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पटरी के साथ जीवन... इंजन की सीटी बजने से तय था सोना और उठना, अब लगाना पड़ता है अलार्म

रेलवे लाइन के साथ लगते घरों का रेल पटरी से गहरा संबंध रहा है। क्रांति कॉलोनी में महिलाएं रेलवे ट्रैक के पास रेहड़ी पर बेपरवाह होकर सब्जी खरीदती हुईं। गुलशन बजाज

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 13 May 2020 10:33 AM (IST)Updated: Wed, 13 May 2020 01:02 PM (IST)
पटरी के साथ जीवन... इंजन की सीटी बजने से तय था सोना और उठना, अब लगाना पड़ता है अलार्म
पटरी के साथ जीवन... इंजन की सीटी बजने से तय था सोना और उठना, अब लगाना पड़ता है अलार्म

जागरण संवाददाता, हिसार। सुबह उठते ही घर के सामने से ट्रेन गुजरती नजर आती थी। सोते थे जब ट्रेन के इंजन की सिटी कानों में बजती थी। सुबह उठने और रात को सोने का समय भी इंजन की सिटी के हिसाब से ही तय किया हुआ था। यह कहना है कि रेलवे लाइन के साथ लगती कॉलोनियों के लोगों का। लोगों ने कहा कि कई बार घर में मन नहीं लगता था जो आते-जाते ट्रेनों को ही देख लेते थे। डिब्बे गिनने लग जाते थे। इससे टाइम पास अच्छा होता था। घर के बच्चे गेट पर आकर ट्रेन को बाय-बाय करते थे। अब तो ऐसा लगता है कि पता नहीं कहां आ गए हैं।

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ज्योति पुरा निवासी एवं कारोबारी विनोद कंसल ने बताया कि इंजन का होर्न सुनकर रात को कई बार नींद खुल जाती थी। यदि उस समय कोई ट्रेन गुजरी हो तो उसकी आवाज कई देर जहन में गुंजती थी। दोबारा नींद कई देर में आती थी। मैने तो सोने और और उठने का समय भी ट्रेन के हिसाब से सेट किया हुआ था। अब अलार्म लगाकर उठना पड़ता है। रही बात रूटीन ट्रेनों की आवाजाही की तो अब तो उनका शरीर ट्रेनों की आवाजों का आदी हो चुका है। अब तो आवाज की उन्हें आदत सी पड़ चुकी है। आवाज अब डिस्टर्ब भी नहीं करती।

ट्रेनें बंद होने से सूनापन लगता है: निशा गुप्ता घर से ट्रेनें नजर आती है। शुरुआत में ट्रेनों का शोर मन को बैचेन करता था। धीरे- धीरे ट्रेनों की आवाज व उन्हें देखना दिनचर्या का हिस्सा बन गया। अब ट्रेनों को देखकर एक सुकून का अहसास होता है। कभी मन उदास होता तो ट्रेनों और लोगों का सफर देखकर मन शांत हो जाता था, लेकिन अब लॉकडाउन में ट्रेनों की आवाजाही तकरीबन बंद है और न लोगों की चहलपहल दिखती है। लगता है एरिया की रौनक खत्म हो गई है।

ट्रेन बंद होने से काम भी बंद हो गया : जसवंत करियाना एवं जनरल स्टोर चलाने वाले कारोबारी जसवंर्त ंसह की दुकान रेलवे स्टेशन के मुख्य गेट के सामने हैं। उन्होंने कहा कि ट्रेनें बंद होने हमारा 90 फीसद से अधिक कारोबार ठप पड़ा है। कारोबार छोड़िए लोगों की आवाजाही देखकर समय बीत जाता था अब तो यहां सुनसान एरिया है। ऐसा लगता है जैसे सब वीरान हो चुका है। ट्रेनों की आवाजें जीवन का हिस्सा बन जाती है अब तो दुकान पर आते हैं समय निकालकर चले जाते हैं।

ट्रेन चलती थी तो चहल-पहल रहती थी : प्रमोद मित्तल छुट्टी वाले दिन रेलवे स्टेशन पर बाहर आने वालों की चहल-पहल देखकर दिन कब गुजर जाता था पता ही नहीं चलता था अब तो घर में मिनट पर घंटों की तरह लगती है। यह कहना है कि कृष्णा नगर निवासी प्रमोद मित्तल का। सेल्समैन प्रमोद मित्तल ने कहा कि उनका घर रेलवे लाइन के पास है। जब घर होते है तो घर के पास से लोगों की आवाजाही रहती थी जिससे अकेलापन नहीं लगता था। अब सड़क सुनसान हो गई है। ट्रेनें फिर से चलने का इंतजार है।


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