तापमान और 10 फीसद ऑक्सीजन से लड़ फतेह किया माउंट यूनम
20600 फीट ऊंचाई, माइनस 15 तापमान और 10 फीसद ऑक्सीजन से लड़ फतेह किया माउंट यूनम

हिसार, जेएनएन। 15 घंटे की दुर्गम चढ़ाई, हाइपोथर्मियों का खतरा और पथरीले रास्तों पर होकर आखिर कार एचएयू के 20 सदस्यीय पर्वतारोही दल ने लाहोल घाटी में स्थित माउंट यूनम  (20600 फीट) को फतह कर ही लिया। विश्वविद्यालय पहुंचने पर कुलपति प्रो. केपी सिंह ने दल को बधाई दी।

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प्रो. सिंह ने कहा कि हरियाणा कृषि विवि के छात्र बनते ही हैं विजय होने के लिए और पूरे विश्वभर की ऊंचाइयों में परचम लहराने के लिए। उन्होंने कहा कि ऐसे अभियानों से छात्रों को विषम परिस्थितियों में रहने व जीवन की चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा मिलती है। इस दौरान छात्र कल्याण निदेशक डा. डीएस दहिया उपस्थित रहे। खास बात है कि इस दल में छात्राएं भी इस बार शामिल रहीं, यह अपने आप में अलग अनुभव दल के साथ रहा।

पर्वतारोहियों के दल के सदस्यों की जुबान में सुनिए ट्रेकिंग की पूरी कहानी

माउंटेनरिंग क्लब के अध्यक्ष डा. मुकेश सैनी बताते हैं कि दल रोहतांग पास व बारालाचा पास की मनमोहक वादियों से गुजरते हुए लाहोल घाटी स्थित भरतपुर टैंट कालोनी पहुंचा, जहां से साहसिक अभियान की शुरुआत हुई। छात्रों ने मनाली से जसपा व कुल्लू से लाहोल घाटी तक के बदलते पर्वतों के प्रकारों व क्रम को भली-भांति समझा और रास्ते में सूरज ताल व दीपक ताल की खूबसूरत शांति को अपने जहन में उतारा। दल का प्रबंधन पीएचडी छात्र विक्रम घियल और मोहित चौधरी ने किया। उन्होंने अपने मिशन की शुरुआत 4700 मी. की ऊंचाई से की। गौरतलब रहे कि यह ऊंचाई हमारे हिसार शहर से 20 गुना से भी अधिक है। इतने बड़े शिखर पर चढऩे के लिए विश्वविद्यालय को इंडियन माउंटेनरिंग फाउंडेशन से अनुमति लेनी पड़ी।

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मीलों तक सिवाय बर्फ और पत्थर के अलावा और किसी भी चीज का ना होना अपने आप में रोमांच पैदा करता है। माइनस 15 डिग्री सेल्सियस तापमान व 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हवाओं के बीच से लगातार आगे बढ़ते रहना किसी आम आदमी के बस की बात प्रतीत नहीं होती। ठंड का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दोपहर में चलते हुए भी बैगों में रखी बोतलों में रखा पानी जमने लगा। इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन का स्तर घटकर 10 फीसद से भी कम हो जाता है जोकि रेड लेवल जॉन में आता है। ऐसे में हर कदम बढ़ाने के लिए कई बार सांस लेना पड़ता है और शरीर की क्षमता कई गुना घट जाती है।

इसी लिए दल के कुछ छात्रों को सुरक्षा कारणों से बेस कैंप लौटना पड़ा और बाकि बचे हुए दल ने नौ घंटों तक लगातार चलते हुए शिखर पर तिरंगा और विश्वविद्यालय का ध्वज फहराया। उस से भी मुश्किल था, बेइंतहा थकान के साथ नीचे वापस आना। नीचे उतरते हुए, पथरीले व बर्फीले रास्तों में महज एक घंटे का आराम भी हाइपोथर्मिया के कारण जानलेवा हो सकता था। पंद्रह घंटों तक ट्रैक करके लौटे विजय दल, जिसमें तीन लड़कियां भी शामिल थीं, ने नया कीर्तीमान स्थापित किया।

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