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MGNREGA: मनरेगा के तहत अब तक 65 करोड़ रुपये खर्च, खूब मिला रोजगार, पराली प्रबंधन नहीं शामिल

मजदूरों की परेशानी यह है कि धान बेल्ट में अब हार्वेस्टिंग कंबाइन से होती है जिसमें मजदूरों की कम जरूरत पड़ती है। मजबूरी में मजदूरों को रोजगार के लिए दूसरे क्षेत्र में जाना पड़ता है। वहीं किसान को अब फसल अवशेष प्रबंधन के लिए मजदूर नहीं मिल रहे।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Sat, 23 Oct 2021 03:05 PM (IST)Updated: Sat, 23 Oct 2021 03:05 PM (IST)
MGNREGA: मनरेगा के तहत अब तक 65 करोड़ रुपये खर्च, खूब मिला रोजगार, पराली प्रबंधन नहीं शामिल
मनरेगा के तहत किसानों को मिला 22 करोड़ रुपये का रोजगार।

जागरण संवाददाता, फतेहाबाद। फसल अवशेष प्रबंधन... सरकार इस पर करोड़ों रुपये खर्च करती है। अकेले फतेहाबाद जिले में गत वर्ष 20 करोड़ से अधिक रुपये खर्च हुए। इसका अधिकांश हिस्सा किसानों को कृषि यंत्रों पर अनुदान देने व फसलों की गांठें बनाने पर खर्च किया जाता है। इस बार यह राशि 22 करोड़ से अधिक हो जाएगी। उसके बाद भी जिले में बड़ी संख्या में किसान फसलों के अवशेष जला रहे है। इससे परेशानी बढ़ रही है। वहीं मनरेगा के तहत जिले में इस बार 65 करोड़ रुपये खर्च करके 13 लाख दिन रोजगार उपलब्ध करवाया गया है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार फसल अवशेष प्रबंधन के लिए व्यवस्था सही से बनाए, तभी इसका समाधान होगा।

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फसल अवशेष डालने के लिए निर्धारित हो जगह

जरूरी है कि इसके लिए सरकार को सख्ती के साथ ऐसी व्यवस्था बनानी होगी। जो फसल अवशेष प्रबंधन की समस्या ही खत्म कर दे। सरकार के आदेशानुसार प्रशासन ने प्रत्येक पंचायत को निर्देश दिए है कि वे दो एकड़ कम से कम ऐसी जगह निर्धारित करें, जहां पर किसान फसल अवशेष डाल सके। इसके बाद पंचायतों ने जगह निर्धारित कर दी। लेकिन अब परेशानी यह है कि खेत से निर्धारित जगह तक अवशेष ले जाने के लिए व्यवस्था नहीं है।  किसान के पास ट्रैक्टर तो है, लेकिन मजदूर नहीं। जबकि मनरेगा के तहत ग्राम पंचायत 261 तरह के काम करवा सकते हैं। लेकिन फसल अवशेष प्रबंधन में मनरेगा नहीं लगाई जा सकती। इसको लेकर किसान व मजदूर दोनों परेशान है।

वहीं मजदूरों की परेशानी यह है कि धान बेल्ट में अब हार्वेस्टिंग कंबाइन से होती है जिसमें मजदूरों की कम जरूरत पड़ती है। मजबूरी में मजदूरों को रोजगार के लिए दूसरे क्षेत्र में जाना पड़ता है। वहीं किसान को अब फसल अवशेष प्रबंधन के लिए मजदूर नहीं मिल रहे। ऐसे में उनकी मांग है कि खेत से धान का अवशेष उठाने के लिए मनरेगा के मजदूर लगा दिए जाए। इससे किसान व मजदूरों दोनों को फायदा मिलेगा।

गरीब मजदूरों को नहीं ले रही सरकार सुध

मजदूर संगठन से जुड़े विरेंद्र पंवार का कहना है कि जब धान रोपाई का समय था उस दौरान पंचायतों ने प्रति एकड़ 3100 रुपये निर्धारित कर दी। अब सरकार ने 20 करोड़ रुपये का अनुदान भी बड़े जमीन वाले किसानों को दिया। अब सरकार ने प्रति एकड़ हजार रुपये बोनस भी किसानों को दिया है। ऐसे में धान बेल्ट के 40 फीसद मजदूरों की उपेक्षा हुई। सरकार की नीति की वजह से मजदूरों का पलायन हुआ। लेकिन धान उत्पादक किसान करोड़ रुपयों को फायदा लेकर भी आगजनी से बाज नहीं आए। ऐसे में सरकार को मजदूरों की सुध लेते हुए उन्हें पराली प्रबंधन जोड़ना चाहिए। इससे मजदूर कपास की चुकाई के लिए गुजरता तक नहीं जाएंगे। उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार मिल जाएगा।

मजदूरों व किसानों को आ रही परेशानी

भारतीय किसान संघ के संगठन मंत्री महेंद्र ने बताया कि मनरेगा के तहत 261 काम करवाए जा सकते हैं। इसके बारे में आनलाइन गाइडलाइन मौजूद है। लेकिन इसमें पराली प्रबंधन नहीं है। ऐसे में मजदूरों व किसानों को परेशानी आ रही है। सरकार इस समस्या का समाधान करवाए, तभी आमजन को धुएं से राहत मिलेगी।

पंचायतों को दिए निर्देश

डीडीपीओ बलजीत चहल ने बताया कि उपायुक्त के आदेशानुसार सभी पंचायतों को निर्देश दे दिए है कि वे पराली के लिए दो एकड़ जगह निर्धारित करें। कई बड़ी पंचायतें है। उनमें ज्यादा धान की खेती होती है। ऐसे में उनको अधिक जगह निर्धारित करने के लिए कहा गया है। ताकि किसानों को परेशानी न आए।


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