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मूक बधिरों को नहीं आएगी दिक्कत, हिसार में सर‍कारी विभागों में साइन लैंग्वेज सीखने के निर्देश

हिसार प्रशासन मूक बधिरों की एसोसिएशन के साथ एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। जिसमें प्रत्येक सरकारी विभाग में एक प्रतिनिधि को साइन लैंग्वेज यानि सांकेतिक भाषा को लेकर प्रशिक्षित किया जाएगा। प्रशिक्षण देने का काम एसोसिएशन से जुड़े विशेषज्ञ करेंगे

By Manoj KumarEdited By: Published: Wed, 24 Feb 2021 09:02 AM (IST)Updated: Wed, 24 Feb 2021 09:02 AM (IST)
मूक बधिरों को नहीं आएगी दिक्कत, हिसार में सर‍कारी विभागों में साइन लैंग्वेज सीखने के निर्देश
विभागों के साथ साथ सरकारी स्कूलों में भी कार्यरत एक-एक अध्यापक को सांकेतिक भाषा सीखनी होगी।

हिसार, जेएनएन। मूक बधिरों का जीवन पहले से ही परेशानियों से घिरा है, बहुत से काम के लिए उन्हें दूसरों का सहारा लेने काे मजबूर होना पड़ता है। यहां तक कि वह क्या कहना चाहते हैं इसको समझने वाला भी कई बार कई स्थानों पर कोई नहीं होता। मगर कम से कम हिसार में इस प्रकार की दिक्कत अब मूकबधिरों को नहीं होगी।

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क्योंकि हिसार प्रशासन मूक बधिरों की एसोसिएशन के साथ एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। जिसमें प्रत्येक सरकारी विभाग में एक प्रतिनिधि को साइन लैंग्वेज यानि सांकेतिक भाषा को लेकर प्रशिक्षित किया जाएगा। प्रशिक्षण देने का काम एसोसिएशन से जुड़े विशेषज्ञ करेंगे तो पहले से सांकेतिक भाषा का प्रयोग बच्चों को पढ़ाने व अन्य कार्यों में करते रहे हैं। सभी को कवर करने के लिए छह माह का समय प्रशासन ने तय किया है।

सरकारी शिक्षकों को भी लेना होगा प्रशिक्षण

विभागों के साथ साथ सरकारी स्कूलों में भी कार्यरत एक-एक अध्यापक को सांकेतिक भाषा सीखनी होगी। इसके बाद प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापकों को भी इस अभियान में शामिल किया जाएगा। ताकि यह दिव्यांग कहीं भी जाएं तो कम से कम उनकी भाषा कोई समझने वाला तो होना चाहिए। अभी तक सांकेतिक भाषा को जानने वाले सरकारी विभागों में न के बराबर हैं। ऐसे में जब मूक बधिर निशक्त इन कार्यालयों में जाएंगे तो आसानी से अपने काम करा सकेंगे।

कार्यशाला हुई शुरू

उपायुक्त डा. प्रियंका सोनी ने बताया कि श्रवण एवं वाणी नि:शक्त जनकल्याण केन्द्र में 6 दिवसीय भारतीय सांकेतिक भाषा कार्यशाला शुरू भी कर दी गई है। इसी के तहत छह माह में सभी को प्रशिक्षित करना है। प्रदेश में इस प्रकार का काम हिसार जिला कर रहा है। ऐसे में निशक्तों की सबसे बड़ी समस्या को हम दूर कर सकते हैं।

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