माता-पिता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म : स्वामी राजदास
जागरण संवाददाता हिसार : श्रीकृष्ण प्रणामी महिला मित्र मंडल संत नगर के तत्वावधान में संत नगर में जारी
जागरण संवाददाता हिसार : श्रीकृष्ण प्रणामी महिला मित्र मंडल संत नगर के तत्वावधान में संत नगर में जारी श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन स्वामी राजदास ने कहा कि आज के समय में बच्चे संस्कारों को भूलते जा रहे हैं। उन्हें अपनी सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान ही नहीं रहा। असली मायनों में माता-पिता की सेवा करना सबसे बड़ा पुण्य और धर्म का काम है। भगवान भी यही कहते हैं कि अगर आपने माता की सेवा करके आशीर्वाद ले लिया तो समझो मेरा आशीर्वाद तुम्हें मिल गया। यहां उन्होंने सती अनयूया का उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह से उसने अपने तप के प्रभाव से तीनों देवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश के शिशु रूप में बदल कर पालने में लिटा दिया। प्रभु आज भी शिशु रूप में आने को तैयार हैं, मगर माता अनसुया जैसी सती का आंचल चाहिए। अत: कहने का भाव यह है कि माता पिता के तप के आगे कोई भी संकट आए तो वह दूर हो जाता है।
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गृहस्थ जीवन धर्मपुर्वक जीना चाहिए
उन्होंने बताया कि अपने स्वार्थ के लिए कौरवों पांडवों का जमीन के लिए युद्ध हुआ, जो कि विनाश का कारण बना, जबकि भारत देश तो त्याग तपस्या की भूमि है। त्याग से विकास संभव है, जबकि स्वार्थ से विनाश होता है। मनुष्य को गृहस्थ जीवन धर्मपूर्वक जीना चाहिए। पति पत्नी का प्रेम, माता पिता की सेवा, परमात्मा का सिमरण, अतिथि की सेवा व संतान को अच्छे संस्कार देना ही गृहस्थ धर्म का मूल मंत्र है। स्वामी जी ने इस बात पर जोर दिया कि आज बच्चों में अच्छे संस्कार डालें। उन्हें अपनी सभ्यता व संस्कृति के बारे में बताएं, तभी यह देश समाज एक सु²ढ साम्राज्य बन पाएगा। क्योंकि आगे का भविष्य इन बच्चों के हाथ में सुरक्षित है।